दो वर्षो के बाद मुक़द्दस रमज़ान के पहले जुमा पर नमाज़ियों से लबरेज़ रहीं मस्जिदें

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अवधनामा संवाददाता

प्रयागराज।  कोरोना बंदिशों के कारण लगभग दो वर्षों तक मस्जिदों मे पाँच लोगों के प्रवेश की ही इजाज़त हुआ करती थी।मोअज़्ज़िन पेश इमाम और तीन लोग ही जमात मे शामिल हुआ करते थे लेकिन जैसे ही कोरोना की बन्दिशें हटीं और सभी तरहा के धार्मिक व सामाजिक आयोजनो को बन्दिशों से मुक्त किया तो मन्दिर हो या मस्जिद फिर से अपनी पुरानी परमम्परा और श्रद्धा के साथ कृयाशील हो गईं।नवरात्रि के साथ माहे रमज़ान के पवित्र रोज़े भी चल रहे हैं।शुक्रवार को माहे रमज़ान का छठवाँ रोज़ा होने के साथ मुक़द्दस रमज़ान का पहला जुमा भी था।दो वर्षों बाद इबादतगाहों मे नमाज़ियों का हुजूम उमड़ा तो जमात की सफ मे जगहाँ कम पड़ने पर मस्जिद की सीढीयों पर भी जानमाज़ बिछा कर कुछ लोगों ने नमाज़ ए जुमा अदा की।बाराह बज कर पन्द्रह मिनट से दो बजे तक शहर की तक़रीबन सभी छोटी बड़ी मस्जिदों मे कुछ कुछ मिन्टों के अन्तराल पर अज़ान की आवाज़ गूंजी तो नमाज़ियों ने मस्जिद का रुख किया।खानकाह दायरा शाह अजमल ,बैदन टोला ,बख्शी बाज़ार ,अटाला ,रसूलपूर ,समदाबाद ,दरियाबाद ,करैली ,करैलाबाग़ ,तुलसीपूर ,अकबरपूर ,बहादुरगंज ,हटिया ,गढ़ी सराँय ,सब्ज़ीमण्डी ,रानीमण्डी, कटरा ,राजापूर ,,सिविल लाईन ,मिन्हाजपूर ,पत्थरगली ,बरनतला ,मोहतिशिमगंज ,नैनी के कसाई मोहल्ला ,चकदाऊद नगर ,पिपीरसा आदि क्षेत्रों की मस्जिदों मे माहे रमज़ान के तीन भागों मे बँटे रहमत बरकत और मग़फिरत के पहले अशरे रहमत के दिनो के छै रोज़े मुकम्मल होने के साथ पहले जुमा की नमाज़ मे अल्लाह के बन्दों ने शुक्र का सजदा करने के साथ मुल्क ए हिन्द मे अमनो अमान ,भाईचारे , बिमारों को शिफायाब ,बेरोज़गारों को रोज़गार ,बेऔलादों को औलाद ,मरहुमीन की मग़फिरत को नमज़ियों ने चिलचलाती धूप और गर्मी की शिद्दत मे भी रब से गिड़गिड़ा कर दूआ मांगी।

करैली मस्जिद ए खदीजा मे इमाम ए जुमा वल जमात सैय्यद रज़ी हैदर ने तो चक ज़ीरो रोड़ मे इमाम ए जुमा शिया जामा मस्जिद मौलाना सैय्यद हसन रज़ा ज़ैदी की क़यादत मे नमाज़ ए जुमा अदा कराई गई।दायरा शाह अजमल मे खानकाह की मस्जिद मे पेश इमाम मौलाना हामिद रज़ा की क़यादत मे नमाज़ अदा कराने के साथ मौलाना हामिद रज़ा व नायब इमाम मौलाना शमशेर आज़म ने माहे मुक़द्दस रमज़ान के एक एक दिनों की फज़ीलत बताई।ओलमाओं ने शहर व ग्रामीण इलाक़ो की मस्जिदों मे अपने जुमे के खुत्बे में कहा की रमज़ान हम पर क्यों फर्ज़ है इसको जानना भी बेहद ज़रुरी है।रमज़ान सिर्फ भूखे प्यासे रहने का नाम नहीं है।बल्कि हमे अपने नफ्स पर क़ाबू रखने गुनाहों से दूर रहने और भूखे और प्यासे रहकर उसकी शिद्दत को समझ कर यह देखना होगा की हमारे घर के आस पड़ोस मे कोई शख्स भूखा तो नहीं।हमे हर उस ग़रीब ग़ुरबा और मिस्कीन की मदद करनी चाहीये जो वाक़ई मे ज़रुरतमन्द तो है लेकन शर्म के कारण वह कुछ कह नहीं पाता ऐसे लोगों की इमदाद करना चाहे वह किसी भी मज़हब ओ मिल्लत का मानने वाला हो।हमारा रोज़ा तभी मुकम्मल व जायज़ माना जायगा जब अल्लाह के सच्चे बन्दे बन कर हर वह बातें जो अल्लाह और पैग़म्बर ने बताईं और अहलेबैत ए अतहार ने खुद अमल मे लाकर हमे भी दर्स दी उसे आम ज़िन्दगी मे अमल मे ला कर खुद के साथ मुआशरे की ज़िन्दगी को भी सँवारा जा सकता है।

तिलावते क़ुरआन पाक अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाने का मार्ग प्रशस्त करता है : अस्करी

प्रयागराज।  उम्मुल बनीन सोसाईटी के महासचिव सै०मो०अस्करी ने बताया की माहे रमज़ान में ईरान समेत तमाम इसलामी मुल्कों में  ईश्वरीय किताब क़ुरआन ए मजीद की तिलावत उसका तर्जुमा (व्याख्या)  के साथ उसकी पाक आयतों को याद करने को अनेको सेमिनार बैठकें व छोटे बच्चों को परखने के लिए कॉम्पीटिशन होते रहते हैं।हर गली कूचे की मस्जिदों मे बच्चे युवा वृद्ध सभी एक सफ मे रेहेल पर क़ुरआन रख कर आयतों को पढ़ कर माहौल को खुशनुमा व मनमोहक बनाते रहते हैं।अस्करी ने बताया की वैसे तो माहे रमज़ान मे तिलावत और नमाज़ ए पंचगाना का अलग ही क्रेज़ युवाओ मे हिलोरे मारता रहता है। लेकिन हर बालिग़़ और आक़िल पर रोज़ा नमाज़ खुम्स ज़कात हज और तिलावते कलाम ए पाक एक फरायज़ है और बीच बीच मे ओलमा व आलिमेदीन हाफिज़ व क़ारी लोगों को इसकी हिदायत देने के साथ सेमिनार और जलसे के ज़रीए लोगों को बेदार करते रहते हैं।

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