पार्टी के पुराने नेताओं का तर्क है कि रणनीति पर अमल के लिए सबसे पहले पार्टी को असमंजस दूर करना होगा। जैसे कि प्रदेश के प्रमुख पद (जो एक-एक ही हैं) प्रदेश अध्यक्ष प्रदेश के प्रभारी महासचिव विधानमंडल दल नेता प्रदेश कोषाध्यक्ष और प्रदेश कांग्रेस सेवादल प्रमुख पर सवर्ण ही हैं। इनमें एक भी दलित पिछड़ा या अल्पसंख्यक नहीं है।
दशकों से कांग्रेस की धूप-छांव देख रहे पुराने नेताओं के मन में कई सवाल हैं। जैसे कि अपने पुराने सवर्ण वोटबैंक की चिंता पार्टी को क्यों नहीं है? साथ ही जिस पिछड़े वर्ग पर राहुल गांधी ने खास जोर दिया है, उस वर्ग का कोई प्रमुख नेता ही उत्तर प्रदेश में पार्टी के पास नहीं है तो कैसे इस वर्ग को रिझाएंगे?
पिछड़ों की खुलकर राजनीति करेगी कांग्रेस
जिस पिछड़ा वर्ग के लिए कांग्रेस अब जोर लगाने की तैयारी कर रही है उसी पिछड़ा वोटबैंक से भाजपा मजबूत हुई है। अब अहमदाबाद अधिवेशन में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने बिना किसी क्षेत्रीय दल का नाम लिए संदेश दिया कि भाजपा से कांग्रेस ही लड़ सकती है। फिर पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों के लिए खुलकर राजनीति करने की रणनीति भी समझा दी।
चूंकि, पार्टी का शीर्ष नेतृत्व सवर्णों की बात नहीं करना चाहता तो यह नेता अपने वर्गों के वोट को आकर्षित भी नहीं कर सकते। इसी तरह पार्टी का पिछड़ों पर जोर तो है, लेकिन वर्तमान में इस वर्ग से पार्टी के पास प्रदेश स्तर का एक भी प्रमुख नेता नहीं है, जिसे चेहरा बनाया जा सके। अब बचता है दलित और अल्पसंख्यक। यह दोनों कांग्रेस के पुराने वोटबैंक रहे हैं। लेकिन इसमें सहोयगी दलों ने पैठ बना ली है और इसके लिए कांग्रेस की जद्दोजहद पार्टी को कितना फायदा पहुंचाएगी यह तो बाद की बात है
लेकिन गठबंधन में ही कलह जरूर बढ़ाएगी।
दरअसल, सपा नहीं चाहती कि कांग्रेस उसकी जमीन पर खड़ी हो। कांग्रेस क्या करेगी? इस प्रश्न पर एक प्रदेश पदाधिकारी कहते हैं कि पंचायत चुनाव कांग्रेस अकेले लड़ेगी और खामोशी से इन वर्गों में अपना आधार बनाने का प्रयास करेगी।