हम फिदा-ए-लखनऊ

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एस. एन. वर्मा

अवध की गंगा जमुनी तहजीव भाषा, रवायत समेटे हुये लखनऊ के आकर्षण से कोई बच नहीं सकता। जो यहां आता है यहीं का होे के रह जाता है। यहां की जरखेज जमीन ने शानदार उर्दू हिन्दी शायरों, कवि और लेखकों की खेप तैयार की है। जिन्हें याद कर लोगों का सर उनकी आदर में झुक जाता है। मजा़ज़ ने एक बहुत मौजू शेर कहा है, जब अब्र यहां से उठेगा वो सारे जहां पर बरसेगा हर जू-ए’खां पर बरसेगा, हर कोहेगिरा पर बरगेगा, वाकई यहां की हर चीज हर एक पर अपना असर डालती है और लोग मुग्ध रहते है प्रस्तुत है। यहां के कुछ शायरों, कवियों और लेखकों का संक्षिप्त परिचय। यद्यपि ये किसी परिचय के मोहताज नहीं है। अदब में दिल चस्पी रखने वाला हर शख्स इन्हें जानता है और इनका मुरीद है।
मध्यकालीन काल में उर्दू के शायर और लेखक दिल्ली और अवध के शासकों के संरक्षण में रहते थे। उस समय शायरी के दो स्कूल थे। दबिस्ताने देहली दूसरा दबिस्तानें लखनऊ। दोनो शासकों के संरक्षण में खूब फले फूले। लिजिये सबके सूक्षम परिचय पेश है। मीर तकी मीर अट्रहवी सदी के शायर है जिन्होंने उर्दू जबान को संवारा और लखनऊ की जुबान रेख्ता को सवारा जो उर्दू हिन्दी की मिली जुली जबान है। जिन्हें खुदा ए सुखरी यानी शायरी के देवता का पदवी से नवजा गया। नवाब आसिफ दौला ने उन्हें देहली से बुलवाया था। उनकी मशहूर दो लाइनों पर गौर करे ष्इब्तदाए इश्क है रोता है क्या,ष् आगे आगे देखिये है क्यो।
गुलाम हमदनी मुश्फी और नासिरवा नासिख का मशहूर शेर है ष्जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है, मुर्दा दिल का खाक जिया करते है।ष्
मिर्जां मोहम्मद रफी सौदा। कसीदा और हिज्ब (व्यंग) के लिये मशहूर है। मुगल शासक शाह आलम ने शायरी इन्ही से सीखी।
अभी गिनाई लखनऊ के मशहूर फंरगी महल, जो इस्लामिक पढ़ाई का केन्द्र था वहां शिक्षा पाई थी। उर्दू के बड़े शायरों में शुमार है। इनकी मशहूर शायरी है, सरकती जाये रूख से नकाब आहिस्ता आहिस्ता, मिर्जा मोहम्मद हादी रूसवा इनका मशहूर उपन्यास है उमराव जान अदा इसीनाम की मशहूर तवायफ और शायरा थी। उन्हीं पर आधारित है यह उपन्यास है।
मशहूर शायर असरारूल हक मज़ाज़ जिनका मशहूर शेर, है संभाला होश तो मरने लगे हंसीनों पर हमें तो मौत ही आयी शबाब के बदले, एक बेहतरीन शायर शकल सूरत से बेहद हंसीन पर दिल टूटने के गम में शराब में अपने को डुबो कर बहुत धिनौनी जिन्दगी जी और वैसे ही जाडे़ में खुली छत पर उनकी घिनौनी मौत हुई।
चाहे उर्दू के भी तकी मीर हो, अमीर मिनाई, मजाज़ या हसरत मोहानी हो या हिन्दी के अमृतलाल नागर, भगौती चरण वर्मा या यशपाल हो उनकी रचनाओं में गंगा जमुनी तहजीब छलकती रहती है जो भौगोलिक सीमाओं को तोड़ सबको आकर्षित करती रहती है।
जब औपनिवोशिक लड़ाई चल रही थी तो उसमें भी उर्दू और हिन्दी के शायर और लेखक आगे थे। देश प्रेम की ज्वाला अपनी कलम से भड़काये हुये सबको अपनी रैव में खीच रहे थे। हसरत मोहानी ने इन क्लाब जिन्दाबाद का नारा गढ़ा था। उनकी मशहूर गजल, चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है गुलामनबी ने फिल्म निकाह में गाया है।
जब प्रगतिशील लेखक अलोचक अपने उरोज पर थे तो मजाज जिन्हें उर्दू शयरी का कीटस कहा जाता है जोश भर रहे थे। वो लिख रहे थे। देख ये शमशीर है जाम है तू जो शमशीर उठाले तो बड़ा काम है। ये उनकी नज़्म ऐ ग़मे दिल क्या करूं ऐ दहश्ते दिल क्या करूं उर्दू शायरी का क्लासिक है। वली असी ने लिखा फैलता जाता है नफरत का धुंआ इश्क करो, उनके शिष्य कृष्ण बिहारी नूर लिख रहे थे जिन्दगी से बड़ी सज़ा नही, कोई खुश वीर सिंह शाद लिख रहे थे, हम अहले शहर की ख्वाइंश की मिलजुलकर रहे लेकिन हमारे शहर की दुशवारियां कुछ और कहती है ये अपने समय के साहित्य के टार्च बेयर है। अनवर नदीम अपने समय के साहित्य के कई विधा के लेखक ऐक्टर और कवि थे। मुनव्वर राना ने शायरी को नया आयाम दिया। योगेश परवीन तो लखनऊ के इनसाइक्लोपीडिया थे।
लखनऊ के हिन्दी जगत के नूर थे अमृतलाल नागर, क्रान्तिकारी और क्रान्तिकारी लेखक यशपाल, भगवती चरन वर्मा, शिवानी, श्रीलाल शुक्ल, के.पी.सक्सेना। हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता लखनऊ की भी कथा अन्नत है। सारे शायरो, लेखको, मकबूल, हस्तियों के बारे में चाहे हिन्दी के हो या उर्दू के एक जगह बता पाना मुशकिल है। कुछ झलकियां दी गयी है। उनसे आप आगे पीछे की अछूती बातें का अन्दाजा लगा सकते है। लखनऊ के हर आयाम और हस्तियों को सीमित शब्दों में बाघपाना नामुमकिन है। बस एक चावल से पूरे मांत का पता लगा सकते है।
लखनऊवासियों को दिल देखिये
अजीब दर्द का रिश्ता है सारी दुनियां में
कहीं हो जलता मकां अपने ही घर लगे है मुझे

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