जंग में हम पहल नहीं करते

0
289
(2 मोहर्रम) कर्बला इंसानसाज़ी की दर्सगाह
वकार रिज़वी
कर्बला एक इंसानसाज़ी, सिल-ए-रहम, अमन, चैन, ख़ैर, सुलहो आश्ती की दर्सगाह है। कर्बला की तारीख़ जानने और मानने वाला कभी जंग में पहल नहीं कर सकता और अगर सिफऱ् इसे ही अपना लिया जाये तो पूरी दुनिया में अमन-ओ-अमान के सिवा कुछ न होगा।
जब वाकय़े कर्बला की तमहीद साज़ी हो रही थी तब ही इमाम हुसैन अ.स. ने यह दर्स दे दिया कि हम जंग में पहल नहीं करते जब वलीद के दरबार में मरवान नें कहा कि वलीद हुसैन से अभी बैयत ले लो अगर यह चले गये तो फिर बैयत न ले सकोगे, यह सुनना था कि इमाम हुसैन की आवाज़ बुलन्द हुई जिसे सुन कर बनी हाशिम के जांबाज़ तलवारें खीच कर दरबार में आ गये अनकऱीब वलीद के दरबारियों के सर ज़मीन पर ख़ाक और ख़ूं में लोट रहे होते कि उन्हें इमाम हुसैन ने यह कहकर रोका कि हम जंग में पहल नहीं करते। यही नहीं जब कर्बला पहुंचने से क़ब्ल जब हुर्र के लश्कर ने इमाम हुसैन का रास्ता रोका और जबरन कर्बला ले जाना चाहा तो इमाम के लिये बहुत आसान था कि हुर्र के प्यासे लश्कर जिनके घोड़ों की भी ज़बाने प्यास से बाहर आ गयी थी, से जंग कर लेते, लेकिन यहां भी उन्होंने कहा कि हम जंग में पहल नहीं करते और अपने असहाब से हुर्र के लश्कर यहां तक जानवरों को भी पानी से सेराब किया। ऐसे ही जब इब्ने जिय़ाद की फ़ौज ने दरिया किनारे से इमाम के ख़ैमें हटाने को कहा तो आसान था कि जंग कर ली जाती क्योंकि इस वक़्त कोई 3 दिन का प्यासा न था लेकिन इमाम हुसैन ने यहां भी यही कहा कि हम जंग में पहल नहीं करते और ख़ामोशी से अपने ख़ेमें दरिया से हटा लिये। यह एक $िफक्रा उन लोगो के लिये भी लम्हें $िफकरिया है जो यह कहते हैं कि इमाम हुसैन अना पसंद थे तमाम लोगों के समझाने के बावजूद वह यज़ीद के मुक़ाबले में गये, हां ! लोगों ने समझाया लेकिन जिसने मुक़ाबले पर जाने से रोका उससे उन्होंने यही कहा कि ”क्योंकर मुझ जैसा यज़ीद जैसे की बैयत करले, यज़ीद का लष्कर ज़्यादा से ज़्यादा हमें क़त्ल ही कर देगा, मौत तो एक दिन सबको आनी है, लेकिन हम अपने ज़मीर का सौदा किस तरह कर लें, हम किस तरह यज़ीद जैसे फ़ासिक़ व फ़ाजिर के हाथों पर बैअत कर लें क्या हम षरीयते मुहम्मदी के हलाल को हराम और हराम को हलाल होता हुआ देखते रहेंÓÓ जिसके घर का दीन था जिसके नाना लेकर आये थे वह उसे मिटता हुआ क्योंकर देख सकता था। इसीलिये उन्होंने किसी भी क़ीमत पर कय़ामत तक ऐसे बचाने का इन्तेज़ाम किया कि रहती दुनियां तक फिर कोई यज़ीद जैसा हुसैन जैसे से बैयत का मुतालबा नहीं कर सकता।
बहुत से नसमझ यह भी कहते हैं कि इमाम हुसैन ने अपने आपको सबकुछ जानते हुये भी हलाकत में डाला यह माज़अल्लाह ख़ुदकशी के मानिंद है और इस्लाम में ख़ुदकशी हराम है। बचपन में इसे ख़तीबे अकबर मरहूम मिजऱ्ा मोहम्मद अतहर साहब ने अपने मजलिस में हम बच्चों को मुक़ातिब करते हुये बेहद आसान लव्ज़ों में समझाया था कि जानबूझ कर जान देना कहां पर ख़ुदकशी नहीं अज़ीम क़ुरबानी है, उन्होंने फऱमाया कि दो लोग एक ऐसी जगह पर थे जहां उन्होंने देखा कि आगे जिस पुल पर से ट्रेन को ग़ुजऱना है वह पुल टूट गया है और हज़ारों सवारियों से भरी एक ट्रेन आ रही है वह दोनों चाहते हैं कि इस ट्रेन को पुल पर से ग़ुजऱने से पहले रोक लें लेकिन कोई ज़रिया उनके पास ऐसा न था कि वह स्पीड में आ रही टे्रन को रोक सकें वह यह भी देख और समझ रहे हैं कि अगर टे्रन न रूकी तो इस पर सवार हज़ारों सवार मर जायेंगें, अचानक उसमें से एक ने फ़ैसला किया कि हम इस ट्रेन के आगे कूद कर अपनी जान दे देते हैं ऐसे में यह ट्रेन रूक जायेगी और हज़ारों बेगुनाहों की जान बच जायेगी लेकिन ट्रेन के आगे कूदने से पहले उसने यह भी अपने साथी से कहा कि याद रखना कुछ लोग इसे ख़ुदकुशी का नाम देंगें तो उनसे कह देना कि हां हमने जानबूझ कर जान दी लेकिन हलाकत के लिये नहीं बल्कि एक अज़ीम मक़सद के लिये। लेहाज़ा इसे ख़ुदकशी का नाम न दें।
9415018288
Also read

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here