विश्व आटिज्म जागरूकता दिवस के उपलक्ष्य मे स्कार्ड संस्था (सोशल कलेक्टिव एक्शन फॉर रिसर्च एंड एक्शन) ने आज एक सेमिनार का आयोजन किया।इस सेमिनार मे ये बात सामने आयी की ऑटिज्म बीमारी की पहचान 2-3 साल की छोटी उम्र से होने लगती है. ऐसे में जरूरी है कि बेहतर रिजल्ट के लिए मां-बाप जल्द से जल्द अपने बच्चों का इलाज शुरू करवाएं.
स्कार्ड संस्था के अध्यक्ष विपिन अग्निहोत्री ने बताया कि ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों में इस बीमारी का प्रभाव कम करने के लिए लोगों को कदम उठाना पड़ेगा. वैसे बच्चों को लोगों को समझना होगा.
बकौल विपिन, ऑटिज्म या ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर कई तरह के होते हैं. इसमें सामाजिक तालमेल से लेकर बोलने में आने वाली दिक्कतें, बातें दोहराने के अलावा कई अच्छी आदतें भी आती हैं.
वही संस्था की सेक्रेटरी अर्चना सिंह ने ऑडियंस को इस बात से रूबरू कराया की ऑटिज्म पर्यावरण के प्रभाव और वंशानुगत फैक्टर के मेल से होता है. अर्चना के मुताबिक अगर एक बच्चा बोलने के दौरान आंखें नीची किए हुए रहता है या नाम या इशारे से बुलाने पर भी जवाब नहीं देता है तो डॉक्टर से फौरन संपर्क करना चाहिए.
सेमिनार मे उपस्थित साक्षी शिवानंद, जो मिस नार्थ इंडिया प्रिंसेस मे सेकंड रनर उप रही ने बताया की आटिज्म से पीड़ित बच्चों का इलाज सही समय पर होना बहुत ज़रूरी है. संस्था के प्रोजेक्ट ऑफिसर्स मुज़्ज़म्मिल रेहमान और अहमद ग़ज़ाली ने बताया की मौजूदा समय मे बच्चो में वर्चुअल आटिज्म की पहचान हुई है, यह पहचान खास कर उन बच्चो मे हुई है जो स्क्रीन पर ज़्यादा समय बिताते है.
सेमिनार की खास बात रही क्रिएटिव माइंडस टीम की मोटिवेशनल और टेक्निकल स्पीच जिसमे कई सारी नयी बातों का पता चला आटिज्म के बारे मे. क्रिएटिव माइंडस की फाउंडर डॉ प्रियंका सिंह ने अभिभावको से झिजक छोड़ने की अपील करते हुए बताया की सामान्य बच्चे मां के दूर होने पर या अनजाने लोगों से मिलने पर परेशान हो जाते हैं परन्तु औटिस्टिक बच्चे किसी के भी आने या जाने से परेशान नहीं होते हैं.
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