रंगकर्मियों को रंगमंच से जिम्मेदारी की सीख देता नाटक ‘विषयान्त्र’

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अवधनामा संवाददाता

लखनऊ। दृश्य भारती की प्रस्तुति नाटक विषयान्त्र का मंचन एसएनए के वाल्मीकि रंगशाला में किया गया। नाटक का लेखन आदित्य अग्निहोत्री और निर्देशन संजय त्रिपाठी ने किया। नाटक में नये रंगकर्मियों को उनकी जिम्मेदारी का अहसास कराया गया है और दिखाया गया कि कैसे नाटक की रिहर्सल होती है, नये कलाकार नाटक के कथावस्तु एवं रंगमंचीय विधा से कोई सरोकार नही रखना चाहते बस जल्दी से फिल्मों में जाने को लालायित रहते है, और आपस में आपसी खुन्नस भी रखते है जो उनकी प्रस्तुति में दिख जाता है। बेचारा नाट्य निर्देशक किस तरह से इन कलाकारों से प्रस्तुति तैयार कराता है यह दिखाया गया है। नाटक में प्रस्तुत प्रस्तुति आदर्श पुत्र उर्फ राजकुमार पुरू में महार्षि शुक्राचार्य के श्राप से अकाल वृद्ध हुआ राजा ययाति अपने युवा पुत्र से उसका यौवन प्राप्त कर चिरकाल तक राजसत्ता सुख भोगने और वासना की तृप्ति का सपना पूरा करना चाहता है, राजा को अपने नवविवाहित पुत्र से उसका यौवन मांगने में तनिक भी लज्जा नहीं आती, न ही उसे इसका कोई अपराध बोध होता है। लेकिन यह नाटक की कहानी का हिस्सा नही बल्कि रंगकर्मियों के जरिये एक नाटक की कहानी थी जिसका युवा और वरिष्ठ रंगकर्मी रिहर्सल कर रहे है। प्रचलित कथानक और रिहर्सल के विपरीत जाकर पुरू बना कामेश ययाति बने प्रेम बाबू की जमकर खिचाई करता है। जोकि नाटक की कहानी को सच्चाई मानकर एक दूसरे से भिड़ जाते है तब निर्देशक वीरेन्द्र बाबू दोनों को शांत कराते है और समझाते हैं कि हमें हमेशा दर्शकों ख्याल रखना चाहिए, क्योंकि दर्शक अपने जीवन की सबसे कीमती वस्तु ‘समय’ हमें देता है, तो उनके मनोरंजन और अच्छे विषय से रुबरू कराने की जिम्मेदारी हम रंगकर्मियों की होनी चाहिए। नाटक में मुख्य भूमिका अनुराग शुक्ला, गिरिराज किशोर, तरुण कुमार, काव्या, शशांक, अभिषेक, कोमल, ओमकार और डा. लक्ष्मी निगम ने निभाई।

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