नहाय-खाय के साथ आज से शुरू होगा सूर्यषष्ठी का महापर्व

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अवधनामा संवाददाता(शकील अहमद)

कुशीनगर। कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी अर्थात 28 अक्टूबर शुक्रवार को ‘नहाये-खाये के साथ सूर्योपासना का महापर्व सूर्य षष्ठी व्रत (छठ) प्रारंभ हो गया। 29 अक्टूबर शनिवार को खरना, 30 को सायंकालीन सूर्य को अर्घ्य तथा 31 को प्रात: कालीन अर्घ्य देने के साथ ही व्रत-पर्व संपन्न होगा। लोक आस्था व भगवान सूर्य की आराधना का महापर्व छठ को लेकर प्रातः उठकर व्रती महिलाओं ने गंगा स्नान करने के बाद विधि-विधान पूर्वक पूजा- अर्चना कर कद्दू व सरसो के साग के साथ सात्विक भोजन ग्रहण किया। छठ पूजा की पूर्णाहुति सोमवार को उगते हुए भगवान भास्कर को अर्ध्य देने के बाद संपन्न होगी।
गौरतलब है कि यूपी और बिहार में मनाये जाने वाला छठ महापर्व अब पूरे देश में आस्था व विश्वास के साथ मनाया जाता है। आज शुक्रवार से नहाये खाये के साथ शुरू हुआ भगवान तपन का यह महापर्व उगते हुए भगवान मार्तड को अर्ध्य देने तक कुल चार चरणो मे संपन्न होती है। कथावाचक व चित्रगुप्त मंदिर के पीठाधीश्वर अजयदास महाराज के अनुसार पहले दिन की पूजा के बाद से नमक का त्याग कर दिया जाता है। छठ पर्व के दुसरे दिन को खरना के रुप मे मनाया जाता है। इस दिन भूखे-प्यासे रहकर खीर का प्रसाद तैयार करती है। महत्वपूर्ण बात है कि यह खीर गन्ने के रस की बनी होती है इसमे चीनी व नमक का प्रयोग नही किया जाता है। सायंकाल इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद माताए निर्जल व्रत की शुरुआत करती है। पहले दिन शाम डूबते हुए भगवान लोक प्रकाशक को अर्ध्य देगी। चौथे व आखिरी दिन सोमवार को उगते हुए भगवान गृहश्वेर की पूजा करेगी। उसके बाद व्रती महिलाए कच्चा दूध व प्रसाद ग्रहण करके व्रत व पूजा की पूर्णाहुति करेगी। बतादें कि छठ महापर्व पर गीत षष्ठी देवी के गाए जाते हैं, लेकिन आराधना भगवान सूर्य की होती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, सूर्य और षष्ठी देवी भाई-बहन हैं। मान्यता है कि सुबह और शाम सूर्य की अरुणिमा में षष्ठी देवी निवास करती हैं। इसलिए भगवान सूर्य के साथ षष्ठी देवी की पूजा होती है।
डूबते व उगते हुए सूर्य को अर्घ्य
छठ पर्व के तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को पूर्ण उपवास रहकर व्रती महिलाएं रविवार को सायंकाल 5 बजकर 34 मिनट पर डूबते हुए भगवान कर्ता-धर्ता को अर्घ्‍य देगी। सोमवार को उगते सूर्य को अर्घ्य 6:29 सुबह अर्ध्य देंगी। वही षष्ठी महापर्व की पूर्णाहुति चतुर्थ दिन उगते सूर्य को अर्घ्‍य देने के साथ संपन्न होती है। अर्घ्य देने के बाद व्रती महिलाएं पारन (अल्‍पाहार) करेंगी।
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