जीवन में होती सेवा परम परमार्थ : डा. राजेंद्रदास

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अवधनामा संवाददाता

कर्म का फल सुख और दुख के रूप में मिलता
 
ललितपुर। तुवन मंदिर प्रांगण में साकेतवासी महामंडलेश्वर श्री बालकृष्ण दास जी महाराज की पुण्य स्मृति में आयोजित महामहोत्सव के अंतर्गत पांचवें दिवस रामकथा में व्यासपीठ पर आसीन जगदगुरू द्वाराचार्य मलूक पीठाधीश्वर डा. राजेंद्र दास देवाचार्य महाराज ने कहा कि जीवन में सेवा परम परमार्थ होती है। जीव को यह समझना चाहिए कि जो हमें तन, मन, धन प्राप्त हुआ है, उसका एक मात्र प्रयोजन सेवा ही है।
उन्होंने कहा कि सेवा सदैव भगवत भाव से करनी चाहिए। समर्पित एवं निष्काम सेवा भगवत प्राप्ति का साधन है। हम सभी भगवान के दास हैं। दासों का यह भाव होना चाहिए कि प्रभु ने संपूर्ण सृष्टि का निर्माण हम सभी के लिए किया है। सूर्य, चंद्र, आकाश, पृथ्वी, नदियां, सोना, चांदी, रत्न आदि को हमारे लिए ही बनाया गया है। मानव देह ईश्वर का प्रतिनिधित्व करती है, यही देह प्रदान कर भगवान ने हमें सेवा के लिए भेजा है। साकेतवासी महामंडलेश्वर बालकृष्ण दास महाराज ने कहा कि भैया लक्ष्मण ने निषादराज गुह को जो उपदेश दिया, उसे लक्ष्मण गीता कहा गया। इस संसार में कोई न तो किसी को दुख देता है और न ही किसी को सुख देता है। अपने किए कर्म का फल सुख और दुख के रूप में मिलता है। विषय और विलास से वैराग्य होना ही जीवन की जागृत अवस्था होती है। जीव मोह रूपी रात्रि में सोता हुआ अनेक प्रकार के स्वपन देखता रहता है जो कि वास्तविक नहीं है। केवट प्रसंग की मार्मिक चर्चा करते हुए महाराज श्री ने कहा कि केवट परम निष्काम भक्त है जो अपने सहज प्रेम के कारण प्रभु के चरण पखारने का सौभाग्य प्राप्त करा सका है। उसके भाग्य की सराहना देवता भी करते हैं। निष्काम भक्त का यह अनूठा उदाहरण है। जब केवट कहता है कि प्रभु आपके अनुग्रह के अलावा मुझे कुछ नहीं चाहिए। जानकी जी उतारई में अपनी मुद्रिका देना चाहती हैं पर केवट स्वीकार नहीं करता है। वह कहता है कि जीवन में दोष, दारिद्रय दुख का नाश हो जाए तो प्रभु की अपार कृपा माननी चाहिए। संत की यह परिभाषा होती है कि मन वाणी कर्म से परोपकार करे। परोपकार का भाव जिनके ह्दय में रहता है, उन्हे जीवन में कुछ भी दुर्लभ नहीं रहता है। सहज व सरल स्वाभाव ही परोपकारी बनाता है।  महाराज ने कहा कि भाव की कोमलता से ही ईश्वर का अनुभव होता है। भाव के अनुरूप ही ईश्वर का अनुभव होता है। हम जिस भाव से प्रभु की सुकोमलता का दर्शन करेंगे, वैसा ही भाव जगत निर्मित होगा। भाव संपन्न व्यक्ति ही भाव दे सकता है, जिसके जीवन में लाल जी व लाड़ली जू के भाव की सुकोमलता बनी, उसका रोम-रोम भाव से भर जाता है। महंत गंगादास महाराज ने कथा में पधारे संतों की अगवानी कर मंचासीन कराया। मंचासीन महंतों में जगदगुरू पीपा द्वाराचार्य बलराम दास जी महाराज वृंदावन, महंत रामबालकदास, महंत श्यामसुंदरदस, सच्चिदानंद दास, राघवेंद्र दास, शिवराम दास, अशोक नारायण दास, रामलखन दास आदि विराजमान रहे। कथा के पूर्व मुख्य यजमान निखिल रामकुमार तिवारी ने पोथी का शास्त्रीय विधि से पूजन किया।
मर्यादा हनन से सामाजिक पतन
 
