”P.K.” आया, ”P.K.” चला गया-वक़ार रिज़वी

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वक़ार रिज़वी
बड़ा शोर था कि इस बार वह आ रहा है, जिसने मोदी जी के संसदीय चुनाव को मैनेज कर उन्हें अद्भुत कामयाबी दिलायी। इस बार वह आ रहा है जिसने नितीश कुमार के चुनाव की जि़म्मेदारी उठाकर बिहार में मोदी जैसी करिश्माई शख़्शियत को भी शिकस्त दे दी। इसे ही देखकर शायद कांग्रेस ने भी सोचा होगा कि जब इन दोनों को यह करिश्माई व्यक्ति कामयाबी दिला सकता है तो हमें क्यों नहीं। हम भी इस करिश्माई व्यक्ति की शरण में क्यों न चले जायें। ग़ैर चापलूस तमाम सीनियर वफ़ादार कांग्रेसियों ने इसे पसन्द नहीं किया, विरोध भी किया, लेकिन उन्हें साइड लाइन कर दिया गया, हर अहम फ़ैसले से उन्हें दूर रखा गया, हद यह हो गयी कि डॉ. अम्मार रिज़वी जैसी शख़्िसयत जिन्होंने न सिफऱ् अपने 50 साल कांग्रेस को दिये बल्कि उस वक़्त दिये जब कांग्रेस 27 सालों से सत्ता से बाहर थी और सत्ताधारी पार्टियों के दरवाज़े उनका स्वागत करने को बेकऱार थे लेकिन चापलूसों ने कांग्रेस की लीडरशिप को चढ़ाये रखा कि बस आप ही जीत रहे हैं, वह सब के सब इतने बेख़बर थे कि कांग्रेस जैसी देश की सबसे पुरानी पार्टी जब 100 सीटों पर लड़ेगी तो 300 सीटों पर अपने आप अपना जनाधार खो देगी, हुआ भी कुछ ऐसा ही। अभी भी उसका छह प्रतिशत रिवायती वोट था, जो इस हाल में भी कांग्रेस को मिलता था। 300 जगहों पर उसकी ग़ैरमौजूदगी ने यह वोट भाजपा में ट्राँसफऱ कर दिया और जिन जगहों पर वह लड़े वहाँ उन्हीं के एलाइंस पार्टनर ने उनको हरा दिया। नतीजा इतने बड़े प्रदेश में  कांग्रेस सात सीटों पर सिमट गयी। यह सब हुआ किसके कहने पर  वही प्रशांत किशोर जिन्होंने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनवाया और नितीश कुमार को मुख्यमंत्री। अब यह तो वह ख़ुद ही बेहतर बता सकते हैं कि इस बार वह कांग्रेस को जिताने के लिये आये थे या किसी और के इशारे पर हराने के लिये आये थे क्योंकि उन जैसे तजुर्बेकार व्यक्ति से ऐसे मैनेजमेंट की उम्मीद कोई नहीं कर सकता। जब प्रशांत किशोर के बारे में भाकपा के राष्ट्रीय सचिव कामरेड अतुल कुमार अंजान से कुछ जानना चाहा तो उन्होंने बेहद सादगी से एक जुमले में ही जवाब दे दिया कि “P.K” आये थे “P.K”  चले गये।
वक़ार रिज़वी
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