एस.एन.वर्मा
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हालाकि पाकिस्तान के पूर्व पीएम एक रिकार्ड बनाते हुये बाहर हो गये है। उनके नाम का रिकार्ड है कि वह पाक के पहले प्रधानमंत्री है जिन्होंने अविश्वास प्रस्ताव में अपना बहुमत खो दिया और हार गये। अविश्वास प्रस्ताव रखते समय कई तरह के नाटक हुये, कई बार रोक-रोक कर बैठक करनी पड़ी। अन्ततः इमरान को जाना पड़ा और विपक्षी दलों के उम्मीदवार एमएलए (एन) के अध्यक्ष शहबाज शरीफ जो नेशनल असेम्बली के नेता प्रतिपक्ष रहे प्रधानमंत्री चुने गये। इमरान खां सेना के मिली भगत से प्रधानमंत्री बने थे। सेना ने उनके पक्ष में चुनाव में भायानक घांधली करवाई थी। आज भी जो कुछ हो रहा है सब सेना की शह पर हो रहा है। सेना हमेशा अपने पक्ष का प्रधानमंत्री लाती रही है जो प्रजातन्त्र के भेष में उसके आदेशों का पालन करता रहे। वर्तमान चुने गये प्रधानमंत्री का भी झुकाव सेना की ओर ही रहा है।
खबर है इमरान सेना अध्यक्ष को बर्खास्त करने जा रहे थे पर तकनीकी वजहों से नहंी कर पाये। सेना द्वारा प्रस्तावित आईएसआई के चीफ के नाम को इमरान ने आगे नहीं बढ़ाया। जिस सेना ने मदद कर उन्हें प्रधानमंत्री बनाया उसके मंशा की अवहेलना कर सेना को नाराज कर दिया। उसी दिन से कयास लगने लगा कि इमरान चल नहीं पायेगा। अभी भी जो चुनाव का कार्यक्रम संवैधानिक विफला के साथ किया गया। वह बिना सेना की शह के सम्भव नहीं था। पाकिस्तान में कितनी भी असेम्बली बदले कितने भी प्रधानमंत्री बदले पर यथा स्थिति वही रहेगी यानी सेना का प्रमुख बना रहेगा अभी भी आफवाह है कि पाकिस्तान के आइएसआई चीफ ने इमरान को थप्पड़ मारा है। पाकिस्तान में कुछ भी हो सकता है। जब तक सेना पाकिस्तान को मिलने वाले वित्तीय मदद के बल पर ऐश करती रहेगी तब तक पाकिस्तान में यही सब होता रहेगा।
प्रधानमंत्री की दौड़ में पीटीआई के शाह महमूद कुरेशी ने भी अपना नाम आगे बढ़ाया था। शाहबाज शरीफ प्रधानमंत्री चुने जाने के पहले ही काशमीर राज अलापने लगे थे उन्हें यकीन था कि मौजूदा हालात में उनका प्रधानमंत्री चुना जाना तय है। पाकिस्तानी राजनीति की यह परम्परा रही है कि जो भी सत्ता में आता है वह जनता पर अपनी पकड़ बनाने के लिये कश्मीर का मुद्दा ज़ररू उछालता है। पीटीआई को शाहबाज शरीफ के नाम पर आपत्ती है। उसने चेतावनी दी है कि अगर उसकी आपत्ती को दर किनार किया गया शाहबाज को प्रधानमंत्री बनाया गया तो नेशनल असेम्बी में उसके सदस्य सामूहिक इस्तीफा देगे। अगर ऐसा होता है तो नया संकट पैदा हो जायेगा। पर अभी तक तो ऐसा कुछ नहीं हुआ है।
पाकिस्तान की सत्ता से जबरदस्ती निकले गये इमरान खां ने अपने लिये मुसीबत खुद पैदा कर ली थी। पहले जिस सेना ने उन्हें गद्दी पर बैठाया उसी से नाराज़गी मोल ली। दूसरे वह बहुत ही अक्षम प्रशासक साबित हुये। पाकिस्तान पर उनकी अक्षमता भारी पड़ी पाकिस्तान चौतरफा बदहाली में घिर गया। उन्होंने नाममात्र की जो लोकतान्त्रिक संथाायें थी उनकी अवमानना करने लगे थे। अपनी सरकार को गिराने का लेकर वह विदेशी सरकारों का नाम लेने लगे थे उनका इशारा अमेरिका की ओर रहा है। जब कि सेना ने इसे गलत बताया सेना अमेरिका से सम्बन्ध सुधारने में लगी है। अब उम्मीद है अगले चुनाव तक शाहबाज की सरकार चलेगी पर इमरान इस नई सरकार के गठन में अड़गा डालते रहेगे। कोर्ट में तरह-तरह की आपत्तियां पेश करते रहे। हालाकि कोर्ट के आदेशों का अवमानना कर उन्होंने कोर्ट से भी सम्बन्ध खराब कर लिये है। कोर्ट ने डिप्टीस्पीकर के फैसले को गलत बताया था। इमरान को इस पर आपत्ती थी।
इस समय सत्ता चलाने के लिये दोनो राजनीतिक पार्टियां एक है। पर जैसा कि पाकिस्तान का इतिहास है यह विश्वास करना कठिन है कि दोनों की दोस्ती आगे भी बनी रहेगी। सत्ता के बाहर इमरान खान जल्द चुनाव के पक्ष में है। पाकिस्तान में अलगा चुनाव अगस्त 2023 में होना है। इमरान जनता को अपने को सत्ता द्वारा प्रताड़ित दिखा कर जनता की सहानुभूति से चुनाव जीतने की कोशिश में है। इमरान अपने को पाकिस्तान का उद्धारक और उसकी समप्रभुता का रक्षक तौर पर पेश करते है। इसी सन्दर्भ में भारत सरकार के सम्प्रभुता और खुद्दारी की तारीफ करते है। इमरान कहते है पश्चिमी शाक्तियां पाकिस्तान के सन्दर्भ में ऐसी विदेशी नीतियां लागू, करने के फिराक में है जो उनके हित में हो।
इमरान अपने समर्थकों को सड़क पर उतर कर विरोध प्रदर्शन के लिये कहा है। पक्ष और विपक्ष का प्रदर्शन सड़कों पर उतरेगा तो आस्थिरता बढ़ेगी। इमरान का जाना उनके लिये बड़ी दुर्घटना हो सकती है पर इसे उनके राजनैतिक जीवन का अन्त नहीं समझना चाहिये। देखने की बात होगी कि आगे के जीवन के लिये किस प्रकार अपने को तैयार करते है। पाकिस्तान में विदेश और सुरक्षा नीतियों पर सेना का एकाधिकार है। शाहबाज भी वही करेगे जो अब तक पाकिस्तान में होता आया है। नाटक वही चल रहा है नये किरदार आते जा रहे है।