तमाशबीन क्यों

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एस. एन. वर्मा

इंस्राइल द्वारा गाजा को लेकर फिलस्तनियों पर हो रहे हमले को लेकर अन्तरराष्ट्रीय बिरादरी खमोश हो तमाशबीन क्यों बनी हुई है। दुनियां ने हर दिशा में वेजोड़ तरक्की की है और करती जा रही है। पर आपसी प्रतिरोध के लिये आज भी आदिमयुग की सोच खून का बदला खून का ही पालन हो रहा है। इस्राइल और फिलिस्तीन की लड़ाई इसका ताजा सबूत है। कुछ आतंकवादियों ने इस्राइल के एक उत्सव में जमा लोगो पर अचानक हमला करके मार डाला। जिसमें बच्चे औरतो सहित कई लोग मारे गये। अपराध तो बेहद निन्दनीय है। पर इस्राइल निन्दनीय अपराध का बदला निन्दनीय अपराध से ले रहा है। होना तो यह चाहिये था कि दोषियों को पकड़वा कर उन्हें उनके अपराध की सजा दी जाती। पर इसके बदले में आम नगरिकों की जघन्य हत्या की जा रही है। मानवीय आवश्यताओं के जरूरी समानों की सप्लाई रोक दी गयी यह तक कि वहां के अस्पताल पर इस्राइल ने हमला कर दिया सोचिये बिमारी से त्रस्त लोगो को इस बेरहमी से कत्ल किया जा रहा है। पानी बिजली आदि की पूर्ति रोक दी गयी है। कुछ देशों के दबाव बनाने पर फिर से सप्लाई का आवश्वासन दे सप्लाई शुरू कर दी गई है। पर किसी तरह चल रही है। सोचिये बच्चे आक्सीजन के अभाव में मर रहे है।
ऐसे हालात में अन्तरराष्ट्रीय बिरादरी की सोच पर छोभ होता है। वे युद्ध रोकने का जबानी बयान तो दे रहे है पर कोई कारगर कारवाई नहीं कर रहे है।
लग रहा है कूटनीति और संवेदनशीलता का अन्त हो गया है। सारी तरक्की किस काम की है अगर जिसके लिये तरक्की हो रही वे वैमनरूप और स्वार्थ के लिये आपस में एक दूसरे को मिटाने में लगे हुये है। हिटलर ने यहूदियों को जघन्य तरीके से मारा और ताप पर इसका यह मतलब तो नहीं की उसका बदला अब इस तरह लिया जाय। अमेरिका और ब्रिटेन जैसे पश्चिमी देश अगर चाहते तो लड़ाई रूक सकती है। पर ये देश इस्राइल का पूरा साथ देते देखे जा रहे है। पर इसे लेकर कुछ प्रमुख देशो ने इसका विरोध जाहिर किया तो पश्चिमी देश कुछ सोचने और नरम पड़ते दिख रहे है। पर इसके बावजूद इस्राइल हमले को जायज भी बता रहे है। इस्राइल हमले के विरोध में कुछ आतंकवादी संगठन भी कूद पड़े है जैसे हमास और हिजबुल्लाह पर आश्चर्य भी होता है और दुख भी होता है कि जो जिम्मेदारी विश्व बिरादरी को उठानी चाहिये। उसका निर्वाह उग्रवादी संगठन कर रहे है। गाजा की घटना का और उसके क्रम का नारा दिये उग्रवाद के खिलाफ जीरो टालरेन्स का कोई असर नहीं दिख रहा है न इसका कोई लेना देना महसूस हो रहा है।
फिलिस्तीन पर वर्तमान में इस्राइल का कब्जा है। इस कब्जे से निजात पाने के लिये सशक्त विरोध या अहिंसक तरीके का उपयोग मनवीय दृष्टिकोण से बेहतरीन तरीका बनता है। आश्चर्य होता है कि इस सम्बन्ध में मुस्लिम और अरब देश इस्राइल और फिलिस्तीन के युद्ध को लेकर चुप बैठे हुये है कोई कारगर कदम नहीं उठा रहे है या यह मान लिया जाय कोई कारगर कदम नहीं उठा पा रहे है। इस समय कारगर रणनीति की अहम जरूरत है। मुस्लिम देशो की संख्या दबाव बनाने के लिहाज से बहुत उपयोगी हो सकती है। अगर 50 देश मिलकर कोई कदम इस दिशा में उठाये तो गाजा और पश्चिमी किनारे पर चल रहे हिस्से के दौर में लगाम लग गया होता। पर इनकी खामोशी दहशत पैदा करती है। अरब देशो के पास तेल का सशक्त भन्डार है वे इसकी सप्लाई रोक युद्ध में विराम लगा सकेते है। पर व्यापारिक लाभ के आगे अन्य बाते गौण हो गई है।
तटस्थ देशो की चुप्पी भी समझ में नहीं आ रही है। जी-20 और विक्रस जैसे अन्तरराष्ट्रीय मंच और उससे सम्बद्ध देश इस युद्ध को रोकवाने में अहम भूमिका निभा सकते है। भारत, रूस दक्षिण अफ्रीका ब्रजील जैसे देश मिलजुल कर युद्ध रोकवाने के लिये पहल करते तो शायद अन्य देश भी भागीदार हो जाते और सम्मलित कोशिशों के अच्छे सकारात्मक परिणाम आ सकते है। जहां भारत का सवाल है इस घटना का निन्दा करते हुये इस्राइल और फिलिस्तीन दो राष्ट्र के पक्ष में दलील है। पर इस्राइल ने इस प्रस्ताव की ओर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। अमेरिका और पश्चिमी देश जिनके इस्राइल से अच्छे सम्बन्ध है वे उसे काबू में नहीं रख पा रहे है। तो वे इस्राइल को फिलिस्तीन के स्वतन्त्र राष्ट्र का दर्जा देने के लिये राजी नहीं कर सकते। अन्तरराष्ट्रीय विशेषज्ञों का मत है कि अमेरिका की कोई भी हस्ती इस्राइल को टू स्टेटस साल्यूशन के लिये राजी नहीं कर सकती। युद्ध क्या मोड़ तेला है क्या गाजा फिलिस्तीन मिट जायेगे। वर्तमान की दयनीय टेªजडी है।

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