आखिऱ कर्बला है क्या?

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(5 मोहर्रम) कर्बला इंसानसाज़ी की दर्सगाह
वकार रिज़वी
”1400 साल पहले होने वाली कर्बला की गूंज उसकी आवाज़ आज भी वैसे ही बाक़ी है। जबकि इसका जि़क्र कल ममनूं था कल इसके जि़क्र में बहुत सखि़्तयां थी लेकिन इसका जि़क्र करने में लोगों ने अपनी जान की परवाह नहीं की और करबला का जि़क्र करते रहे क्योंकि:-
कर्बला एक अलामत है इंसानियत की
कर्बला एक अलामत है एहतिजाज की
कर्बला एक अलामत है इंक़ेलाब की
कर्बला एक अलामत है ज़ुल्म और जब्र के खि़लाफ़ अपना एहतिजाज रक़म करने की
कर्बला एक अलामत है तब्दीली की
कर्बला एक अलामत है सदाक़त और इंसाफ़ की हिफ ़ाज़त की
कर्बला कोई एक छोटी सी जंग नहीं जो एक दिन में अंजाम पा गयी, कुछ लोग शहीद हो गये कुछ लोग बज़ाहिर कामयाब हो गये। कर्बला ने जो तारीख़ रक़म की यह तारीख़ हमेशा हमारे सामने हर मौक़े पर हमारी रहनुमाई के लिये है ऐसा नहीं है कि करबला की यह तारीख़ हम कभी भूल गये, करबला की यह तारीख़ किसी एक फिऱक़े एक तबक़े तक महदूद नहीं है।ÓÓ
कर्बला के बारे में सही तरह से न मैं ख़ुद समझ पाता और न किसी और को समझा पाता अगर मोहर्रम की फ ़ोटो नुमाईश में प्रोफ़ेसर शारिब रूदौलवी साहब की चंद मिनट की बेहद मुख्तसर मुंदर्जाबाला त$करीर न सुनी होती।
लेकिन हम जब उनके इस जि़क्र के ज़ैल में कर्बला को आज के ज़बानी जमा ख़र्च माहिर-ए-खि़ताबत ज़ाकिरीन के नुक़्तए नजऱ से देखते हैं तो बज़ाहिर लगता है कि कर्बला में यह कोई सिफ ़ाअत नहीं पायी जाती अगर उन्होंने कर्बला कि यह सारी सिफ़ ाअत से हमें आशना कराया होता तो आज सबसे ज़्यादा इंसानियत हमारे यहां पायी जाती नाकि यह हिस्सेदारी मदर टेसा और जमात-ए-इस्लामी के नाम होती, अगर कर्बला एहतिजाज की अलामत है ठीक से समझाया गया होता तो हुकूमत बदलने के साथ ‘हुसैनी टाइगर्सÓ ‘गौ रक्षकÓ न बन गये होते, अगर कर्बला इक़ेलाब, ज़ुल्म और जब्र के खि़लाफ़ अपना एहतिजाज रक़म करने की अलामत ठीक से समझायी गयी होती तो हम मंदिरों में आरती और घंटे बजाने के साथ न गाय को राखी बांधते दिखायी देते और न ही वक्फ़़ की ज़मीन पर मंदिर बनवाने को उतावले होते।
कर्बला अलामत है इसार और क़ुरबानी की जिसे कर्बला वालों नें अपने अमल से बताया जिसका सूबूत कर्बला के मैदान में जनाबे ज़ैनब ने अपने बच्चों को क़ुरबान करके दिया। हम सब जानते हैं कि एक ख़ातून के लिये दुनियां में जो सबसे ज़्यादा प्यारी चीज़ है वह उसकी औलाद, उससे ज़्यादा दुनियां में उसे कोई प्यारा नहीं, लेकिन कर्बला के मैदान से जनाबे ज़ैनब ने यह दर्स दिया कि अगर मक़सद अज़ीम हो तो उसके आगे कोई प्यारी से प्यारी चीज़ भी प्यारी नहीं। आज आप दिनभर इसका जि़क्र सुनेंगें सुनकर ख़ूब गिरिया करेंगें लेकिन याद रखें सिफऱ् गिरिया ही कर्बला का मक़सद नहीं गिरिया तो अलामत है आपके सीने में दिल के धड़कने की आपके जिन्दा रहने की, मोहब्बत का तक़ाज़ा है कि आप जिससे मोहब्बत करें उसके ग़म में आपकी आखों से बेसाख़्ता आसूं छलक आयें लेकिन कर्बला हमारे लिए एक दर्सगाह है, इसे न भूलें इतनी अज़ीम क़ुरबानिया यूं ही नहीं दी गयीं उसके मक़सद को ज़ाया न होने दें उसे बाक़ी रखें।
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