आखिरकार महिला सैन्य अफसरों की हुई जीत

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रजनीश कुमार शुक्ल
17 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अब थलसेना में महिला अफसरों को बराबरी का हक मिलने का रास्ता साफ हो गया। सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है वह बहुत ही सराहनीय है क्योंकि महिलाओं को उपेक्षित करना कहां तक सही है। एक तरफ तो उनको बराबरी देने का ढिंढोरा पीटा जाता है तो दूसरी तरफ उन्हें उपेक्षा का दंश झेलना पड़ता है। यह केवल सेना का ही मामला नहीं है। यह सभी सेक्टरों पर लागू होना चाहिए क्योंकि कहीं न कहीं हर जगह महिलाओं को जो मिलना चाहिए था वह उन्हें मिल नहीं पा रहा है।
आखिरकार हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीक कोर्ट की मुहर लगने के बाद भी तत्कालीन केन्द्र सरकार का रवैया महिला सैन्य कर्मियों के खिलाफ क्यों था? क्या महिलाएं ऐसा कार्य नहीं कर सकती जो पुरुष सैन्यकर्मी करते हैं? देखा जाए तो जब-जब आवश्यकता पड़ी है तब-तब महिला सैन्य कर्मियों ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए अपने कार्यों को निपुणता से निभाया है। अभी हाल में ही 71वें गणतंत्र दिवस में केन्द्रीय रिर्जव बल की महिला बटालिया बाइकर्स ने अपना दमखम पेश किया जो अत्यंत अचम्भित करने वाला था।
केन्द्र का ऐसा कहना गलत है कि शारीरिक सीमाओं और सामाजिक मानदंडों के चलते महिला अफसरों को स्थाई कमीशन नहीं दिया जा सकता। यह भी कहना सही नहीं है कि उनकी कमान्ड को पुरुष सैन्यकर्मी स्वीकार नहीं करेंगे। ऐसा बेतुका सवाल समझ नहीं आ रहा है। महिलाओं की छमता को हमारे देश ने देखा और जाना है आज कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ महिलाएं बड़ी-बड़ी पोस्ट पर तैनात हैं लेकिन क्या उनके सहकर्मी उनकी बातों को मानने से इंकार कर दें ऐसा सम्भव है।
अगर आईएएस की ही बात कर लें तो इस समय देश के तमाम हिस्सों में महिलाओं की तैनाती है लेकिन ऐसा नहीं है कि उनके साथ कार्य करने वाले उनके कार्यों और निर्देशों को न मानें। अगर ऐसा होने लगे तो सभी जगहों में अव्यवस्था सी फैल जायेगी और फिर वही दौर शुरू हो जायेगा जैसा पहले के समय में था। जो पर्दा प्रथा और सती प्रथा के समय का दौर था। आज हम महिला उत्थान और महिलाओं की सामाजिक बराबरी की बात की जाती है लेकिन सभी जगहों में महिलाओं को बराबरी न मिलना शर्मनाक है।
यूपीए सरकार जो आज विभिन्न मुद्ïदों पर आज आवाज उठा रही है उस वक्त कहा थी जब हाईकोर्ट ने महिला सैन्य कमिर्यों को स्थाई कमीशन देने का आदेश दिया था। आज महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों पर तुरन्त मुद्ïदा बनाया जा रहा है, तब महिलाओं को बराबरी देने का मन नहीं था या कुछ और, जो अब ऐसा हुआ यह आज से बहुत समय पहले ही हो जाना चाहिए था। समय की मांग को दरकिनार करना कहाँ का अच्छा कदम है, लेकिन जो हुआ अच्छा हुआ।
बेशक यह फैसला उनके स्थाई कमीशन को लेकर आया है और इसमें युद्धक्षेत्र में उनके काम करने को लेकर कुछ ठोस नहीं कहा गया है, लेकिन यह आदेश भरोसा जगाता है। उम्मीद है कि जल्द ही महिलाएं दुश्मनों से मोर्चा लेने की सबसे अगली कतार में खड़ी दिखेंगी। दरअसल, सेना के सभी युद्धक अंग अपनी-अपनी जरूरतों के हिसाब से कोर्स कराते हैं। चूंकि अब तक युद्धक अंगों में इन्फेंटरी, आर्मर्ड और आर्टिलरी में महिलाओं को कमीशन नहीं दी गई है, इसलिए महिलाएं इनमें कोर्स कर ही नहीं सकतीं। बाकी सभी अंगों में वे कमीशंड होती रही हैं। ट्रेनिंग खत्म करते ही बतौर लेफ्टिनेंट उनकी नियुक्ति होती थी। अब स्थाई कमीशंड होते ही पुरुषों के समान लेफ्टिनेंट कर्नल के ऊपर पदानुक्रम में तरक्की पाने का उन्हें मौका मिलेगा। उनमें नए उत्साह का संचार होगा। जोश-जुनून के साथ वे आगे बढऩे के बारे में सोचेंगी।
खैर अब उन महिला अफसरों की मेहनत रंग लाई जिन्होंने इसी मुद्ïदे पर अलग-अलग याचिकाएं दायर की थी। उनके इस मेहनत ने न सिर्फ उनको बल्कि आने वाले समय की सभी महिला अफसरों के लिए एक अच्छा रास्ता खोल दिया और सभी को बराबरी का हक दिलाने का सशक्त मार्ग दिया है।
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