लखनऊ। अमीनाबाद स्थित कच्चा हाता की पड़ान वाली मस्जिद में खम्स ए मजालिस की तीसरी मजलिस हुई। जिसमें मौलाना मीसम जैदी ने अकीदत मंदो को ख़िताब करते हुए कहा कि मजहब ए इस्लाम में औरतों को सम्मान के साथ-साथ एक विशेष दर्जा दिया गया है।
मौलाना ने कहा कि आज हमारे समाज में महिलाओं के लिए आवश्यक है कि समाज को बेहतर बनाने में अपना संपूर्ण योगदान दें। मौलाना मीसम जैदी ने पैगंबर मोहम्मद साहब की बेटी हज़रत फातिमा ज़हरा स0अ0 का उदाहरण देते हुए बताया कि इस प्रकार हज़रतें फातिमा ज़हरा ने अपनी जिंदगी के हर पहलू में दुनिया की सबसे बुलंद, पुरविकार और शानदार महिला का किरदार निभाया और उनका संपूर्ण जीवन हमारी मां और बहनों के लिए उदाहरण है।
इतना ही नहीं उन्होंने ये भी कहा कि जिस प्रकार उन्होंने स्वयं को पर्दे में रखकर भी समाज के लिए एक मिसाल बनी इसी प्रकार आज जरूरत है कि हमारी मां और बहनें समाज के कल्याण के लिए अपने साथ बच्चों को भी अच्छी परवरिश दें, क्योंकि यह बच्चे हमारे समाज और देश के भविष्य हैं, इनकी उन्नति और अच्छे कामों से समाज आगे बढ़ेगा।
मौलाना मीसम जैदी ने कहा की कुछ लोग औरतों के पर्दे को उनके ऊपर बोझ समझते हैं यह उनकी छोटी सोच है। पर्दे में और हिफाजत में उसी चीज को रखा जाता है जो बहुत ही ज्यादा कीमती होती है उन्होंने कहा कि अनमोल चीज़ को हमेशा बुरी नज़र वालों से बचाकर रखा जाता है। इसी प्रकार हमारे समाज में महिलाएं भी अनमोल है पर्दे में रहने से इनका सम्मान और बढ़ता है। उन्होंने कहा कि हमारे समाज में बहुत सी ऐसी महिलाएं हैं कि जो पर्दे में रहकर भी समाज और देश को बेहतर बनाने में अपना संपूर्ण योगदान दे रही हैं और लगातार उनके योगदान से हमारा समाज तरक्की कर रहा है।
मौलाना ने ये भी कहा कि इस्लाम में औरतों की बहुत ही ज्यादा अहमियत है और उन्हें अत्यधिक सम्मान दिया गया है बस जरूरत इस बात की है कि मज़हब ए इस्लाम और पैगंबर मोहम्मद साहब का जो संदेश है उसे सही तरीके से समझा जाए। मौलाना ने कहा की कर्बला के मैदान में जिस प्रकार अन्याय और उनके खिलाफ हजरत इमाम हुसैन अपने 72 साथियों के साथ शहीद हो गए यह उनकी मां हजरत फातिमा ज़हरा की शानदार परवरिश का नतीजा था कि जो समाज में फैल बुराई और अन्याय के खात्मे के ख़िलाफ़ लड़ते हुए शहीद हो गए।