गर्मी का कहर

0
7135

एस. एन. वर्मा

गर्मी में सितम ढाने के कारक होते है पर मुख्य कारक हीट वेव होते है। मिसाल के तौर पर महाराष्ट्र के सरकारी कार्यक्रम के दौरान लू से 11 लोगो के मौत की खबर को ली जा सकती है। एक तो कार्यक्रम के आयोजन के टाइमिंग को लेकर सवाल उठता है। जब मुम्बई में उस दिन अधिकतम तापमान 35 डिग्री सेल्सियस था ऐसे में दिन के 11 से एक बजे के बीच जब की उग्रता तीखी रहती है लोगो को कड़ी धूप में बैठाने का औचित्य समझ से परे है। कार्यक्रम समाप्त होते होते 50 लोगो को लू ने अपने लपेट में ले लिया इन्हें अस्पताल पहुचाना पड़ा।
मौसम का चक्र तो पूरी दुनिया में विकराल होता जा रहा है जिसका असर स्वास्थ्य और इकानमी पर सीधे दिख रहा है। जैसे जैसे साल आगे बढ़ रहा है मौसम की मार भी आगे बढ़ती जा रही है भारत में हीट वेव का हाल का इतिहास इस तरह है। 2000 से 2019 के बीच हर साल हीट वेव का औसत 24 दिन का रहा। इससे पहले 20 वर्षो में हीट वेव का औसत दस दिनों का रहा है। इससे हीट वेव के बढ़ने की गति का अनुमान लगाया जा सकता है। हालात नियन्त्रण से बाहर न चला जाये दुनियां को लफ्फाजी छोड़ इकालजी और गैस उत्सर्जन पर तत्काल गम्भीर हो गम्भीर प्रयास शुरू कर देना चाहिये। यह एक देश की समस्या नहीं है।
भारत बड़ा देश है क्षेत्रीय भौगोलिक स्थितियां समान नही है। पहाड़ी, तटीय और मैदानी इलाको में मौसम, तापमान, बरसात की भिन्नता देखी जा सकती है। इस समय पहाड़ी इलाको में 30 डिग्री सेल्सियस और तटीय इलाको में 37 डिग्री सेल्सियस का तापमान इस तरह की स्थिति पैदा कर देता है मैदानी इलाको में 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जाने पर यह विनाश लीला अपना रौद्र रूप दिखा सकती है। 2010 और 2019 के बीच गर्म मौसम की वजह से 30 प्रतिशत ज्यादा लोगो की मौते हुई।
हीट वेव उपरोक्त बतों के लिये सोच तो पैदा करती ही है साथ ही अर्थतन्त्र पर भी बुरा प्रभाव छोड़ती है। डयूक विश्वविद्यालय जो नार्थ कैरोलाइना में है तापमान और कम में सम्बन्ध को लेकर एक रिसर्च हुआ है। रिसर्च के मुताबिक दिल्ली में जब तापमान बहुत बढ़ जाता है तो हर घन्टे 15-20 मिनट काम का नुकसान हो जाता है। काम के घन्टे आमतौर पर आठ होते है यानी आठ घन्टों में लगभग 120 मिनट पानी दो घन्टो का नुकसान होता है। साल में कितने घन्टों का अनुमान लगा लीजिये। इसी रिसर्च के मुताबिक हर साल भारत में गर्मी से 101 अरब मानवश्रम का नुकसान होता है। आने वाले सालो में जैसे जैसे गर्मी बढ़ेगी, गर्मी के दिन बढेगे, हीट वेव बढेेगे तैसे तैसे मानव श्रम का नुकसान भी बढ़ेगा जो अर्थतन्त्र की कमर तोड़ने के लिये विनाशक कारक साबित होता जायेगा। अगर दुनियां ने मौसम को बढ़ते विनाश को रोकने में कामयाबी नहीं पायी तो हालात खौफनाक होते होते पूरे सभ्यता को लील जायेगा।
अनुमान है 2030 तक गर्मी से हुये काम के घन्टों का नुकसान इतना बढ़ जायेगा की जीडीय में ढाई फीसदी करीब 250 अरब डालर का नुकसान लग जायेगा। सरकार को अब शहरो के विकास माडल में सुधार लाना होगा क्योकि भारत में श्रम का करीब 75 प्रतिशत हिस्सा ऊंचे तापमान वाले जगहों में लगा हुआ है। इसके लिये कामकाज के पैटर्न में बदलाव और फैक्ट्ररियां में काम काज के हालातो में सुधार लाना तुरन्त शुरू कर देना चाहिये। यहां बड़ी आबादी असंगठित क्षेत्र में कार्यरत है काम की जगहों पर सुधार लाने के लिये इन इकाईयों को सबसीडी दिया जाना तुरन्त जरूरी होगा जिसे सरकार को शुरू कर देना चाहिये। जितना ही सुधार में देर होगा उतना ही सुधार कार्यों का खर्च और नुकसान बढ़ता जायेगा।

Also read

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here