दस रमजान को हजरत खदीजा की याद में हुई सामूहिक कुरआन ख्वानी

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गोरखपुर। मंगलवार की सुबह चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर में पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पहली बीवी उम्मुल मोमिनीन (मोमिनों की मां) हज़रत सैयदा खदीजातुल कुबरा की याद में सामूहिक कुरआन ख्वानी हुई। उनकी ज़िंदगी पर रोशनी डाली गई। उनका यौमे विसाल (निधन) दस रमजान को हुआ था। वहीं मदरसा रजा-ए-मुस्तफा में फातिहा ख्वानी हुई।
चिश्तिया मस्जिद के इमाम मौलाना महमूद रजा कादरी ने कहा कि हजरत खदीजा बहुत बुलंद किरदार, आबिदा और जाहिदा महिला थीं। हजरत खदीजा ने गरीब मिस्कीनों की मिसाली इमदाद (मदद) की। अपने व्यापार से हुई कमाई को हजरत खदीजा गरीब, अनाथ, विधवा और बीमारों में बांटा करतीं थीं। हजरत खदीजा ने अनगिनत गरीब लड़कियों की शादी का खर्च भी उठाया और इस तरह एक बेहद नेक और सबकी मदद करने वाली महिला के रूप में दीन-ए-इस्लाम ही नहीं पूरे विश्व के इतिहास में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा। पैग़ंबरे इस्लाम ने जब ऐलाने नबुव्वत किया तो महिलाओं में सबसे पहले ईमान लाने वाली महिला हजरत खदीजा थीं। खातूने जन्नत हजरत फातिमा जहरा उन्हीं की बेटी हैं।
मदरसा रजा-ए-मुस्तफा के शिक्षक कारी मुहम्मद अनस रजवी ने कहा कि हजरत खदीजा का मक्का शरीफ में कपड़े का बहुत बड़ा व्यापार था। उनका कारोबार कई दूसरे मुल्कों तक होता था। हजरत खदीजा की बताई तालीमात पर अमल करके दुनिया की तमाम महिलाएं दीन व दुनिया दोनों संवार सकती है। हजरत खदीजा बेवा (विधवा) थीं। उन्होंने पैगंबरे इस्लाम हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अख्लाक, किरदार, मेहनत, लगन और ईमानदारी से प्रभावित होकर निकाह का पैगाम भेजा, जिसे उन्होंने कुबूल कर लिया। उस वक्त पैग़ंबरे इस्लाम की उम्र 25 साल जबकि हजरत खदीजा की उम्र चालीस साल थी। इस तरह हजरत खदीजा पैग़ंबरे इस्लाम की पहली बीवी बनीं। अंत में सलातो-सलाम पढ़कर मुल्क में अमन व अमान की दुआ मांगी गई। इस मौके पर इकरार अहमद, नवाब अहमद, अज्जन कुरैशी, असलम, फुजैल, रिजवान करीम, फैजान अली, आतिफ अली, बब्लू आदि मौजूद रहे।
रहमत का अशरा खत्म, मगफिरत का शुरू
मंगलवार की शाम रहमत का अशरा खत्म हो गया। माह-ए-रमजान का दसवां रोजा व पहला अशरा रहमत का अल्लाह की रजा में बीता। रोजेदारों ने रोजा, नमाज, तिलावत, तस्बीह, खैरात व जकात के जरिए अल्लाह को राजी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। तहज्जुद, इशराक, चाश्त, सलातुल अव्वाबीन, सलातुल तस्बीह की नमाज कसरत से पढ़ी। दस दिन तक अल्लाह की खास रहमत मुसलमानों पर बराबर बरसी। नेकियों व रोजी (कमाई) में वृद्धि हुई। हुसैनी जामा मस्जिद बड़गो में तरावीह की नमाज़ में एक कुरआन-ए-पाक मुकम्मल हो गया। हाफ़िज़-ए-कुरआन को तोहफों से नवाजा गया।
वहीं मंगलवार की शाम से रमजान का दूसरा अशरा मगफिरत का शुरू हो गया। रोजेदारों की पूरी कोशिश रहेगी कि वह खूब इबादत कर अल्लाह से मगफिरत तलब करें। बाजार में खरीदारी रफ्तार पकड़ रही है।
हाफिज गुलाम जीलानी ने बताया कि तीस दिनों तक चलने वाले इस मुकद्दस रमजान को तीन हिस्सों में बांटा गया है। रमजान का पहला अशरा रहमत, दूसरा मगफिरत, तीसरा जहन्नम से आजादी का है। मालूम हुआ कि यह महीना रहमत, मगफिरत और जहन्नम से आजादी का महीना है। लिहाजा इस रहमत, मगफिरत और जहन्नम से आजादी के ईनाम की खुशी में हमें ईद मनाने का मौका मिलेगा।
इफ्तार की दुआ रोजा खोलने के बाद पढ़नी चाहिए : उलमा 
रमज़ान हेल्पलाइन नंबर 9454674201 पर मंगलवार को सवाल-जवाब का सिलसिला जारी रहा।
1. सवाल : इफ्तार की दुआ कब पढ़नी चाहिए?
जवाब : इफ्तार की दुआ रोजा खोलने के बाद पढ़नी चाहिए। पहले बिस्मिल्लाह करके रोजा खोल लें इसके बाद इफ्तार की दुआ पढ़ें।
2. सवाल : क्या जिस्म के किसी हिस्से से खून निकलने से रोजा टूट जाता है?
जवाब : नहीं सिर्फ खून निकलने से रोजा नहीं टूटता। हां अगर मुंह से खून निकला और हलक के नीचे उतर गया तो रोजा टूट जाएगा।
3. सवाल : क्या जकात के पैसों से इफ्तार करा सकते हैं?
जवाब : नहीं जकात के पैसों से इफ्तार नहीं करा सकते हैं। हां उन पैसों से राशन वगैरा खरीद कर किसी गरीब को मालिक बना दें तो जकात अदा हो जाएगी।
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