हमारा मक़सदे खि़लकत कोई नहीं?

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वक़ार रिज़वी
अल्लाह ने हमें बेसबब पैदा कर दिया? हमारा मक़सदे खि़लकत कोई नहीं ? हमसे कोई सवाल न होगा कि हमनें तुमको अक़्ल देकर जानवरों पर तरजीह दी, इसके अलावा तुमकों हमने तमाम उन नेमतों से नवाज़ा जिसके तुम हरगिज़ मुस्तहक़ न थे, और तुमनें उन नेमतों को सिफऱ् अपने बाल बच्चों तक महदूद रखा? 
तो क्या इसके लिये जानवर काफ़ ी न थे? आखिऱ वह भी तो अपने बच्चों की परवरिश कर ही लेते हैं? या सिफऱ् और सिफऱ् इबादत के लिये ही पैदा किया? अगर सिफ़ इबादत के लिये पैदा किया? तो क्या फ़रिश्ते कम थे जो हर लम्हें बस इबादत ही करते रहते हैं, इन्हीं के साथ हम इंसानो की भी खि़लकत हो जाती तो न कोई दुनियां की ख़्वाहिश होती, न बाल बच्चों की कोई जि़म्मेदारी, न इंसानी हुक़ूक की अदायगी। बस इबादत ही इबादत उन फ़रिश्तों के साथ हम लोग भी हर लम्हें इबादत में मशग़ूल रहते।
हम अपने आफि़ स में एक अदना सा मुलाजि़म रखते हैं या स्कूल में टीचर रखते हैं, अपने मोहल्ले में एक कारपोरेटर चुनते हैं, या किसी एम.एल.ए. जिसको बनाने में हमारा कोई वोट हो या न हो, हम हर एक से सवाल करते हैं कि तुमकों जिस काम के लिये चुना गया वह तुमने अंजाम दिया या नहीं? फि र चाहे मुख्यमंत्री हो या प्रधानमंत्री। सबसे एक ही सवाल होता है कि जिसक काम की जि़म्मेदारी इन्हें दी गई उसे कितनी पूरी की? इसका जवाब अब कोई अगर यह दे कि तमाम वाजिबात के बात नवरोज़ को दिन भर आमाल किये, फि र रजब, शाबान के पूरे महीने आमाल किये, रमज़ान की तो रातों को भी आमाल किया, सवा दो महीनें क्या दिन और क्या रात सब एक कर दिये फि र जो वक़्त बचा अपने बच्चों का मुस्तक़बिल संवारने में लगा दिया, इसके बाद भी अगर कुछ वक़्त बच गया तो मोलवी के भेट चढ़ गया, कभी उन्होंने कहा कि यह दुआ पढ़ी तो इतने हज़ार गुनाह माफ़ यह अमल किया तो सारी हाजतें पूरी, यह किया तो 70 हाजतमंदो को खाना खिलाने का सवाब, यह किया तो यह सवाब और यह किया तो यह सवाब।
अब आप इंसाफ़ से बतायें कि एक आफि़स जिसनें आपको तमाम सहूलियतें दी वह यह सुनकर क्या यह न कहेगा कि यह जो कुछ आपने किया वह सिफऱ् अपने लिये यह आपका ज़ाती अमल है आपके ज़ाती फ़ायदे के लिये, इससे हमें क्या लेना देना आप तो यह बताये कि आपको जिस काम के लिये रखा गया था उसकी आपने कितनी जि़म्मेदारी निभायी? क्या मोहल्ले वाले अपने कारपोरेटर को 5 साल बाद सिफऱ् इसलिये नहीं बदल देते कि इसे जिस लिये चुना गया था उसने वह काम नहीं अंजाम नहीं दिया, यह कारपोरेटर क्या प्रदेश और केन्द्र की पूरी पूरी हुकूमतें इसी बुनियाद पर बदल दी जाती हैं कि इनकी खि़लकत जिस मक़सद के लिये की गयी थी वह मक़सद इन्होंने अपने मुअयना वक़्त में पूरा नहीं किया। ऐसे में अल्लाह हमसे कोई सवाल नहीं करेगा कि हमने तुमको तवील उम्र दी, अक़्ल दी, इल्म दिया, दौलत दी, ताक़त दी, इक़तेदार दिया और तुमनें इसे बस अपने और अपने बच्चों की आराईश के लिये महदूद कर लिया जबकि हमनें अपनी किताब क़ुरआन मजीद में बार बार कहा कि हमनें जो तुमको दिया उसे हमारी राह में ख़र्च करो। क्या सवाल न होगा कि हमनें तुमको अक़्ल दिया तुमने उस अक़्ल के ज़रिये हमारी बनायी इस दुनियां में क्या तहक़ीक़ात की? किन छिपे हुये राज़ों को अयां किया ? हमने तुम्हें इल्म की दौलत से मालामाल किया तो तुमने अपने इल्म से अल्लाह की राह में कितनी इल्म की रौशनी फैलायी जिससे जेहालत के अंधेरे दूर हुये ? हमनें तुमको दौलत से मालामाल किया तो तुमने अपने समाज की कितनी ग़ुरबत को ख़त्म कर दिया, हमनें तुमको ताक़त दी तुमने कितने मज़लूमों का साथ दिया हमनें तुमको इक़तेदार दिया तो तुम समझ बैठे कि यह इक़तेदार तुम्हें दुनियां के किसी शख़्स ने दिया है इसीलिये तुम उसी की आरती उतारने लगे।
इसलिये हम सबको अपने आलिमे दीन से जानना चाहिये कि हमारा मक़सदे खि़लकत क्या है ? अल्लाह ने हमें इस दुनियां में क्योंकर भेजा ? हमसे भी क्या उसकी बारगाह में कोई सवाल होगा ? अगर होगा तो क्या ?
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