भजन केवल कान को सुख प्रदान करते हैं लेकिन कथा मनुष्य को तार देती है: प्रेमभूषण जी महाराज

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भगवान की कथा गंगा जी के समान है और यह जहां भी उपस्थित होती है वह स्थान तीर्थ बन जाता है। मनुष्य जब तीर्थ में पहुंच जाता है तो वह अपने आप तीर्थ के प्रभाव से तर जाता है। कुछ लोग भजन सुनकर सुख का अनुभव करते हैं, परंतु भजन तो केवल कान को ही सुख देता है। जीव का कल्याण तो कथा ही करती है। भगवान की कथा मनुष्य को भगवान के शरण में पहुंचा देती है।

उक्त बातें जौनपुर के बीआरपी इंटर कॉलेज मैदान में निर्मित कथा मंडप में श्री राम कथा का गायन करते हुए दूसरे दिन सोमवार को प्रेमभूषण महाराज ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए कहीं। उन्हाेंने समाजसेवी ज्ञान प्रकाश सिंह के आयोजित सप्त दिवसीय रामकथा के दूसरे दिन व्यासपीठ से रामकथा महिमा और भगवान के प्राकट्य की कथा का गायन करते हुए कहा कि रामचरितमानस में भी इसका वर्णन है कि जब हनुमान जी ने माता सीता को भगवान की कथा सुनाई तो उनका सारा दु:ख भाग गया। हनुमान जी ने भगवान की कथा विभीषण को सुनाई तो उन्हें भगवान की शरणागति मिल गई। भगवान की कथा मनुष्य के हृदय के ताप को मिटाकर सभी संशय का नाश कर देती है। श्री राम कथा मनुष्य को सुखी जीवन के मार्ग और साधन प्रदान करती है। इस कलिकाल में राम कथा मनुष्य को पाप से बचाने के लिए कलमषी वृक्षों को काटने के लिए कुल्हाड़ी का कार्य करती है। राम कथा श्रवण करने वाला भटकने से बच जाता है और सत्कर्म में उसकी गति हो जाती है।

उन्हाेंने कहा कि मनुष्य को अपने जीवन में कुछ भी प्राप्त करने के लिए तपस्या करना आवश्यक है। पीढ़ियों के तप के कारण इक्ष्वाकु वंश में रामजी का आगमन हुआ था। भगवान राम ने 14 वर्ष का वन प्रवास स्वीकार कर हमें यह बताया कि बिना तपे (तपस्या) इस धरती पर कुछ भी प्राप्त नहीं होना है। मनुष्य अगर सत्संग और कथा में रहते हुए अपने सभी सांसारिक दायित्वों का निर्वाह करे तो उनकी मति और गति अपने आप सत्कर्मों में होने लगती है। महाराज ने कहा कि भारत की पुण्य भूमि पर ही भगवान का अवतार होता रहा है। कभी अंशावतार तो कभी विशिष्ट अवतार और तो कभी पूर्णावतार के रूप में भगवान इस धरती पर आकर इस धरती को धन्य करते रहे हैं। दुनिया के किसी भी देश में भारत के तरह बच्चों को भी महत्व नहीं मिल पाता है यह हमारा सौभाग्य है कि हमारे भारतवर्ष के बच्चे ममता की छांव में पलते हैं।

महाराज ने कहा कि भगवान को तर्क से नहीं जाना जा सकता है। सामान्य व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने जीवन के सभी क्रियाओं में संयुक्त रहते हुए भजन में भी प्रवृत्त हों। सत्कर्म सोचने से नहीं होता है, सत्कर्म के लिए सोचने वाले सोचते रह जाते हैं लेकिन करने वाला तुरंत उस कार्य को पूरा कर लेता है। जीवन में सफल होने का एक महत्वपूर्ण सूत्र यह भी है कि अगर हमारा सोचा हुआ कोई कार्य हो जाए तो उसे हरि कृपा माने और अगर ना हो तो उसे हरि इच्छा मान लें।

मनुष्य अपने अर्थ और संपत्ति का उत्तराधिकारी तो बन जाता है लेकिन अपने परमार्थ पथ का उत्तराधिकारी कोई-कोई बना पाता है।

प्रेमभूषण महाराज ने श्री राम कथा गायन के क्रम में श्री राम के मानव शरीर धारण करने के कारणों और प्राकट्य से जुड़े प्रसंगों की चर्चा करते हुए कहा कि अपने जीवन काल में ही हमें अपने परमार्थ पथ का उत्तराधिकारी तैयार करने की आवश्यकता है, तभी तो कई पीढ़ियों तक परमार्थ चलता रहता है। कहा कि राम जी की भक्ति प्राप्त करने के लिए हमें शिव जी की कृपा प्राप्त करनी पड़ती है। सनातन धर्म और संस्कृति किसी एक व्यक्ति की बनाई हुई नहीं है। सबसे अधिक अत्याचार सनातन धर्म पर ही होते आए हैं फिर भी हमारे संस्कृति पूरे विश्व में अपना सर्वोच्च स्थान बनाये रखने में सक्षम है। जीवन में सदा सुखी रहने का सूत्र बताते हुए कहा कि जीवन में सुख और शांति चाहते हैं तो हमें भगवान की शरणागति के साथ ही साथ प्रेम और शांति का अनुसरण करना चाहिए। इस आयोजन के मुख्य यजमान ज्ञान प्रकाश सिंह ने सपरिवार व्यास पीठ का पूजन किया और भगवान की आरती उतारी।

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