अवधनामा संवाददाता
जलालपुर अम्बेडकरनगर साल के बारह महीनों में रमजान का महीना मुसलमानों के लिए खास मायने रखता है। यह महीना संयम और समर्पण के साथ खुदा की इबादत का महीना माना जाता है जिसमें हर आदमी अपनी रूह को पवित्र करने के साथ अपनी दुनियादारी की हर हरकत को पूरी तत्परता के साथ वश में रखते हुए केवल अल्लाह की इबादत में समर्पित हो जाता है। जिस खुदा ने आदमी को पैदा किया है उसके लिए सब प्रकार का त्याग मजबूरी नहीं फर्ज बन जाता है। इसीलिए रमजान के महीने रोजे रखे जाते हैं।
रमजान के बारे में मौलाना मुहम्मद रज़ा मश्रकैन का कहना है कि रमजान के महीने में की गई खुदा की इबादत बहुत असरदार होती है। इसमें खान-पान सहित अन्य दुनियादारी की आदतों पर संयम कर जिसे अरबी में “सोम” कहा जाता है आदमी अपने शरीर को वश में रखता है साथ ही नमाज पढ़ने से बार-बार अल्लाह का जिक्र होता रहता है जिसके द्वारा इंसान की आत्मा (रूह) पाक-साफ होती है।
उन्होंने कहा इनसान गलतियों का पुतला भी होता है। अतः अपनी गलतियों को सुधारने का मौका भी रमजान के रोजे में मिलता है। गलतियों के लिए तौबा करने एवं अच्छाइयों के बदले बरकत पाने के लिए भी इस महीने की इबादत का महत्व है।
रमजान के बारे में एक खास बात में मौलाना कहते हैं कि रमजान का महीना एक गर्म पत्थर से मायने रखता है। उस जमाने में अरब में आज से भी भीषण गरमी होती थी। अतः गरमी से तपते पत्थर से नसीहत लेते हुए, कि जैसे यह सूरज की किरणों से तप रहा है, वैसे ही तुम अल्लाह की इबादत में तप कर अपने तन-बदन एवं रूह को पाक-साफ बना लो।
रमजान इस्लामिक कैलेंडर का नौवां महीना होता है जिसे बहुत ही पाक महीना माना गया है. ऐसा कहा जाता है कि रमजान के महीने में ही पैगंबर मोहम्मद साहब को कुरान की आयतें मिली थीं. इसके बाद से ही इस्लाम में इस महीने में रोजा रखने की परंपरा शुरू हुई. इसलिए रमजान में रोजा रखकर लोग अल्लाह का शुक्रिया अदा और इबादत करते हैं. मुस्लिम समुदाय के लोगों को इस पवित्र महीने का बेसब्री से इंतजार रहता है।