VIDEO-महिला सुरक्षा के नाम पर बढ़ते चयन के अधिकार के हनन कि घटनाएं – उत्तर प्रदेश कि वर्त्तमान स्थिति

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BRIJENDRA BAHADUR MAURYA————
महिला सुरक्षा के नाम पर बढ़ते चयन के अधिकार के हनन कि घटनाएं – उत्तर प्रदेश कि वर्त्तमान स्थिति

 महिलाओं कि सुरक्षा को अपनी प्राथमिकता बताने वाली उत्तर प्रदेश सरकार के साथ ये आशा थी कि अब शायद लड़कियों व महिलाएं कहीं भी आ-जा सकें गी, घूम फिर सकें गी । कि वे सुरक्षित हैं । परन्तु ज़मीनी सच्चाई को लोगों के समक्ष प्रस्तुत करने वाली मीडिया रिपोर्टिंग को ही यदि साक्ष्य के रूप में रखा जाये तो उत्तर प्रदेश में महिलाओ के साथ होने वाली हिंसा में बढ़ोतरी हुई है । उत्तर प्रदेश में महिलाओं पे होती हिंसा कि वारदातें तेज़ी से बढती ही जा रही हैं । हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रकाशित पुस्तिका में भी, जिसमे उन्होंने पिछले तीन महीनों कि अपनी प्रमुख उपलब्धियों को उजागर किया है, महिलाओं पे हो रही हिंसा और उनके खिलाफ बढ़ते अपराधों का कोई ज़िक्र नही है । आली ने बढ़ते अतिक्रमण के मुद्दे को उठाने के लिए एवं सरकार कि जवाबदेही मांगने के लिए एक प्रेस वार्ता का आयोजन किया । इस वार्ता में उनका ज़ोर उन संवेधानिक मूल्यों पर था जोकि लिंग और जेंडर निरपेक्ष समानता के अधिकार कि बात करते हैं । महिलाओं को उनके जीवन और स्वायत्तता से संबंधित मुद्दों पर स्वतंत्र निर्णय लेने का और भेदभाव के खिलाफ समान सुरक्षा का अधिकार है ।

 

विगत 3 महीने पहले जब सरकार ने एंटी-रोमियो स्क्वाड का गठन किया तो ऐसा लगा कि नाम तो अजीब है पर अब शायद शोहदों कि खैर नही | आली द्वारा 13 मुख्य हिंदी और अंग्रेजी अखबारों से एकत्रित किये गये ख़बरों के माध्यम से ज्ञात हुआ कि मार्च-अप्रैल में लगभग 30 दिन कि अवधि में सार्वजानिक स्थानों में उपस्थित लगभग 48 व्यक्तियों को मनमाने ढंग से पूछताछ की गई और चेतावनी दी गई, 45 को व्यक्तियों को हिरासत में लिया गया और पुरुषों के समूह, जवान लड़के और जोड़ों को (उनके हानिरहित व्यवहार पर भी) सार्वजनिक उपस्थिति से रोका गया और नियमित आधार पर पूछताछ की गई | इससे भी ज्यादा, कुछ ऐसे अभियान लोगों के बीच डर पैदा करते हैं और उन्हें गतिशीलता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों के आनंद से दूर रख देते हैं | महिलाओं को सुरक्षा के नाम पर इस तरह के नियंत्रण और आतंक नही चाहिए, बल्कि वे सरकार से जेंडर संवेदनशील और अधिकार आधारित प्रतिक्रिया की मांग करती हैं, जोकि अपने मानवाधिकारों को सुरक्षित व सुनिश्चित करेगी |

 

सहमति से रिश्तों में जोड़ों कि उत्पीडन के उदेश्य से ख़ोज व इन स्क्वाड द्वारा उनको नैतिक नसीहत देना (मोरल पोलिसिंग) बहुत ही नकारात्मक रूप से महिलाओं की एजेंसी और गतिशीलता पर प्रभावी हुआ है | यह महिलाओं के अधिकारों का प्रबल रूप से उल्लंघन है | इस गतिविधि का नतीजा ऐसा है कि कई असामाजिक समूहों को जोड़ो के खिलाफ मनमानी कार्रवाई करने का प्रोत्साहन मिला है | एक मामला जिसमें हिंदू-मुस्लिम दंपति होने के कारण मेरठ के दक्षिणपंथी और असामाजिक समूहों द्वारा जोड़ो को उनके घर में घुस कर प्रताड़ित करने की बात सामने आई | एक और मामले में जिसमें हिन्दू-मुस्लिम जोड़े ने एक साथ बुलंदशहर छोड़ दिया, असामाजिक समूहों द्वारा उस जोड़े को मदद कर रहे व्यक्ति की मार मार कर हत्या कर दी गयी | आली की कार्यकारी रेनू मिश्रा ने प्रकाश डाला कि  लड़कियों ने हमसे साँझा किया कि अब उनको अपने पुरुष साथी से मिलने, या बाजार, पार्क जाने के लिए दो बार सोचना पड़ता है, एंटी रोमियों स्क्वाड द्वारा अपमान और उत्पीडन के डर से | और उन्होंने इस पर भी प्रकाश में डाला कि राज्य के एक मामले में विशेष विवाह अधिकारी द्वारा हिन्दू मुस्लिम जोड़े का विवाह प्रमाणपत्र देने से ये कहते हुए माना कर दिया कि इससे दक्षिणपंथी समूह द्वारा हमला किया जा सकता है | 

