– शुभेन्द्र सिंह
समकालीन दुनिया में लोकतंत्र ही सबसे लोकप्रिय शासन पद्धति है। पर ऐसा क्यों है? कौन-सी चीज़ इसे दूसरी व्यवस्थाओं से बेहतर बनाती है?
आइए जानते हैं क्या है लोकतंत्र, और ऐसे किसी तंत्र की आवश्यकता क्यों है हमें?
लोकतंत्र शासन का एक ऐसा रूप है जिसमें शासकों का चुनाव लोग करते हैं। अमेरिका में दास प्रथा का अंत करने वाले, अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन कहते हैं “लोगों के लिए, लोगों की और लोगों के द्वारा चलने वाली शासन व्यवस्था ही लोकतंत्र है।”
लोकतंत्र की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इसे सर्वाधिक लोकप्रिय और उपयुक्त बताती है। लोकतंत्र में अंतिम निर्णय लेने की शक्ति लोगों द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के पास होती है। लोकतंत्र निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनावों पर आधारित होता है ताकि सत्ता में बैठे लोगों के लिए जीत-हार के …
[1:53 PM, 11/21/2022] Alam Ji: चुनावी वादों की नज़र से “लोकतंत्र” का लेखा-जोखा
समकालीन दुनिया में लोकतंत्र ही सबसे लोकप्रिय शासन पद्धति है। पर ऐसा क्यों है? कौन-सी चीज़ इसे दूसरी व्यवस्थाओं से बेहतर बनाती है?
आइए जानते हैं क्या है लोकतंत्र, और ऐसे किसी तंत्र की आवश्यकता क्यों है हमें?
लोकतंत्र शासन का एक ऐसा रूप है जिसमें शासकों का चुनाव लोग करते हैं। अमेरिका में दास प्रथा का अंत करने वाले, अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन कहते हैं “लोगों के लिए, लोगों की और लोगों के द्वारा चलने वाली शासन व्यवस्था ही लोकतंत्र है।”
लोकतंत्र की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इसे सर्वाधिक लोकप्रिय और उपयुक्त बताती है। लोकतंत्र में अंतिम निर्णय लेने की शक्ति लोगों द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के पास होती है। लोकतंत्र निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनावों पर आधारित होता है ताकि सत्ता में बैठे लोगों के लिए जीत-हार के समान अवसर हों। लोकतंत्र में हर वयस्क नागरिक का एक वोट होता है और हर वोट का एक समान मूल्य होता है तथा एक लोकतांत्रिक सरकार संवैधानिक कानूनों और नागरिक अधिकारों द्वारा खींची लक्ष्मण रेखाओं के भीतर ही काम करती है। यह एक आदर्श लोकतंत्र की बात हुई। विभिन्न लोकतांत्रिक देशों में इनमे से कुछ विशेषताओं में भिन्नता हो सकती है।
दरअसल इन सब के पीछे की वजह है लोगों की सहूलियत, क़ानून का शासन, अधिकारों का सम्मान, सामाजिक और न्यायिक सुरक्षा और सबसे प्रमुख जनता के प्रति जवाबदेही।
लोकतंत्र में शासन की जवाबदेही लोकतंत्र को सर्वश्रेष्ठ शासन पद्धति बताने वाली विशेषताओं में से एक है। लोगों की ज़रूरत के अनुरूप आचरण करने के मामले में लोकतांत्रिक शासन प्रणाली किसी भी अन्य प्रणाली से बेहतर है। गैर-लोकतांत्रिक सरकार लोगों की ज़रूरतों पर ध्यान दे भी सकती है और नहीं भी, और यह सब सरकार चलाने वालों की मर्जी पर निर्भर करेगा। अगर शासकों को कुछ करने की ज़रूरत नहीं लगती तो उनको लोगों की इच्छा के अनुरूप काम करने की ज़रूरत नहीं है। पर लोकतंत्र में यह ज़रूरी है कि शासन करने वाले, आम लोगों की ज़रूरतों पर तत्काल ध्यान दें। लोकतांत्रिक शासन पद्धति दूसरों से बेहतर है क्योंकि यह शासन का अधिक ज़वाबदेही वाला स्वरूप है। लोकतंत्र का आधार व्यापक चर्चा और बहसें हैं । लोकतांत्रिक फ़ैसले में हरदम ज़्यादा लोग शामिल होते हैं, चर्चा करके फ़ैसले होते हैं, बैठकें होती हैं। अगर , किसी एक मसले पर अनेक लोगों की सोच लगी हो तो उसमें गलतियों की गुंजाइश कम से कम हो जाती है। इसमें कुछ ज़्यादा समय ज़रूर लगता है लेकिन महत्त्वपूर्ण मसलों पर थोड़ा समय लेकर फ़ैसले करने के अपने लाभ भी हैं। इससे ज्यादा उग्र या गैर-जिम्मेवार फ़ैसले लेने की संभावना घटती है। इस प्रकार लोकतंत्र बेहतर निर्णय लेने की संभावना बढ़ाता है।
