परमा व दोज पर फाग के चलते चारों तरफ उड़ा रंग
रंगों के साथ-साथ नशे का जादू भी सिर चढ़कर बोला
आधुनिकता के चलते विलुप्त हुईं पर्व की प्राचीन परम्पराएं
ललितपुर। होलिका दहन के बाद परमा व दोज दो दिनों तक जमकर होली खेली गयी। हालांकि परमा पर्व पर बुन्देलखण्ड में कीचड़ की होली खेलने की परम्परा है, लेकिन अब यह परम्परा ग्रामीण क्षेत्रों तक ही सीमित रह गयी। शहर में तो कहीं भी कीचड़ की होली खिलती दिखायी नहीं दी। आज दोज पर्व पर जमकर होली खेली गयी। मस्ती और धूम के इस पर्व पर जहां तरह-तरह के रंग फिजा में उड़ते रहे वहीं शराब और भांग का नशा हुरियारों के सिर चढ़कर बोला। ग्रामीण क्षेत्रों में बुन्देली लोक संस्कृति की परम्परा के अनुसार होली के जश्न मनाये गए। होली पर्व पर भी आधुनिकता का लबादा उड़ता दिखाई दिया। जगह-जगह आयोजित होली मिलन समारोह में पर्व की मूल परम्परायें नदारत दिखीं। वहीं आधुनिकता का जमकर प्रदर्शन हुआ।
भारतीय संस्कृति में होली को प्रमुख त्यौहार माना जाता है। होली पर्व को लेकर जनपद में कोई खास उत्साह दिखाई नहीं दे रहा था। होलिका दहन के दिन तो लग ही नहीं रहा था कि होली पर्व आ चुका है। पाश्चात्य संस्कृति व टी.वी.संस्कृति के बढ़ते प्रादुर्भाव ने युवाओं को भारतीय संस्कृति से एक दम विमुख सा कर दिया है। यही वजह रही कि होली पर्व पर हुरियारों की टोलियां न तो चंदा वसूलती दिखाई दीं और न ही उनमें होलिका दहन को लेकर उत्साह दिखा। लोगों में भारतीय पर्वों के प्रति उपेक्षा को अपशगुन के रूप में देखा जाने लगा है। लोगों का कहना है कि इस देश में पर्वों को मनाने की जो परम्परायें चली आ रही हैं उनका निर्वहन अवश्य होना चाहिए। भले ही प्र्रतीकात्मक ही सही कम से कम उनका अस्तित्व तो बचा रहेगा, अन्यथा आने वाली पीढ़ी इन पर्वों को पूरी तरह से भूल जाएगी।
होलिका दहन के पश्चात दूसरे दिन परमा पर्व पर कीचड़ की होली खेलने की परम्परा रही है, किन्तु इस परम्परा को तो लोगों ने पूरी तरह से बिसरा दिया है। ग्रामीण क्षेत्रों में जरूर कीचड़ की होली खेली गई, लेकिन शहरी क्षेत्र में तो इसका एक अंश भी दिखाई नहीं दिया। लोगवाग होली खेलना तो दूर अपने घरों से ही नहीं निकले। उन्होंने या तो टी.वी.सेट पर चलचित्रों का आनंद लिया अथवा मोबाइल फोन पर सोशल मीडिया से एक-दूसरे को संदेश भेजकर होली मनाई। होली के दो दिनों में हुरियारों के ठंडे पड़े जोश में आज दोज के दिन जरूर कुछ उबाल दिखाई दिया। होली दिवस पर सुबह से ही हुरियारों की टोलियां ढोल, नगाड़ों की थापों पर मदमस्त होकर रंगों की बरसात करने गलियों में निकल पड़ी थीं।
हुरियारों को रंग के अलावा भांग व शराब का नशा उनके सिर चढ़ कर बोला। जैसे-जैसे सूरज की किरणें तेज होती चली गईं वैसे-वैसे हुरियारों का जोश ठंडा पड़ता चला गया। अपरान्ह तक नगर की सभी गलियों में सन्नाटा छा गया था तथा हुरियारे रंग, भंग, शराब के नशे में मदहोश हो अपने ठिकानों पर दुबक गए थे। कुछ स्थानों पर परम्परागत ढंग से होली मनाई गई। आज होली पर्व को लेकर महिलाओं में भी खासा उत्साह दिखाई दिया। ननद-भौजाई, देवर-भाभी व सहेलियों के बीच जमकर खेली गई होली से महिलाओं की हालत देखने लायक थी। कई महिलायें तो रंग में ऐसी पुती दिखीं जिन्हें पहचानना मुश्किल था। ग्रामीण क्षेत्रों में रंगों से ज्यादा बुन्देली लोक गीतों की फुहारों ने ज्यादा आनंदित किया। फागों में देवर-भाभी के बीच रस्सा कसी व द्विअर्थी गीतों पर हुरियारे जमकर झूमे। पर्व पर किसी तरह का हुड़दंग न हो, इसके लिए पुलिस हुरियारों पर कड़ी निगाह रखे रही। जिसके फलस्वरूप कोई अनहोनी नहीं हो सकी। होली पर्व पर भांग, शराब का नशा हुरियारों के सिर चढ़ कर बोला।
होली पर दिखा बच्चों में खूब उत्साह
नगर में होली के त्यौहार को लेकर सुबह से ही गली- मोहल्लों और सड़कों पर एक अलग ही छटा देखी गई। बच्चों की टोलियां एक दूसरे को रंग-गुलाल लगाकर मस्ती में झूमती दिखी। युवाओं ने बड़े बुजुर्गों को तिलक लगाकर आशीर्वाद लिया। इस दौरान हर तरफ हवा में गुलाल- अबीर उड़ता दिखाई दे रहा था। बच्चों के द्वारा छतों से पानी की बौछारें मारी गई। गली-मुहल्ले में छोटे छोटे नन्हें मुन्ने बच्चे भी पिचकारी में गुलाल का रंग भरकर एक- दूसरे पर डालते हुए खुश हो रहे थे।