अवधनामा संवाददाता
राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस पर वरिष्ठ पत्रकारों के विचार
कुशीनगर। भारत में पत्रकारिता का एक दीर्घकालिक इतिहास रहा है। प्रेस के अविष्कार को पुर्नजागरण एवं नवजागरण के लिए एक सशक्त हथियार के रूप में प्रयुक्त किया गया था। भारत में प्रेस ने आजादी की लड़ाई में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर गुलामी के दिन दूर करने का भरसक प्रयत्न किया। कई पत्रकार, लेखक, कवि एवं धार्मिक रचनाओं ने कलम और कागज के माध्यम से आजादी की आग को घी-तेल देने का काम किया। किंतु अब इसमें क्या बदलाव आया है और किस बदलाव या सुधार की जरूरत है इस क्रम में राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस पर वरिष्ठ पत्रकारों ने अपने बेबाक राय संवाददाता खुर्शीद आलम के साथ साझा किया।
विभिन्न टीबी चैनलों में दो दशकों से अपनी उल्लेखनीय सेवाऐं दे रहे वरिष्ठ पत्रकार एस० एन० शुक्ला ने अपनी बातों की शुरुआत शेरों शायरी के माध्यम से की और कहा कि “कर्तव्यनिष्ठ पत्रकार अपना कर्म निभाते,वे भोर की प्रथम किरण से जाग जाते ! रात्रि के अंत तक सब खबर खोज लाते,निष्पक्ष भाव से हम तक सूचना पहुंचाते।” वे आगे कहते हैं कि अब पत्रकारिता में कुछ गिरावट सी आ रही है। बेशक, मीडिया सूचनाओं के स्त्रोत के रूप में खबरें पहुंचाने का काम करता है, मनोरंजन भी कराता है। मीडिया जहां संचार का साधन है, वही परिवर्तन का वाहक भी है। लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में निरंतर हो रही पत्रकारों की हत्या, मीडिया चैनलों के प्रसारण पर लगाई जा रही बंदिशें व कलमकारों के साथ घटनाएं चिंता का विषय हैं। विभिन्न चैनलों में अपनी सेवाएं देने वाले वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश तिवारी ने कहा कि वर्तमान परिवेश में पत्रकारिता एक चुनौती बनकर रह गई है। पत्रकारिता का यह दौर इन दिनों में मुश्किल भरा है क्योंकि सत्तारूढ़ पार्टियां अपने प्रभाव में लेकर पूरी कौम को अपना मुखपत्र बनाने का प्रयास कर रही हैं। लेकिन कुछ सच्चे पत्रकार हैं जो लोगों की आवाज बनकर उभर रहे हैं। उम्मीद है कि पत्रकारिता का यह कठिन दौर भी समाप्त होगा और आने वाले दिनों में स्वतंत्र पत्रकारिता देखने और करने को मिलेगी। एक सच्चा पत्रकार वही है जो आमजन की आवाज बने और उनकी समस्याओं को उठाते हुए सरकार को आईना दिखाए। वरिष्ठ पत्रकार महेश मिश्रा ने बताया कि इलेक्ट्रॉनिक सोशल मीडिया के वजह से पत्रकारिता पर कभी-कभी उंगलियां होती है क्योंकि सोशल मीडिया चलाने वाले बिना तथ्यों के समाचार या घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर अथवा दूसरे जगह की घटनाओं को दूसरे जगह से जोड़कर तोड़-मरोड़ कर भेज देते हैं जिससे कि पुलिस प्रशासन के साथ ही मीडिया को भी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यदि सोशल मीडिया पर कुछ हद तक लगाम लगाई जाए तो पत्रकारिता में गिरावट कम होगी। युवा पत्रकार खुर्शेद आलम ने कहा कि 3 मई, 2022 को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस (डब्ल्यू पीएफडी) के अवसर पर ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ (आर एस एफ) द्वारा विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक का 20वाँ संस्करण प्रकाशित किया गया। 180 देशों में भारत 150वें स्थान पर है। सैकड़ों पत्रकारों पर हमले और उनकी मौत भी पत्रकारिता के लिए चुनौती है । आज ऐसा कोई सच्चा पत्रकार नही होगा जिसे रोज-ब-रोज मारने व डराने की धमकी नहीं मिलती होगी। माना जाता है कि हाल के दिनों में सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने वाले लोगों पर हमले तेज हुए हैं। इसके सबसे ज्यादा शिकार ईमानदार पत्रकार व सच्चे समाजसेवी रहे हैं। तो दूसरी बात यह कि कई बार मीड़िया भी अपने मूल चरित्र से इत्तर कुछ लाभ के लिए सत्ता और बाजार के हाथों की कठपुतली बन जाती है। इन सब के बावजूद एक तबका ऐसा है जो आज भी स्वतंत्र अखबार के बिना सरकार की मान्यता को खारिज करता है। और मीड़िया की आजादी के लिए प्रतिबद्ध है। ऐसे में आज मीडिया की दिशा व दशा को लेकर गंभीर चिंतन की आवश्यकता है।