लोकतंत्र मतभेदों और टकरावों को संभालने का तरीका उपलब्ध कराता है। किसी भी समाज में लोगों के हितों और विचारों में अंतर होगा ही । भारत की तरह भारी सामाजिक विविधता वाले देश में इस तरह का अंतर और भी ज़्यादा होता है। अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग समूहों के लोग रहते हैं, विभिन्न भाषाएँ बोलते हैं, उनकी धार्मिक मान्यताएँ अलग-अलग , हैं और जातियाँ भी जुदा-जुदा। दुनिया को ये सभी अलग-अलग दृष्टिकोण से देखते हैं और उनकी पसंद में भी अंतर है। एक समूह की पसंद और दूसरे समूह की पसंद में टकराव भी होता है। ऐसे टकराव को कैसे सुलझाएँगे? इसे ताकत के बल पर सुलझाया जा सकता है। जिस समूह के पास ज़्यादा ताकत होगी वह दूसरे को दबा देगा और कमज़ोर समूह को इसे मानना होगा। लेकिन इससे नाराज़गी और असंतोष पैदा होगा। ऐसी स्थिति में विभिन्न समूह ज़्यादा समय तक साथ नहीं रह सकते। लोकतंत्र इस समस्या का एकमात्र शांतिपूर्ण समाधान उपलब्ध कराता है। लोकतंत्र में कोई भी स्थायी विजेता नहीं होता और कोई स्थायी रूप से पराजित नहीं होता। सो विभिन्न समूह एक-दूसरे के साथ शांतिपूर्ण ढंग से रह सकते हैं। भारत की तरह विविधता वाले देश को लोकतंत्र ही एकजुट बनाए हुए है।
लोकतंत्र नागरिकों का सम्मान बढ़ाता है। लोकतंत्र राजनीतिक समानता के सिद्धांत पर आधारित है. यहाँ सबसे गरीब और , अनपढ़ को भी वही दर्जा प्राप्त है जो अमीर और पढ़े-लिखे लोगों को है। लोग किसी शासक की प्रजा न होकर खुद अपने शासक हैं। अगर वे गलतियाँ करते हैं तब भी वे खुद इसके लिए जवाबदेह होते हैं।
लोकतंत्र के पक्ष में आखिरी तर्क यह है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था दूसरों से बेहतर है क्योंकि इसमें हमें अपनी गलती ठीक करने का अवसर भी मिलता है। इन गलतियों पर सार्वजनिक चर्चा की गुंजाइश लोकतंत्र में है। और फिर, इनमें सुधार करने की गुंजाइश भी है। इसका मतलब यह कि या तो शासक समूह अपना फ़ैसला बदले या शासक समूह को ही बदला जा सकता है। गैर-लोकतांत्रिक सरकारों में ऐसा नहीं किया जा सकता।
इन सभी आदर्श परिभाषाओं से परे वास्तविकता की नज़र में कितनी बातें संदर्भित हो पा रही है यह चर्चा का विषय है। नागरिक के अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी देने वाले देश में अभिव्यक्ति की कितनी स्वतंत्रता दर्शनीय है ? नागरिकों की सुरक्षा किस हद तक हो पा रही है, यह भी प्रश्वाचक है।
जो पार्टियाँ चुनाव जीत कर देश में सरकार बनाती हैं, वे पार्टियाँ कितनी लोकतांत्रिक हैं। देश की जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों की कितनी बातें उस पार्टी में सुनी जाती हैं और असल प्रतिनिधित्व का कितना अंश उनमें विद्यमान है यह सोचने का विषय है।
चुनाव आते ही लोकतंत्र के सारे पहिए द्रुत गति से चलने लगते है और एक आदर्श लोकतंत्र की परिभाषा पेश करने की जद्दोजहद सरकार द्वारा दिखायी पड़ती है। सरकार को देश व प्रदेश के लोगों की ग़रीबी, स्वास्थ, शिक्षा, सफ़ाई, घर, खेती गृहस्थी सब की चिंता यकायक सरकार की आँखों में नज़र आने लगती है और चुनाव बीतते ही ये आशा की किरण ढल जाती है जो अगले किसी चुनाव के आने तक नज़र नहीं आती।
देश का संविधान बनाते वक्त जिन बातों को ध्यान में रख कर हमारे देश ने लोकतांत्रिक शासन पद्धति को अपनाया वह किस हद तक साकार हुआ है यह अब भी एक प्रश्न बना हुआ है।
चुनावी वादों और ज़मीनी हक़ीक़त के बीच फ़ंसे हुए लोकतांत्रिक पहिए में कितना ज़ोर बचा है जो देश के नागरिकों के अधिकारों और सम्मान की रक्षा कर सकेगा यह आज का सबसे बड़ा प्रश्न है।