जीटीवी के सारेगामापा के सेट पर पहली बार बुंदेली कविताएं

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जाने माने गीतकार पंछी जालौनवी के पहले बुंदेली काव्य संग्रह भुनसारो को गायक
संगीतकार शंकर महादेवन समेत ज्यूरी मेम्बर्स ने बुंदेली कविताओं को खूब सराहा

ललितपुर। जाने-माने फिल्म गीतकार पंछी जालौनवी के पहले बुंदेली काव्य संग्रह ‘भुनसारोÓ का ऐसा पहला कविता संग्रह बना जो जीटीवी के प्रसिद्ध शो सारेगामापा के सेट पर पहुंचा है। प्रोग्राम की शूटिंग के बाद गायक-संगीतकार शंकर महादेवन ने ज्यूरी मेम्बर्स और सारेगामा के प्रतियोगियों की मौजूदगी में काव्य संग्रह का कवर हटाया। मौके पर मौजूद कलाकारों ने पंछी की रचनाओं की सराहना की। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय भाषाओं में जो मिठास है, उसे कविता के माध्यम से कहना बहुत ही सरस होता है। कविताएं लोगों को अपनी मिट्टी से जोड़ती हैं। बता दें कि पंछी जालौनवी का पिछला कविता संग्रह दो सफर आया था, जो लॉकडाउन की विभीषिका को दर्शाता था। इस काव्य संग्रह की सफलता के बाद पंछी ने बुंदेली कविताएं लिखने का निर्णय लिया था। पंछी मूल रूप से बुंदेलखंड के जालौन जिले के रहने वाले हैं और उनकी ससुराल झांसी में है। वह अब तक 50 से भी अधिक फिल्मों में गीत लिख चुके हैं। संजय दत्त-अभिषेक बच्चन की फिल्म दस का दस बहाने करके ले गई दिल और शाहरुख खान की फिल्म रा-वन का गीत क्यों बोले ना मोहन मो से उनके बड़े हिट गाने हैं। पंछी जालौनवी के लिखे गाने जगजीत सिंह और रूप कुमार राठौर जैसे दिग्गज गायक भी गा चुके हैं। ‘भुनसारोÓ के बारे में पंछी ने बताया कि वे करीब 3 दशक से बुंदेलखंड से दूर मुंबई में रह रहे हैं। लेकिन, जन्म और परवरिश बुंदेलखंड में ही होने के कारण इस मिट्टी की मिठास कभी भी दिल से नहीं निकली। जब मैंने बुंदेलखंडी में कविताएं लिखने का सोचा तो सबसे पहले यह सोचा कि क्या ठेठ बुंदेलखंडी लिख पाउंगा? अपने दोस्तों से चर्चा की तो उन्होंने कहा- ठेठ बुंदेली भले ही आप न लिख पाएं, लेकिन जितनी भी लिखेंगे उससे अपनी मातृभूमि के कर्ज की एक किश्त अदायगी समझ लेना। बस फिर क्या था। दोस्तों और परिवार से हौसला मिला और भुनसारो अब आपके सामने हैं। इस किताब में आपको वो सब मिलेगा, जो हम बुंदेली करते हैं, सोचते हैं या करने की योजनाएं बनाते हैं। इस किताब को प्रयागराज के अनामिका प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। इसकी प्रस्तावना बुंदेलखंड के जाने-माने पत्रकार और देश के कई बड़े अखबारों में काम कर चुके ललितपुर निवासी धर्मेंद्रकृष्ण तिवारी ने बुंदेली में लिखी है। धर्मेंद्र कृष्ण इन दिनों दैनिक भास्कर में कार्यरत हैं।

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