कैन्टेड टर्नआउट थिक वेब स्विच सासनी स्टेशन पर परीक्षण हेतु स्थापित

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Canted Turnout Thick Web Switch Installed for Testing at Sasni Station

अवधनामा संवाददाता

भारतीय रेल पर किसी क्षेत्रीय रेलवे द्वारा पहली बार कैंटेड टर्नआउट का शुरु हुआ उपयोग

प्रयागराज (Prayagraj)।  प्रयागराज मंडल के सासनी स्टेशन पर एक जोड़ी कैंटेड टर्नआउट थिक वेब स्विच को परीक्षण हेतु स्थापित किया गया है। यह पहली बार है जब भारतीय रेल पर किसी जोनल रेलवे द्वारा ऐसा किया गया है। इससे पहले इस तरह के टर्नआउट थिक वेब स्विच का प्रयोग दिल्ली मेट्रो और डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर ट्रैक में किया जा रहा है।
160 किमी प्रति घंटे से अधिक की गति पर रेल परिचालन के लिए कैंटेड जोडरहित टर्नआउट का उपयोग करना आवश्यक है ताकि, कैंटेड प्लेन स्लीपर से अनकैंटेड टर्नआउट स्लीपरों में चेंज ओवर की स्थिति में वाइब्रेशन को नियंत्रित किया जा सके। इससे पहले आरडीएसओ के मार्गदर्शन में फरवरी, 2021 में सासनी यार्ड में लूप लाइन पर इसका एक सेट स्थापित किया गया था।
स्विच की पूरी लंबाई तक स्विच की सेटिंग सुनिश्चित करने के लिए सिस्टम में अनूठी चीज सेकेंडरी मोटर ड्राइव का उपयोग है। सामान्य थिक वेब स्विच की तुलना में एसएसडी व्यवस्था के साथ इसकी सेटिंग गुणवत्ता बेहतर है। एक टर्नआउट कॉगिफर में MCEM9 पॉइंट मशीन और दूसरी IRS पॉइंट मशीन का उपयोग किया गया है।
इसकी स्थापना के दौरान, स्विच के अलावा अन्य स्लीपर 5 दिनों में कॉशन के तहत डाले गए। आरडीएसओ अधिकारियों के साथ सीनियर डिवीजनल इंजीनियर-V  सुधीर कुमार और सीनियर डीएसटीई / अलीगढ़ प्रदीप सोनी की उपस्थिति में आज 3.15 बजे घंटे के ब्लॉक के तहत असेंबल स्विच डाला गया।
कैंटेड टर्नआउट्स की उल्लेखनीय विशेषता यह है कि स्टॉक रेल की सभी स्विच पार्ट बेयरिंग प्लेट्स में कैंट और टंग रेल में इनबिल्ट कैंट होते हैं। वेल्डेबल कास्ट मैंगनीज स्टील इनबिल्ट कैंट के साथ प्रदान किया जाता है। लीड हिस्से में रेल शीट के नीचे वेज ब्लॉक द्वारा कैंट प्रदान किया जाता है। इसमें थिक वेब स्विच और वेल्डेबल क्रॉसिंग दी गई है।
एस के मिश्रा प्रमुख मुख्य इंजीनियर, उत्तर मध्य रेलवे ने इस संबंध में बताया कि“वर्तमान में हमने डीएमआरसी से ये आयातित कैंटेड टर्नऑउट प्राप्त किए हैं। उच्च गति पर सुगम सवारी के लिए कैंटेड टर्नआउट आवश्यक होते है। अभी वॉस्लोव कंपनी द्वारा निर्मित कैंटेड टर्नआउट का एक बार परीक्षण सफल हो जाने के बाद, हम आरडीएसओ के सहयोग से पूरे भारतीय रेल में उपयोग किए जाने जाने के लिए इसके स्वदेशीकरण का कार्य कर सकते हैं” ।

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