एमएसआई इंटर कालेज बक्शीपुर में मुस्लिम पर्सनल लॉ पर संगोष्ठी

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-join us 9918956492गोरखपुर। जमाते इस्लामी हिन्द के तत्वावधान में मुस्लिम पर्सनल लॉ जागरूकता अभियान के अंतर्गत एमएसआई इंटर कालेज बक्शीपुर में ‘इस्लाम की पारिवारिक व्यवस्था’ विषय पर संगोष्ठी में जमाते इस्लामी हिन्द के ऑल इंडिया सेक्रेटरी मोहम्मद इकबाल मुल्ला ने कहा कि मुसलमानों के पर्सनल लाॅ में हस्तक्षेप करके सरकार देश के दूसरी बहुत सी समस्याओं से लोगों को दूर कर
रही है।

भारत में रहने वाले दूसरे धर्म, जातियों के पर्सनल लाॅ में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाता जबकि केवल मुसलमानों पर निशाना साधा जाता है।


उन्होंने कहा कि हकीकत ये है कि सरकार तीन तलाक का मुद्दा उठाकर और इस्लाम के दूसरे पारिवारिक निर्देर्शों पर निशाना लगा कर ‘समान नागरिक
संहिता’ के रास्ते को साफ करना चाहती है। जबकि देश के संविधान में नागरिकों के लिये धर्म और अभिव्यक्ति की आजादी और हर धर्म के मानने वालों के लिये अपने धर्म पर चलने की आजादी की बात साफ तौर पर दी गई है।

मदरसा दारुल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार के मुफ्ती अख्तर हुसैन अजहरी मन्नानी ने कहा कि मजहब की पहचान उसके रहनुमाओं, नेक लोगों और दानिशवरों से होती हैं न कि जाहिलों और सरफिरों से। कुछ बुरे जाहिल लोगों की वजह से मजहब को बदनाम नहीं किया जा सकता हैं और जो ऐसा करें या समझे वह खुद जाहिल हैं, इसलिए कि कुछ बुरे लोग हर मजहब में हैं। जहां तक हक्कानियत की बात हैं तो इस्लाम के हक होने को यहीं काफी हैं कि इस्लाम ने जिंदगी के पहले और बाद की सारी जरुरतों को खूब विस्तृत रुप से बता दिया हैं। ऐसा दूसरे मजहब में नहीं हैं। नबी-ए-पाक अलैहिस्सलाम के हक होने और बेहतर होने की बात हर मजहब के बड़े पेशवाओं ने की हैं। इसलिए मुसलमान मर्द और औरतों को चाहिए कि वह अपनी जरुरतों का हल इस्लाम में ढ़ूढे न कि कोर्ट कचहरी में। अगर कोई नहीं मानता हैं तो मुसलमान उसका बॉयकाट करें। आजकल मुस्लिम औरतों के मसायल के मुताल्लिक हिन्दुस्तान में बड़ा हंगामा हैं। औरतों को मिसगाइड किया जा रहा हैं। औरतों को समझाया जाता हैं कि इस्लाम औरतों को दबा कर रखता हैं जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं हैं। आप अगर इस्लाम के कवानीन पर गौर करें तो महसूस होगा कि दुनिया में इस्लाम वह वाहिद मजहब हैं जिसने औरतों को घर की महरानी बना दिया। औरतें दीनी फराईज को अंजाम दें किसी के बहकावें में न आये। पर्दें का ख्याल रखें। शौहर और बीबी एक दूसरे की बातों पर सब्र करें तो दर्जें बुलंद होंगे।

