जिस पसमांदा मुसलमान ने सपा को सत्ता का स्वाद चखाया, उसे ही किनारे कर दिया- वसीम राईन

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अवधनामा संवाददाता

बाराबंकी। दूसरे दलों को एक किनारे कर 83 फीसदी से अधिक पसमांदा मुसलमान ने समाजवादी पार्टी का साथ देकर उसे सत्ता की दहलीज तक पहुंचाया। बदले में पसमांदा समाज को हिकारत, बदसलूकी, बेइज्जती का उपहार सपा ने दिया। राजनीति के गिरगिटिया रंग को ओढ़ चुकी सपा सबसे बड़ा धोखेबाज दल है। जिसने भी इनके नेतृत्व पर भरोसा किया उसका बाद में कोई पूँछनहार नही रहा।
यह बात आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसीम राईन ने अपने बयान में कही। उन्होंने कहा कि सपा को उप्र विस चुनाव 2022 में लगभग 83% वोट मुसलमानों का मिला था खासकर पसमांदा का तो 95% पार कर गया था, भले ही बसपा, कॉंग्रेस या किसी दूसरे दल से कुछ सीटों पर पसमांदा उम्मीदवार रहा हो.. पर पसमांदा ने वोट सिर्फ़ सपा को दिया यहाँ सबसे खास बात यह भी है कि सपा अल्पसंख्यक सभा का ना तो राष्ट्रीय अध्यक्ष और ना ही प्रदेश अध्यक्ष कोई पसमांदा था यह बात ऑल इण्डिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसीम राईन ने अपने एक बयान में कही हैं
दूसरे अन्य अशराफ (सवर्ण) मुसलमानों का वोट तमाम विधानसभाओं में, जहां सपा छोड, बसपा, कॉंग्रेस, मीम आदि से उनके जाति या वर्ग के उम्मीदवार थे… वहाँ उन्होंने उस विधानसभा में बड़ी तादात में अपनी ज़ाति या वर्ग को ही वोट दिया… जैसे खलीलाबाद, मेंहदावल, तुलसीपुर, उतरौला, मुबारकपुर या पश्चिम उप्र के कई सीटों पर भले ही सपा ने उनकी ही जाति या वर्ग से, अल्पसंख्यक का राष्ट्रीय और प्रदेश अध्यक्ष बनाया था…पसमांदा मुसलमानों उसके बाद भी पार्टी को कुल मिले 83% मुस्लिम वोटों का क्रेडिट, पसमांदा को ना देकर…अखिलेश यादव जी ने अल्पसंख्यक के अपने राष्ट्रीय और प्रदेश अध्यक्ष की दुबारा ताजपोशी कर दी यानी_पसमांदा अगर इसी तरह सिर्फ सपा ही नहीं, दूसरे अन्य पार्टियों को भी जो वोट देता है, तो उसका सारा श्रेय भी, उस पार्टी के अशराफ नेतृत्व को ही जाता है… इसलिये किसी को हराने- जिताने की भेड़चाल में ना फंसकर, सिर्फ़ उस पार्टी को वोट दें, जिसकी अगुवाई कोई पसमांदा कर रहा हो… नहीं तो फिर 2019 के लोकसभा चुनाव की तरह, खामोश रहकर या नोटा दबाकर, अपनी नाराजगी जाहिर करिये भाजपा को हटाने या हराने का ठेकेदार बनना बंद करिये..? 2019 के लोकसभा चुनाव में, उप्र में मुस्लिम वोट की पोलिंग हमेशा की तरह 60-70% ना होकर, सिर्फ़ 35.72% ही हुई थी… मुस्लिमों के इसी कम_पोलिंग का ही कमाल था कि सपा-बसपा और RLD जैसे मजबूत गठबंधन के बाद भी, इन्हें सिर्फ़ 15 सीट पर ही जीत मिल पायी थी अमेठी लोकसभा सीट पर भी माननीय राहुल गांधीजी की अप्रत्याशित हार भी, पसमांदा मुसलमानों की ऐसी ही बहुत कम हुई पोलिंग का नतीजा था… 2014 और 2019 के चुनाव में सिर्फ़ अमेठी, कन्नौज, सिद्दार्थ नगर, बहराइच, संतकबीर नगर का ही नहीं, पश्चिम उप्र के 30% से ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले ज़िलों के मुस्लिम_बूथों पर, दोनों चुनावों में पड़े मतों से मिलान कर नजरअंदाज किए गए पसमांदा मुसलमानों की खामोश नाराजगी से होने वाले, बड़े नुकसान को आसानी से समझा जा सकता है हिस्सेदारी नही तो वोट नहीं ।
फोटो न1

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