हिन्दी उर्दू साहित्य अवार्ड कमेटी का 28वां साहित्यिक सम्मेलन द्वितीय दिवस नयी दृष्टि और भारतीयता के वाहक थे शायर फिराक

0
85

लखनऊ 10 अक्टूबर। फिराक हिन्दुस्तानी संस्कृति की रूह के विशिष्ट शायर थे। कई भाषाओं के विद्वान भाषण कला में अद्वितीय और गद्यव पद्य दोनों की लेखनी में माहिर थे। उर्दू शायरी के इतिहास में उनका और उनके समय का अलग खास अध्याय है।


ये उद्गार ध्यक्षीय वक्तव्य में दिल्ली विश्वविद्यालय के कला संकायाध्यक्ष प्रो.इर्तिजा करीम के थे हिंदी उर्दू साहित्य अवार्ड कमेटी के 28वें पांच दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सम्मेलन के दूसरे दिन जो रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर लखनऊ से आयोजित आनलाइन संगोष्ठी में देश-विदेश के शहरों से विद्वान विचार व्यक्त कर रहे थे। आयोजन कोविड-19 के नियमों का पालन के साथ हो रहे इस आॅनलाइन सम्मेलन के तीसरे दिन कल दोपहर बाद सुप्रसिद्ध गीतकार समीर अनजान साहित्य शिरोमणि अवार्ड से पूर्व राज्यपाल राम नाईक को मुम्बई में अलंकृत करेंगे।
अध्यक्षीय वक्तव्य में दिल्ली विश्वविद्यालय के कला संकायाध्यक्ष प्रो.इर्तिजा करीम ने फिराक पर लखनऊ में ही कमेटी की ओर से 1990 में हुए सेमिनार की यादों ताजा करते हुए कहा कि इंसानी कमियां फिराक में भी थीं मगर उनकी शायरी में जो कुछ नजर आता है वह उनके व्यक्तित्व का दूसरा आयाम है। वास्तविकता यह है कि उन्होंने जिन्दगी की बहुत सी मुश्किलों को बर्दाश्ता किया और उन्हें शायरी के अपने नये ढंग से उजागर किया।
इससे पहले संगोष्ठी के प्रारम्भ करते हुए कमेटी के महामंत्री अतहर नबी ने वक्ताओं का स्वागत करते हुए कमेटी के तीन दशकों के प्रमुख आयोजनों और 1990 में हुई फिराक संगोष्ठी का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि फिराक की शायरी देश की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है। फिराक की शायरी शास्त्रीय और आधुनिक कविता की एक खूबसूरत इबारत है। फिराक उर्दू शायरों में एक नई आवाज नया लबोलहजा, नया तर्जे अहसास एक नई शक्ति बल्कि, एक नई जबान लेकर आए।
गोरखपुर विश्वविद्यालय के डा.साजिद हुसैन ने रुबाइयो-गजलों के उद्धहरण देते हुए कहा कि फिराक की रुबाइयां बहुत मशहूर हुईं पर उनकी शायरी का असल मैदान गजल का था। कोलकाता के डा.दबीर ने बीसवीं सदी की उर्दू शायरी की प्रमुख बातों का जिक्र करते हुए कहा कि फिराक ने उर्दू शायरी को ताजा असरदार और नया लहजा प्रदान किया। डा.मुश्ताक कादरी ने कहा कि फिराक ने अपनी आलोचनात्मक पुस्तक में गजलगोई की मीमांसा की है और उन्होंने गजल को अलग-अलग तरह की माला कहा है। साथ ही गजलें कहकर गजलगोई को नया मोड़ दिया है। रुबाइयों पर केन्द्रित अलीगढ़ के सगीर अफराहीम के वक्तव्य में उनका मानना था कि आज की संकीर्ण विचारधाराओं के माहौल में फिराक और भी प्रासंगिक हो गये हैं। भारतीयता को जिस तरह अमीर खुसरो और मीर ने शायरी में रखा है फिराक की शायरी उसी की एक कड़ी है। फिराक को पिछली सदी का अहम और बड़ा शायर बताने वाले पटना के इम्तियाज करीमी ने कहा कि उर्दू गजल की परम्परा को कई भाषाओं का जानकार होने के नाते नया रुख देने के साथ फिराक ने नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। लखनऊ के सुहैल काकोरवी ने बानगी रखते हुए स्पष्ट किया कि अंग्रेजी के उस्ताद फिराक ने किस तरह उर्दू शायरी को अंग्रेजी का मुख्तलिफ लहजा देकर नई रंगत पैदा की।
संगोष्ठी में कतर दोहा से अहमद अशफाक ने उन्हें अतुलनीय शायर कहा। विशिष्ट अतिथि के तौर पर जामिया दिल्ली के प्रो.उबैदुर्रहमान ने फिराक को गजलों का नायक बताया। अलीगढ़ विश्वविद्यालय के डा.शाफे किदवई ने उनपर नये सिरे से शोध की जरूरत बतायी। इसके अलावा कश्मीर के प्रो.कुद्दूस जावेद, मारिशस से डा.रहमत अली अरशद, मुम्बई के कलीम जिया, कनाडा के अशफ़ाक अहमद, हैदराबाद के डा.मुश्ताक हैदर, दिल्ली के मिथुन कुमार, चेन्नई से अमातउल्लाह, वर्धा से हिमांशु शेखर, व लखनऊ के राजवीर रतन ने विचारों के साथ परचे पेश किये। इस मौके पर रवीश टेकचन्दानी को कमेटी की ओर से प्रो.इर्तिजा करीम ने साहित्यश्री सम्मान से भी नवाजा। अंत में जिया सिद्दीकी नदवी ने वक्ताओं का आभार व्यक्त किया।

Also read

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here