इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इस बात पर बल देते हुए कि इस्लामी गणतंत्र ईरान से यूरोपीय देशों की दुश्मनी के कारण, ईरान से अमरीका की दुश्मनी के कारणों से भिन्न नहीं हैं, कहा कि यूरोपीय देश विदित रूप में एक मध्यस्थ के रूप में सामने आते हैं और बड़ी बड़ी बातें भी करते हैं लेकिन वह सब ज़बानी जमा ख़र्च से ज़्यादा कुछ भी नहीं होतीं।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने विशेषज्ञ परिषद के प्रमुख और सदस्यों को संबोधित करते हुए देश की स्थिति और क्षेत्र में इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था के नारों और उसके क्रांतिकारी और गहरे प्रभाव के दायरे में दिन प्रतिदिन विस्तार का व्यापक ब्योरा पेश करते हुए कहा कि पवित्र प्रतिरक्षा काल की घटनाओं और पाठ से लाभ उठाना और उन्हें समाज में प्रचलित करना महत्वपूर्ण है।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि अल्लाह पर भरोसा, प्रतिरोध, डटे रहना, भविष्य के बारे में आशान्वित रहना, युवाओं विशेषकर क्रांतिकारी युवाओं पर भरोसा, जनता विशेषकर क्रांतिकारी शक्तियों के बीच एकता तथा देश के उत्पादों का सही अर्थों में समर्थन और विदेशियों की अपेक्षाओं को समाप्त कर देना,देश के विकास और प्रगति को जारी रखने के लिए ज़रूरी और आवश्यक है।
वरिष्ठ नेता ने परमाणु समझौते के बाद यूरोपीयों की शैली और अपने वचनों पर अमल न करने और इसी प्रकार अमरीका के परमाणु समझौते से निकल जाने तथा ईरान के विरुद्ध अन्य अत्याचारपूर्ण प्रतिबंध लगाने के बाद, यूरोपी देशों की शैली का उल्लेख करते हुए कहा कि यूरोपीयों ने अपने वचनों के विरुद्ध अमरीकी प्रतिबंधों के संबंध में कोई भी व्यवहारिक कार्यवाही नहीं की और भविष्य में भी एसा नहीं लगता कि वह ईरान के लाभ के लिए कुछ करेंगे, इसीलिए यूरोपीय देशों से आशा ख़त्म कर लेनी चाहिए।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने समस्त दुश्मनियों के बावजूद स्थिति और हालात के रुख़ को इस्लामी गणतंत्र ईरान के लाभ में क़रार दिया और कहा कि आज इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था न केवल यह कि चालीस साल पहले के मुक़ाबले में अधिक शक्तिशाली हुई है बल्कि दस साल पहले की तुलना में भी आज अधिक शक्तिशाली हुई है और क्षेत्र में उसकी क्रांतिकारी शक्ति और क्षमता में वृद्धि हुई है और क्रांति की जड़ें अधिक मज़बूत हुई हैं।