 

युगल जड़ों पर तथाकथित ‘इज्ज़त’ के नाम पर किए जाने वाले अपराधों में भी एक चौंकाने वाली वृद्धि देखी जा रही है, ख़ास रूप से ऐसी महिलाओं पर जिन्होंने रिश्तों में अपने चयन की स्वतंत्रता और निर्णय लेने के अधिकार को जताया है / का प्रयोग किया है । आली द्वारा एकत्रित मीडिया स्कैनिंग के जानकारी के अनुसार, जनवरी – फरवरी 2017 में ऐसे 7 मामले मीडिया में रिपोर्ट हुए, जोकि मार्च – जून 2017 में एक खतरनाक रूप से बढ़ते हुए 38 मीडिया रिपोर्ट तक पहुच गायें हैं । यह वृद्धि समाज में बढ़ते हुए सांप्रदायिक तनाव को और सहिष्णुता के कम होते स्तर को दर्शाती हैं जो लोगों को जघन्य अपराध करने के लिए प्रोत्साहित करती है । आली कि शुभांगी ने साझा किया कि  पिछले 2 महीनो में हमने 3 अंतर्धार्मिक जोड़ों से बात करी हैं जोकि इन अपराधों कि बढ़ोतरी के कारण अत्यधिक तनाव में हैं वे विशेष विवाह अधिनियम, 1954, जोकि शादी करने कि सिविल प्रक्रिया है (कोर्ट में शादी), में भी शादी करने से डर गए हैं क्युकी उत्तर प्रदेश में शादी का नोटिस घर भेजने कि व पुलिस द्वारा विवेचना कि गेर कानूनी प्रक्रिया अपनाई जाति है इस नोटिस के कारण उनकी निजता व गोपनीयता का घोर उलंघन तो होता ही है, परन्तु इसके कारन वे गंभीर अपराध और उत्पीड़न का भी निशाना बनाये जाते हैं ।  

 

वार्ता का समापन करते हुए, हुमा खान, जो कि मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं, ने तर्क दिया की  महिलाओं के प्रति बढ़ते हुए अपराध और साथ ही नागरिकों के मानव अधिकारों का हनन, सरकार की घटती हुई जवाबदेही को दर्शा रहे हैं | पिछले कुछ समय से साम्प्रदायिक भावनाओ को प्राथमिकता देने का यह परिणाम हुआ है कि महिलाओ के प्रति ‘इज्ज़त’ से जुड़े अपराध बढे हैं और साथ ही सदाचार/नैतिकता से जुडी  नसीहतों का सिलसिला भी देखा जा रहा है | यह सब, कुछ समुदाय विशेष की ‘इज्ज़त’ को जोड़े रखने के लिए | इस समय जब की सरकार के तरफ से कुछ ठोस कदम उठाये जाने की आवश्यकता थी, हमें केवल बयानबाजियों का सिलसिला दिख रहा है | 

 

आली का उत्तर प्रदेश सरकार से यह आग्रह है की महिलाओं की सुरक्षा हेतु कुछ ठोस कदम उठाये जायें, और उनके संवैधानिक अधिकारों का संरक्षण कानूनी साधनों के माध्यम से हों | साथ ही नैतिक नसीहत देने (मोरल पोलिसिंग) के बजाये, मानव अधिकारों का कार्यान्वन कानूनी ढांचे के अंतर्गत ही किया जाये |

  1. सरकार को भारत के उचतम न्यायलय द्वारा दिए गए लैंडमार्क निर्णय, जैसे कि – डी.के. बासु बनाम पश्चिम बंगाल 1997 जोकि पुलिस कि सत्ता पर निगरानी रखने कि प्रक्रिया कि बात कर रहा है, लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश 2006 और अरुमुगम सर्वे बनाम तमिल नाडू 2011 जोकि रिश्तों में चयन व निर्णय लेने के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में पहचानते हुए राज्य व ज़िला प्रशासन कि जवाबदेही निर्धारित करते हैं ।
  2. सरकार और उसके अंगों को महिला अधिकारों और ख़ास रूप से महिलाओं के रिश्तों में चयन व निर्णय लेने ले अधिकार को मानवाधिकार के उलंघन के रूप में देखने कि क्षमता वर्धन करनी चाहिए, चाहे वः बाल विवाह का मुद्दा हो या जबरन विवाह का (जोड़े कि सहमती के बिना शादी करवाना) या तथाकथित ‘इज्ज़त’ के नाम पर किया जाने वाले अपराध का । यह सब गंभीर दंडनीय अपराध ही नही पर घरेलो हिंसा को भी रूप हैं और इन्हें एक मजबूत, प्रभावी और समावेशी तरीके से संबोधित करना सरकार का उतरदायित्व है ।

https://youtu.be/kYMhSmSeWDI

आली के बारे में: आली एक मानवाधिकार संगठन है जो कि हस्तक्षेप,  क्षमता निर्माण,  अनुसंधान और पैरोकारी के मध्यम से महिलाओं, बच्चों एवं अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के मानवाधिकारों के संरक्षण एवं उन्नति के लिए प्रतिबद्ध है। उत्तर प्रदेश और झारखंड क्षेत्र में उपस्थिति के साथ, आली पूरे भारत के विभिन्न मानवाधिकार संगठनों और समूहों को तकनीकी सहायता प्रदान कर रहा है

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