आज भारतीय समाज में मर्यादाओं का हनन हो रहा है। कन्याएं माता-पिता की मर्यादा का पालन नहीं कर रही हैं, उनमें स्वेच्छाचारिता बढ़ रही है। अंर्तजातीय एवं अंर्तसमुदाय ठीक नहीं हैं। मर्यादा हनन से अनेक दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। सनातन धर्म में नारी का बड़ा सम्मान है। संस्कारों की कमी से आज यही स्थिति बनी है। गौसेवा न होने से संबंधों का ममत्व समाप्त हो रहा है। मर्यादा युक्त जीवन श्रेष्ठ जीवन है।
गौ सेवा, गौ संरक्षण आवश्यक
 
महाराज ने कहा कि गौ सेवा से ही परिवारों का विघटन, संबंधों में कलह समाप्त की जा सकती है। गाय, भगवान की भी भगवान है, उसे जूठा भोजन न दें। प्रत्येक सनातनी गौ ग्रास निकालें। हमारे आज के जीवन के उत्थान में गौ परम आवश्यक है। गव्य पदार्थों के सेवन से ही संस्कार बचाए जा सकते हैं। प्रत्येक घर में गाय पलेगी तो जीवन में सकारात्मकता, शुद्धि, स्वास्थ्य, समरसता बढ़ेगी। गौ आधारित शिक्षा, गौ आधारित चिकित्सा, गौ आधारित कृषि मानव मात्र के लिए कल्याणकारी है।
हम गौसेवी बनें
कथा में अखिल भारतीय निर्वाणी अनि के महामंत्री एवं अखाड़ा परिषद के प्रवक्ता गौरीशंकर दास जी महाराज ने कहा कि आज हमारे साथ कुठाराघात हो रहा है। आए दिन की घटनाएं जागरुक करने के लिए प्रेरित करती हैं। गौवंश का वध हो रहा है, सनातन संस्कृति को नष्ट करने का कुचक्र रचा जा रहा है। महाराज की कथा का आशय है कि हम गौसेवी बनें, हम बंटे नहीं, अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए तत्पर रहें। हमें राष्ट्र रक्षा, गौ रक्षा, गंगा रक्षा व धर्म रक्षा के लिए एकजुट रहना होगा।
गौ माता की महिमा अनंत
 
धर्मसभा में महंत ईश्वरदास जी महाराज ने कहा कि हमारे अशांत और असंस्कारी जीवन का मूल कारण है कि हम गौमाता से विमुख हो गए हैं। गौ माता की महिमा अनंत है। गौ माता पंचामृत, पंचगव्य एवं गोबर हमारी शुद्धि का स्रोत है। गाय से यज्ञ है और यज्ञ से संपूर्ण सृष्टि की रक्षा है। माता-पिता की सेवा छोड़कर उन्हें वृद्धाश्रम में ढकेल रहे हैं। वृद्धावस्था भारतीय संस्कृति पर कलंक है।
संत का जीवन केवल देने का होता है
भानुपुरा पीठाधीश्वर ज्ञानानंद तीर्थ महाराज ने कहा कि संत का जीवन केवल देने का होता है। पूज्य नृसिंह मंदिर के महामंडलेश्वर जी की संत वृत्ति, सदैव मुस्कान, सबका आदर व सबसे प्रेम ऐसे गुण थे जो सदैव पूज्यनीय रहेंगे। सीतापाठ के पूर्व आचार्य स्वनाम धन्य अमावश गिरि महाराज व नृसिंह मंदिर के महाराज का स्नेह मय प्रेम संबंध था।
भक्तमाल गायन का हुआ समापन
 
श्री नृसिंह मंदिर प्रांगण में भक्तमाल समाज गायन का समापन हो गया। मुख्य पाठकर्ता धनंजय दास द्वारा नित्य गायन पाठ किया गया, उनके सहयोगी सीताशरण दास रहे। कार्यक्रम में मौजूद साधु संतों ने इसका गायन किया। कार्यक्रम के मनोरथी संजय डयोडिया ने बताया कि भक्तमाल समाज का गायन 17 जून से प्रारंभ हुआ था, जिसका आज समापन हो गया। इस दौरान मलूक पीठाधीश्वर डा. राजेंद्र दास ने आशीष वचन दिए। इस मौके पर महंत किशोर दास देव जू महाराज, महंत गंगादास महाराज आदि उपस्थित रहे।
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