कटान रोकने में नाकाम जिम्मेदारों ने 2.25 करोड़ काट लिया, अभी डेढ़ करोड़ और बहाने की तैयारी

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अवधनामा संवाददाता(शकील अहमद)

गंडक नदी के बंधो की मरम्मत और कंक्रीट के पिलर बनाने में सरकारी पैसे की बंदरबांट

गंडक नदी के समीप महादेवा गांव का मामला, लोगों ने दर्द बयां की

 

कुशीनगर। बाढ़ से बचाने के लिए बंधों की मरम्मत और कंक्रीट के पिलर बनाने के काम में सरकारी पैसे की बंदरबांट कैसे होती है, अगर यह देखना है तो कुशीनगर जिले के महदेवा गांव जाइए। गांव को गंडक नदी की कटान से बचाने के नाम पर जिम्मेदारों ने झाड़ की आड़ में करीब सवा दो करोड़ रुपये बहा डाले। अब डेढ़ करोड़ और बहाने की तैयारी है। यह भी नजर आया कि जिस कटान को रोकने के लिए भारी-भरकम बजट खर्च किया गया, अब वह बढ़कर गांव के करीब तक पहुंच गई है। अब गांव के वजूद पर संकट मंडराने लगा है। लोग गांव छोड़कर कहीं और जाने की तैयारी में हैं। महदेवा गांव तो एक बानगी है। ऐसे कई गांव हैं जिन्हें बचाने के लिए हर साल करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। लेकिन बाढ़ आने पर जिम्मेदारों का इंतजाम टिक नहीं पाता।

दरअसल, नेपाल से निकली गंडक नदी महराजगंज जिले के कुछ हिस्से को छूते हुए कुशीनगर होकर बिहार में गंगा नदी में मिल जाती है। जब भी नेपाल में वाल्मिकी बैराज से पानी छोड़ा जाता है, नदी विकराल रूप धारण कर लेती है। महदेवा गांव के लोगों ने बताया कि बाढ़ खंड के अभियंताओं ने बाढ़ बचाव के ऐसे बदतर उपाय किए हैं कि कटान तो रुकी नहीं, अब गांव के अस्तित्व पर संकट आ गया है। अब परक्यूपाइन लगाकर दिखावा किया जा रहा है। यदि इससे कटान रुकता तो चार साल पहले तीन किलोमीटर दूर बहने वाली नदी की धारा गांव के करीब नहीं आती।

ग्रामीण खुद तोड़ रहे आशियाना

वर्ष 2022 में महदेवा गांव के पास कटान निरोधक कार्य कराने के लिए 217.6 लाख से परक्यूपाइन में झाड़-झंखाड़ डालकर कटान रोकने का प्रयास किया गया था। लेकिन, नदी गांव के करीब आती गई। अब उसी स्थान पर 144.28 लाख खर्च कर परक्यूपाइन लगाया जा रहा है। लेकिन, उसका असर यह है कि नदी गांव के करीब पहुंच गई है। ग्रामीणों ने बड़ी मुश्किल से आशियाना बनाया था, वे उसे अब तोड़ रहे हैं। उनका कहना है कि जो भी सामान घर से निकाल ले जाएं, वह ही ठीक है। यदि इसी तरह से छोड़ देंगे तो क्या मिलेगा। सब नदी की धारा में विलीन हो जाएगा।

छितौनी तटबंध पर भी बना रहे ठोकर

जिस तरह से महदेवा गांव के पास परक्यूपाइन लगाया गया है, उसी तरह से छितौनी तटबंध पर किलोमीटर 5 एवं 4 के मध्य भी लगाया जा रहा है। परक्यूपाइन में तार की जाली डालकर उसमें पेड़ की टहनिया डाली जाती हैं। वहां पर काम करने वाले मजदूरों ने बताया कि एक तरफ परक्यूपाइन लग रहा है दूसरी तरफ वह पानी में डूबता जा रहा है। तीन पंक्तियों में लगने वाले परक्यूपाइन पर 199 लाख रुपये खर्च किया जाएगा।

गांव नहीं बचा रहे, रुपये लूट रहे अफसर

ग्रामीण सुक्खल अंसारी ने कहा कि गंडक जोन के अधिकारी बाढ़ से बचाव का नहीं, लूट का उपाय कर रहे हैं। उनको जनता की पीड़ा से कुछ लेना-देना नहीं है। उनका तो मतलब यह है कि वह कितना कमा लें। सीमेंट का पाया लगाकर उसमें सूखी पत्तियां डालने से नदी की कटान नहीं रुकेगी। यह सब लोगों को फुसलाने का कार्य हो रहा है।

बेवकूफ बना रहे हैं अधिकारी

ग्रामीण सहोदरी ने कहा कि अधिकारी केवल बेवकूफ बना रहे हैं। बाढ़ को रोकने के नाम पर हर साल करोड़ों रुपये आते हैं। वह कहां खर्च होता है, पता नहीं चलता। जब गांव पानी से घिर जाता है, तब कहते हैं कि सरकार मदद करेगी। सिर्फ जनता को बेवकूफ बनाया जा रहा है।

कटान रोकने के लिए नहीं हो रहा कार्य

ग्रामीण सुभावती ने कहा कि बाढ़ के समय अधिकारी गांव का दौरा करते हैं और कोरा आश्वासन देते हैं। जितना धन चार साल में खर्च किया गया है, उतने में पत्थर की दीवार खड़ी कर दी गई होती। लेकिन, अधिकारी अपने हित में वह काम कराते हैं, जिसका कोई मतलब नहीं है।

बड़ी मुश्किल से बनाया था घर, अब तोड़ रहे

ग्रामीण इशहाक अंसारी ने कहा कि बड़ी मुश्किल से पाई-पाई जोड़कर अपना छोटा सा आशियाना बनाया था। लेकिन उसे अब अपने हाथ से ही तोड़ रहे हैं। इस साल हमारा गांव बचेगा नहीं। जो कटान निरोधक कार्य कराया जा रहा है, वह महज दिखावा है। पिछले साल जो परक्यूपाइन लगाया गया था, वह कहां गया पता नहीं। तो इसका कहां पता चलेगा। इसलिए जो ईंट निकल रहा है, उसे कहीं ओर ले जाकर एक झोपड़ी की दीवार बना लेंगे।

गंडक कार्यमंडल अधीक्षण अभियंता केके राय ने कहा कि परक्यूपाइन में झाड़ डालकर कटान निरोधक कार्य किया जा रहा है। इससे जहां परक्यूपाइन पड़ा रहता है, वहां सिल्ट जमा हो जाती है और नदी कटान नहीं करती। महदेवा गांव में जहां नदी कटान कर रही थी, वहां पर कटान निरोधक कार्य किया गया है, कटान रुक गई है।

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