रूदौली की महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी #खदीजा_फूफी!
सय्यद क़ासिम
जंगे अज़ादी की लड़ाई में सिर्फ रूदौली के पुरूष ही नहीं महिलायें भी किसी से पीछे नहीं थीं। गांधी जी की अगुवाई में जब पूरे देश में जंगे आज़ादी की लड़ाई को अहिंसक तरीक़े से लड़ा जा रहा था तो रूदौली में रहने वाली दरगाह शरीफ रूदौली के सज्जादा नशीन शाह हयात मरहूम की बहन खदीजा फूफी अौरतों को अज़ादी की अहमियत समझाते हुए अपना योगदान देने के लिये प्रेरित कर रही थीं। मजाज़ रूदौली की बहन अौर जावेद अख्तर की खाला हमीदा सालिम साहिबा अपनी किताब “शोरिशे दौरां” में खदीजा फूफी का तार्रुफ इन अल्फाज़ों में कराती हैं -” खदीजा फूफी हमारे पड़ोस में आंगन से एक दिवार के फासले पर रहती थीं। उनकी शख्सियत का नक़्श अपने ज़हन पर बहुत गहरा है।
खदीजा फूफी की शख्सियत उस ज़माने की अौरतों में एक मख्सूस मुक़ाम रखती थीं। निहायत ही ज़हीन, पढ़ी-लिखी खातून अदबो शायरी की दिलदादह, हाफिज़ व सादी के अश्अार अज़बर(याद), असरार भाई (मजाज़) को बहुत चाहती थीं। ग़ालिबन उनकी नज़र अंदर छुपे हुए शायर को पहचान गई थी। सियासी अौर समाजी मसायल से बहुत गहरा लगाव रखती थीं। तहरीके खिलाफत में आगे आगे थीं। गांधी जी ने विदेशी माल तर्क करने का नारा दिया उन्होने अपने तमाम क़ीमती कपड़े नज़्रे आतिश कर दिये( जला दिये) अौर खद्दर पोश हो गईं (पहन लिया)।”
ज़रीना भट्टी अपनी किताब “पर्दा से पिकाडली तक” में लिखती हैं कि “जब इनके इकलौते बेटे की शादी हुई तो इन्होंने अपनी बहु की शादी के जोड़े के लिये खादी तैय्यार की।” आगे लिखती हैं- “यह तक़दीर का मज़ाक ही था कि खदीजा फूफी को अज़ादी के बाद पाकिस्तान जाना पड़ा क्योंकि उनके इकलौते बेटे ने पाकिस्तान जाने का फैसला किया था। हमें बताया गया कि वह पाकिस्तान में बहुत नाखुश थीं अौर वहां दुखी जीवन के कुछ ही सालों बाद इंतेक़ाल कर गईं।”
इसके अलावा खदीजा फूफी का तज़किरा मशहूर इतिहासकार मुशीरुल हसन अौर मशहूर सहाफी (पत्रकार) तारिक़ हसन ने भी अपनी अपनी किताबों में किया है।
ज़रूरत है कि हम अपने पुरखों की तारीख के काब़िले फख्र सरमाये को दुनिया अौर आने वाली नस्लों तक पहुंचायें ताकि उनके अंदर खुद यक़ीनी (सेल्फ कांफिडेंस) पैदा किया जा सके।
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