काफ़िर ने ही बस हमें मुसलमान समझा

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काफ़िर ने ही बस हमें मुसलमान समझा
वक़ार रिज़वी 
मुसलमानों के हर फ़िरक़े ने
एक दूसरे को काफ़िर कहा।
एक काफ़िर ही है जिसने
हम सबको मुसलमान कहा।।
शहर का मिनी पाकिस्तान कहे जाने वाले मोहल्ले मोलवीगंज में भाजपा कारपोरेटर ! तो क्या यह मान लिया जाये कि भाजपा की तरफ़ मुसलमानों का पलायन शुरू हो गया है और अगर नहीं तो फिर यह तमाम मुसलमानों के लिये एक लम्हे फ़िकरिया है कि जहां पर बस आप ही आप थे वहां वह मुतंखब कैसे हुआ जिसे आपने वोट ही नहीं दिया। ख़ुदारा इसका ज़िम्मेदार ई.वी.एम. को बनाने से पहले अपने गरेंबान में ज़रूर झांक कर देखें कि इस नतीजे की ज़िम्मेदार ई.वी.एम. नहीं बल्कि आप ख़ुद हैं। आपका मुत्तहिद न होना है, फिर एक मोलवीगंज ही क्यों, ऐसी न जाने कितनी जगह हैं जहां आपकी अकसरियत थी लेकिन आपको को मूंह की खानी पड़ी। यह नतीजे अगले 5 साल तक तमाम ग़ैरतमंद बाशिंदों, दानिश्वरों और हमारे मोलवियों को ज़रूर इस बात का एहसान कराते रहेंगें कि मुसलमानों को अगर मुसलमान समझा होता तो कभी यह दिन न देखने पड़ते और यह ग़ैरों ने नहीं बल्कि अपनों ने ही अपनों के बीच ऐसी खाई बना दी है जिससे उबर पाना अब आपके लिये ही मुश्किल हो रहा है। इसलिये ऐसा कहने पर शायर भी मजबूर हुआ कि
ख़ौफ़ होता है शैतान को भी मुसलमां देखकर
नमाज़ भी पढ़ता है, मस्जिद का नाम देखकर।।
दे दी अज़ां मस्जिद में हमनें ‘‘हयया अला सलात’’
और लिख दिया बाहर अंदर न आयें फ़लां फ़लां।।
अगर मौजूदा सूरते हाल में हम अब भी अपनी ज़िम्मेदारियों से ग़ाफ़िल रहे तो वह दिन दूर नहीं कि ख़ुदानख़्वास्ता स्पेन की तारीख़ हिन्दुस्तान में भी दोहरयी जाये। क्या अभी भी हम अपनी ग़लतियों से कोई सबक़ नहीं लेगें अगर आप अपनी ज़िम्मेदारी से ग़ाफ़िल नहीं हैं तो चलिये आज हम सब मिलकर अहद करें कि हमारी वुसअते नज़र जहां तक है वहां तक सबको मुत्तहिद करेंगें और पैग़ाम-ए-इंसानियत के पैग़ाम को आम करें। हम नफ़रतों को मोहब्बतों से ही ख़त्म कर सकते हैं और यहीं हमारे नबी की सुन्नत भी है। क्या हम कभी इस बात से शरमिंदा नहीं हुये कि हमनें अपनों को कभी अपना नहीं कहा और मुक़ालिफ़ ने हमें इसके सिवा कुछ नहीं कहा। अभी भी वक़्त है इस बारे में संजीदगी से ग़ौर करें कि मौजूदा हालात में हमारी क्या ज़िम्मेदारियां हैं।
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