नये नाट्यकर्मी शार्टकट सफलता चाहते हैं: जाफरी

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लखनऊ। थियेटर में गिरावट आयी है। नये कलाकार शार्टकट सफलता चाहते हैं। वह थियेटर को फिल्म के लिए सीढ़ी समझते हैं। यह बात मशहूर थियेटर कर्मी, देश में लाइट एंड साउंड  प्रोगाम के जनक व दूरदर्शन के पूर्व निदेशक विलायत जाफरी ने यहाँ अवधनामा से विशेष बातचीत करते हुए कही।
विलायत जाफरी का जन्म दो अक्तूबर 1932 को रायबरेली में हुआ था। उन्होंने शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। वह इंटरनेशल  जूरी के सदस्य भी रहे तथा फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट से भी जुड़े रहे। कहीनाकार, संवाद लेखक, निर्देशक रहे बहुआयामी व्यक्तित्व के मालिक विलायत जाफरी से जब अवधनामा ने बातचीत की तो लगा कि थियेटर के इतिहास के पन्ने पलटने लगे।
अवधनामा द्वारा यह पूछे जाने पर कि आर्ट एंड कल्चर से कैसे जुड़े तो उन्होंने कहा कि वह शुरू में थियेटर से जुड़े, इसके बाद हरियाणा सरकार ने 1972 में उनसे लाइट एंड साउंड प्रोग्राम शुरू करने के लिए कहा। इसके बाद 1974 में लखनऊ की ऐतिहासिक रेजीडेंसी में लाइट एंड साउंड बढ़ते कदम शुरू कराया। उन्होंने कहा कि इधर-उधर कार्यक्रम करते हुए कभी पैसा ज्यादा आता और कभी नहीं भी आता। इस पर बीवी ने कहा कि इस तरह ठीक से गुजारा नहीं हो पा रहा है और बच्चों की परवरिश पर असर पड़ रहा है, कोई स्थायी नौकरी करो। इसी बीच संघ लोक सेवा आयोग ने एक विज्ञापन दूरदर्शन के लिए दिया और अधिकतम उम्र 50 साल रखी। देश में यह पहली तरह का विज्ञापन था, जिसमें नौकरी के लिए अधिकतम  उम्र 50 साल रखी गयी थी और उस समय मेरी उम्र 48 साल की थी। विज्ञापन में इंटरव्यू के लिए जो तारीख रखी गयी उसी दिन चंडीगढ़ में मेरा लाइट एंड साउंड का  प्रोग्राम था, जिसे देखने के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री सब आये थे। इसके बाद मैंनेे संघ लोक सेवा आयोग को पत्र लिखा और कहा कि जिसके लिए आपने विज्ञापन दिया, वही प्रोग्राम उसी दिन है इसलिए मेरा इंटरव्यू बाद में किया जाये। इसके बाद आयोग ने मेरी बात को मानते हुए इंटरव्यू के लिए दूसरी तारीख तय कर दी। इसके बाद मैं चंडीगढ़ में प्रोग्राम करने के बाद रात 11 बजे एसी बस से चंडीगढ़ से नई दिल्ली रवाना हो गया और सुबह वहाँ पहुँच गया। जब संघ लोक सेवा आयोग पहुँचा और वहाँ पत्र दिखाया तो कार्यालय के एक अधिकारी ने कहा कि संघ लोक सेवा आयोग किसी को दोबारा नहीं बुलाता इस पर मैंने उनको पत्र दिखाया और कहा कि इस पर आयोग की मोहर लगी है। यह कहकर मैं वहाँ पड़ी बेंच पर सो गया कि मुझे आखिर में इंटरव्यू के लिए बुलाया जायेगा और ऐसा ही हुआ। इंटरव्यू के बाद मुझे दूरदर्शन के 24 निदेशकों से ऊपर वरिष्ठता मिली। इसके बाद मैं लखनऊ आना चाहता था। डेढ़ साल नई दिल्ली में रहा और वहाँ दूरदर्शन के महानिदेशक व सहायक महानिदेशक के बीच मैं जब पिसने लगा तो मैं लखनऊ आना चाह रहा था जबकि यहाँ का पद मेरे