24 तीर्थंकरों की शासन देवियाँ जैन दर्शन में शक्ति स्वरूप हैं
जैन विद्या शोध संस्थान में पहली बार जैन विद्या के पठन पाठन का कार्य प्रारम्भ हुआ
लखनऊ। उत्तर प्रदेश जैन विद्या शोध संस्थान, संस्कृति विभाग के तत्वावधान में बुधवार को प्रथम सत्र में उत्तर प्रदेश सरकार के आह्वाहन पर मिशन शक्ति ‘नारी सुरक्षा, नारी सम्मान’ के अन्तर्गत ‘भारतीय संस्कृति में मातृ शक्ति का महत्व’ विषय पर वेबिनार का आयोजन हुआ। संस्थान के उपाध्यक्ष प्रो.(डॉ.) अभय कुमार जैन एवं निदेशक डॉ.राकेश सिंह ने मंगलाचरण के साथ दीप प्रज्वलन किया।
विश्व की सर्वोच्च जैन साध्वी भारत गौरव गणिनी प्रमुख आर्यिकाशिरोमणी ज्ञानमती माताजी ने राष्ट्र की समस्त महिलाओं को आशीर्वद दिया। माताजी ने बताया कि प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ने सर्वप्रथम अपनी दोनों पुत्रियों सुन्दरी और ब्राह्मी को अक्षर एवं लेखन ज्ञान देकर ज्ञान देवी के रूप में प्रतिष्ठत किया। माताजी ने कहा कि 24 तीर्थंकरों की शासन देवियाँ जैन दर्शन में शक्ति स्वरूप हैं। अन्य महिला वक्ताओं लखनऊ से सभा अध्यक्षा प्रो सुधा जैन, डा. पत्रिका जैन, डा. राका जैन, गीता जैन, अल्पना जैन, सुनयना जैन, डॉ. रजनी श्रीवास्तव, जयपुर से विदुषी रमा जैन, दिल्ली से डॉ. इन्दू जैन, नागपुर से स्वर्णलता जैन, गोरखपुर से कमलेश जैन, मथुरा से मनीषा जैन, अलीगढ़ से अपर्णा जैन, जबलपुर से डॉ. मनोरमा जैन, बहराइच से डॉ. डिम्पल जैन, पटना से जया, मुम्बई से दिव्या जैन ने विचार व्यक्त करते हुये बताया कि भारतीय सनातन परम्परा में नवरात्रि में देवियों के विभिन्न स्वरूपों की आराधना महिलाओं को स्वतः स्फूर्त और शक्ति प्रदान करती है। भारत की विभिन्न संस्कृतियों में नारी को देवी शक्ति के रुप में स्वीकार किया है।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 29 वर्ष पूर्व स्थापित जैन विद्या शोध संस्थान पहली बार जैन विद्या के पठन पाठन का कार्य प्रारम्भ हुआ। संस्थान के उपाध्यक्ष प्रो.(डॉ.) अभय कुमार जैन सभी पंजीकृत अभ्यर्थियों को ऑनलाइन संम्बोधन में बताया कि छः माह के प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम जैन दर्शन सामान्य परिचय और सिद्धान्त के अन्तर्गत प्रमुख चार टॉपिक
1.जैन दर्शन और उसकी वस्तु स्वरूप मीमांसा
2.जैन दर्शन में पूज्य और पूजन स्वरूप
3.जैन दर्शन में श्रावकाचार(सामाजिक आचरण)
4.जैन दर्शन रू प्रेरक व्यक्तित्व
पर विषय विद्वानों द्वारा व्याख्यान दिये जायेंगे।
संवाद के दौरान अभ्यर्थियों की जिज्ञासाओं का समाधान करते हुये प्रो. अभय कुमार जैन ने बताया कि जैन दर्शन के मौलिक सिद्धांतों की जानकारी के साथ सामाजिक आचरण और व्यक्तिगत चरित्र उत्थान की दिशा में यह पाठ्यक्रम उपयोगी होगा। डॉ. अभय कुमार जैन ने बताया कि यह कोर्स रोजगार प्रदान करने में सहायता करेगा। मन्दिर एवं तीर्थक्षेत्रों पर प्रशिक्षित पुजारी पद के लिए कोर्स निश्चित रूप से उपयोगी होगा।
द्वितीय सत्र के प्रारंभ में ज्ञानमती माता जी ने कोर्स से जुड़े सभी अभ्यर्थियों को आशीर्वाद प्रदान किया और जैन विद्या शोध संस्थान संस्कृति विभाग को बधाई दी।
निदेशक डॉ. राकेश सिंह ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हुये कहा कि अभ्यर्थियों और ज्ञानार्थियों को किसी प्रकार की कठिनाई न हो इसका विशेष ध्यान रखकर सूचनाएं व्हाट्सएप के जरिए और वेबसाइट पर समय समय पर उपलब्ध रहेंगीं।