उन्होंने बताया कि ब्रिटेन में एक सेमिनार के दौरान एक औरत ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कह दिया कि दुनिया के किसी मजहब ने औरतों के साथ इंसाफ नहीं किया हैं यहां तक की इस्लाम ने भी। हक-ए-तलाक मर्द को देकर औरतों को मजबूर बना दिया। वहीं मशहूर आलिमे दीन अल्लामा अरशदुल कादरी भी मौजूद थे, उन्होंने जवाब दिया कि – ” आपने गौर नहीं किया किया। हक-ए-तलाक मर्द को देकर औरत को मजबूर नहीं किया बल्कि अगर संजीदगी से गौर करें तो आप को समझ में आयेगा कि इस्लाम ने औरतों को इज्जत दी हैं। वह ऐसे कि घर में नौकरानी भी रहती है और बीबी भी। शौहर बीबी के नाम बैंक-बैलेंस, जमीन जायदाद सभी रखता है लेकिन नौकरानी के नाम कुछ भी नहीं । क्यों नहीं बीबी के सारे हक नौकरानी को देता हैं? तो सुनिए शौहर कहता हैं कि नौकरानी की बागडोर मेरे हाथ में नहीं हैं, वह जब चाहेगी जहां चाहेगी चली जायेगी लेकिन बीबी के नाम सब करता हैं क्योंकि वह जानता हैं कि निकाह की बागडोर शौहर के हाथ में हैं। जब तक वह नहीं चाहेगा बीबी कहीं नहीं जायेगी। वह ऐतमाद की बुनियाद पर बीबी पर भरोसा करता हैं। अगर औरत को हक-ए-तलाक हासिल होता तो वह जब चाहती तलाक देकर चली जाती तो उसकी हैसियत एक नौकरानी से ज्यादा नहीं होती। ऐसे में शौहर बीबी पर भरोसा नहीं करता। न बैंक-बैलेंस न जायदाद बीबी के नाम करता। इस्लाम ने हक-ए-तलाक मर्द को देकर औरत को नौकरानी नहीं बनाया हैं बल्कि घर की महरानी बना दिया हैं।”

उन्होंने कहा कि तलाक एक जरुरत हैं। जिन मजहबों में तलाक की कोई सूरत नहीं उनकी औरतें खुदकुशी करने पर मजबूर होती हैं। तलाक का हुक्म मजबूरियों के लिए हैं। तलाक नापसंदीदा होने के बाद भी एक जरुरत है। कभी-कभी शौहर नाकारा, जालिम हैं तो ऐसी सूरत में जिसकी लड़की है वह क्या करेगा? क्या शौहर के पास रखेगा? जरुरी है उससे अलग हो जाया जायें। तलाक का हुक्म मजबूरियों के लिए हैं। तलाक उन जरुरतों पर हैं कि कोई औरत  ऐसी है जो शौहर के साथ नहीं रहना चाहती है या ज्यादती करती हैं। रोज झगड़े होते हो। निभा होना मुश्किल हो जायें  तो ऐसी सूरत में कुरआन ने यहीं फैसला किया है कि दोनों अलग हो जायें। तलाक नापसंदीदा होने के बाद भी एक जरुरत हैं।
उन्होंने नौजवानों से अपील किया कि वह तलाक का गलत इस्तेमाल न करें। तलाक का गलत इस्तेमाल करने की वजह से इस मामले पर हुकूमत की दखलअंदाजी हुई हैं। तलाक एक देनी जरुरी है तो तीन क्यों देते हैं।
शहरे काजी मुफ्ती वलीउल्लाह ने कहा कि इस्लाम द्वारा दिये हुये निर्देश केवल मुसलमानों के लिये नहीं हैं बल्कि उसकी शिक्षायें दुनिया के तमाम समुदाय के लिए बराबर है। यही वजह है कि
आज दुनिया ने इस्लाम के द्वारा दिये गये सिद्धान्तों को अपनाया है। खुद भारत ने भी पारिवारिक जीवन को बेहतर बनाने के लिये ‘‘तलाक’’ जैसे सिद्धान्त को अपने संविधान में शामिल किया है। गेविवि के प्रो. नसीम अहमद, मुफ्ती दाऊद ने भी संबोधित किया। संचालन प्रो. अशफाक अहमद अंसारी ने किया। इस मौके पर मोहम्मद राफे, तनवीर अहमद, डा.अब्दुल वली, मोहम्मद शारीक, मुस्तफा हुसैन, हाफिज अब्दुल करीम आदि मौजूद रहे।

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