लिए जूनियर का था, बाद में जब लखनऊ दूरदर्शन अपग्रेड हुआ तो 1987 से 1993 तक लखनऊ दूरदर्शन का निदेशक रहा। इससे पहले लखनऊ व कानपुर आकाशवाणी में भी रहा। थियेटर के सफर के बारे में जब अवधनामा ने विलायत जाफरी से जानकारी चाही तो उन्होंने कहा कि 1956 से लेकर 1970 तक मैं और हबीब तनवीर साथ-साथ रहे फिर वह मध्य प्रदेश चले गये और मैं इधर रहा। इसी बीच पुराना किला, नई दिल्ली में लाइट एंड साउंड प्रोग्राम किया, शार्ट स्टोरी राइटर रहा फिर टीवी सीरियल नीम का पेड़ की कहानी लिखी, इसके 24 एपीसोड के संवाद डॉ.राही मासूम रजा ने लिखे थे बाद में उनकी मौत के बाद 34 एपीसोड के संवाद व पटकथा मैंने लिखी। इसके अलावा तमस, डिस्कवरी ऑफ इंडिया भी मेरे ही सीरियल थे। फिर शतरंज के मोहरे और चंद्रगुप्त मौर्या भी नाटक किया। विलायत जाफरी ने बताया कि शतरंज के मोहरे ऐसा पहला नाटक था, जो 1995 में लखनऊ के राजभवन  तथा फाइव स्टार ताजमहल होटल में खेला गया।
 फिल्म व थियेटर में अंतर के बारे में जब उनसे जानकारी चाही तो विलायत जाफरी ने कहा कि अगर सिनेमाहाल में एक भी आदमी है तो फिल्म चलती रहती और इसका आर्टिस्ट पर कोई असर नहीं पड़ता लेकिन थियेटर में ऐसा नहीं होता। थियेटर की 75 फीसदी कामयाबी दर्शकों पर रहती है। कितना ही अच्छा नाट्यकर्मी हो अगर हाल में दर्शक नहीं हैं तो वह नाटक नहीं कर सकता। यह पूछे जाने पर बहुत से थियेटर कलाकार फिल्मों में चले गये लेकिन फिर वह इधर नहीं पलटे। इस पर विलायत जाफरी ने कहा कि नहीं ऐसा नहीं है नसीरुद्दीन शाह आज भी थियेटर से जुड़े हैं और अंबरीश पुरी भी फिल्मोंं में व्यस्त रहने के बावजूद थियेटर से जुड़े थे। विलायत जाफरी ने कहा कि नयी पीढ़ी में धैर्य नहीं, वह थियेटर को फिल्म की सीढ़ी समझती है।
यह पूछे जाने पर कि विदेश में भी क्या थियेटर का पतन हुआ है। इस पर दूरदर्शन के पूर्व निदेशक ने कहा कि ऐसा नहीं है। लंदन में फिल्म इंडस्ट्री बहुत विकसित कर चुकी है लेकिन इसके बावजूद वहाँ थियेटर का क्रेज कम नहीं हुआ। वहाँ थियेटर के लिए लोग एडवांस में टिकट लेते हैं। लखनऊ  में थियेटर के स्तर के बारे में पूछे जाने पर विलायत जाफरी ने कहा कि अब ग्रुप कम हो गये हैं लेकिन इसके बावजूद कुछ ग्रुप अच्छा काम कर रहे हैं।
अवधनामा द्वारा यह पूछे जाने पर कि वह कितनी भाषाओं को जानते हैं और क्या वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी थियेटर से जुड़े। इस पर उन्होंने कहा कि मेरी मातृभाषा अवधी रही, इसके साथ उर्दू, हिंदी, अंग्रेजी, पंजाबी आदि भाषाएं जानता हूँ। जहाँ तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जुडऩे की बात है तो मैं प्राग चेकोस्लोवाकिया में हुए अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव की जूरी का सदस्य था। इसमें 14 देश थे और वहाँ सभी मेरी राय पर सहमत हो गये और आधे घंटे के अंदर सर्वश्रेष्ठ फिल्म का चयन हो गया। पहले इसके लिए तीन दिन का समय लगता था।
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