सभी समस्याओं का एक हल

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सभी समस्याओं का एक हल
भारत, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, जनसंख्या के हिसाब से दुनिया का दूसरे नम्बर का देश, सैकड़ों भाषाएं , हज़ारो बोलियां 29 राज्यों में बटा हुआ देश फिर भी एक है। दुनिया के हर धर्म के लोग यहां ससम्मान रह रहे हैं। ऐसी और भी तमाम  बातें हैं जो एक हिंदुस्तानी गर्व से अपने देश के बारे में कह सकता है। दुनिया को दिखाने के लिए हम और भी कई कसीदे पढ़ सकते हैं अपने देश के बारे में पर जब हम अपने देश के ही किसी आदमी से बात करते हैं तो ये सारी खूबियां विलुप्त हो जाती हैं, वहां शुरू होती हैं देश की समस्या। इस देश का कुछ नही हो सकता, सब सरकारें एक जैसी है, किसी को देश की पड़ी ही नही है, व्यापारियों की कोई सुनता ही नही है, किसानों के लिए कोई कुछ करता ही नही है, सीमा पर जवान शहीद हो रहे हैं और किसी को कोई फर्क ही नही है और ऐसी न जाने कितनी समस्याएं हैं देश मे जो कहीं न कहीं हर आदमी को परेशान करती हैं। हर देशवासी इसका हल चाहता है तो क्या इसका कोई हल नही है? क्या ये समस्याएं देश मे ऐसी ही बनी रही रहेंगी? क्या वास्तव में किसी सरकार ने इन समस्याओं के लिए कोई सार्थक कदम नही उठाया? और अगर उठाया गया तो ये समस्याएं जस की तस कैसे हैं? क्यों कि इन समस्याओं का जड़ से इलाज नही हो रहा है, केवल ऊपरी सफाई हो रही है। इन समस्याओं की जड़ें धीरे धीरे अपने पैर और गहरे  से  पसार रही हैं, और उस पर कोई रोकथाम नही है, कोई कानून नही है और वो समस्या है देश की जनसंख्या।
जी हां मित्रों इस देश की जनसंख्या ही इस देश की सबसे बड़ी समस्या है। देश के विकास के लिए सहायक की जगह आज यही जनसंख्या सबसे बड़ी बाधक हो गयी है। हमारे प्रधानमंत्री मंच से न जाने कितने बार सवा सौ करोड़ देशवासियों का संबोधन कर चुके हैं और न जाने कब देखते ही देखते हम सवा सौ करोड़ से 135 करोड़ पहुच गए पता ही नही चला लेकिन अभी भी प्रधानमंत्री जी का संबोधन सवा सौ करोड़ पर है अटका हुआ है। शायद उन्हें भी अंदाजा नही की देश की जनसंख्या इस तेजी से बढ़ रही है।
इस जनसँख्या की रोकथाम के लिए देश मे एक बच्चे का कानून लाना बहुत जरूरी है, लेकिन कोई पार्टी और कोई नेता इस बाबत विचार नही करता क्यों कि ये पार्टी के वोट बैंक पर असर डालेगा, यहां पर कुछ नागरिकों की धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं और कुछ नागरिक आज भी बेटे के चक्कर में न जाने कितनी संताने पैदा कर रहे हैं। इन पर रोकथाम की जरूरत है लेकिन कोई सरकार या कोई पार्टी ऐसा कदम नही उठाएगी क्योंकि पार्टियां देश गवां सकती है पर वोट नहीं।
कोई भी सरकार देश  के लिए कोई योजना बनाती है तो वह ज्यादा से ज्यादा 4 या 5 साल ही असरदार होती है उसके बाद वो योजना अपना दम तोड़ने लगती है। मान लीजिये सरकार ने सड़क चौड़ी करने का कार्य किया , कार्य पूर्ण होने पे लोगों को जाम से निजात मिल गया पर 5 साल बाद वहां की स्तिथि फिर वही हो जाती है जो पहले थी। कारण अप्रत्याशित ढंग से बढ़ती जनसंख्या। 
ये तो एक उदाहरण मात्र है आप किसी भी योजना को उठा लीजिये सब आपको जनसंख्या की वजह से या तो दम तोड़ती दिखेगी देंगी या बेहद धीमी गति से रेंगती हुई दिखाई देंगी। हॉस्पिटल के बाहर लगी हुई लंबी लाइन हो या रिज़र्वेशन करवाने के लिए खड़े लोग हो, समस्या ये नही की देश मे हॉस्पिटल कम हैं या ट्रैन पर्याप्त नही हैं, समस्या है कि जनसंख्या इतनी ज्यादा है कि कुछ भी पर्याप्त नही पड़ता। इस मामले में हमे पड़ोसी मुल्क चीन से सीखना चाइये जहां जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू है और शायद तभी हम कुछ है दिनों में चीन की जनसंख्या को पछाड़ कर एक नंबर के पायदान पर पहुच जाएंगे।
मित्रों सरकार सोचे न सोचें लेकिन वक्त आ गया है कि हमे खुद इस बाबत सोचना होगा। जति धर्म से ऊपर उठ कर इस कानून को भारत मे भी लागू करवाने के लिए आवाज उठानी होगी शायद तभी हम आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ छोड़ पाएंगे वर्ना उनके उपभोग की सभी चीजें हम ही उपभोग कर डालेंगे।
यकीन मानिए मित्रों नियंत्रित जनसंख्या के साथ बहुत कुछ संभव है, हम 5 नही अगले 50 साल की योजनाएं बना सकते हैं अगर जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू हो जाये।
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