एस.एन.वर्मा
हो गयी आवाज सस्ती और महंगा शोर है बात बैठी है सिकुड़ कर और फैला शोर है मीडिया पहले सुस्ंकृत करने का काम करती थी। समाज के सुधार में उसका अहम रोल होता था। सरकारों के लिये भी मीडिया महत्वपूर्ण हुआ करती थी। सरकारे मीडिया से डरती थी आज मीडिया सरकारो को डारती है। हर तरफ अवमूल्यन दिख रहा है। राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, चेतना पैदा करने वाली मीडिया भटक गयी है।
देश की आधी आबादी के सशक्तिकरण का नारा इस समय और लम्बे अर्से से लग रहा है। पार्लियामेन्ट ने राजनीति में 33 प्रतिशत हिस्सा देने का वादा किया है। पर सरकारे तो इसे नही पूरा कर पा रही पर मीडिया यानी चैनलों और साइटों ने तो 33 प्रतिशत से कई गुना ज्यादा स्पेस दे रक्खा है। यह अलग बात है कि इनके स्पेस देने का आशय स्त्री सशक्तिकरण नही है उसका चीर हरण है। चैनल समाचार वाचक की जगह समाचार वाचिका को तरजीह दे रहे है उनकी नज़र उनके सुन्दर चेहरे सुन्दर देह और कम से कम उत्तेजक कपड़े उनकी योग्यता का आधार है न कि पत्रकारिता का ज्ञान। प्रिन्ट मीडिया के एक पन्ने के दोनो तरफ की किनारे की खबरे बलात्कार नारी पर अत्याचार दहेज के लिये उत्पीड़न और हत्या से भरी रहती है। इसी के साथ विराहेतर सम्बन्ध लिवइन की काहानियां और फिर इनमें औरतों की हत्या मीडिया के लिये मसाला बन गई है और घड़ल्ले से परोसे जा रहे है उसे और रोमान्चक और कामुक बना कर। छोटे छोटे किशोर बच्चे पोर्न साइट घड़ल्ले से देख रहे है और बलात्कार कर रहे है। रेप के लिये सज़ा हालाकि फांसी है पर किशोरो के लिए सुधार के नाम पर तीन साल सजा है। बच्चों के इस कानून का इस्तेमाल व्यस्क लोग जो कम उम्र के जवान है अपने को किशोर साबित करने में लग जाते है और अकसर फांसी सजा से बच जाते है।
नारी पर हो रहे अत्याचार के कई रूप चैनल और आकर्षक और सेक्सी बनाकर दिखा रहे है। अगर बलात्कार की रिपोर्ट पेश कर रहे है तो बरबार उसके अश्लील हिस्से को दिखाने की कोशिश करते है। पेश करते आवाज को सेक्सी और कामुक सिसकारियों के साथ का भी तड़का लगा देते है। औरतांे के लिवइन और विवाहतर सम्बन्धों की दास्तान कामुक अन्दाज में दिखाये और सुनाये जाते है। बेड रूम के सीन पर्दे पर आ रहे है। दिखाने वाले ज्यादातर औरते हो होती है जो भड़काउ डेªस में कामुक हाव भाव और आवाज में पेश करती है। क्या यह बलात्कार नही है। वे स्वच्छा से तो नहीं करती है। रोटी रोजी की मजबूरी करा रही है। बलात्कार का मतलब ही होता है किसी काम को बल देकर कराना है।
सुनता हॅू विदेशो में ऐसे समाचार चैनल है जिसमें महिला समाचार सुनाते सुनाते अपने एक एक वस्त्र उतारती जाती है। समाचार का अन्त आते आते बिल्कुल वस्त्रहीन हो जाती है लोग अन्त देखने के लिये अन्त तक बैठे रहते है। इससे ज्यादा विभत्व बलात्कार क्या होगा।
कुछ चैनल समाचार के साथ साथ अश्लील मनोरंजन का खिचड़ी परोस रहे है। समाचार के बीच सिने अभनेत्रियों को बैठाकर जो स्वयम् में एक सेक्सी माडल के रूप में बैठती है उन्हीं के साथ साथ फिल्मों के अश्लील दृश्य भी परोसते है। समाचार चैनल अगर किसी महिला सम्बन्धी अपराध को दिखाते है तो अपराध की जगह बार बार महिला को ही फटे वस्त्रों में दिखाते है जितनी ही बड़ी हस्ती का बलात्कार होगा उतनी ही दिलचस्पी के साथ लोग देखते है। चैनल महिलाओं के शरीर के साथ छेड़छाड़ कर अश्लीलता के साथ दिखाता है।
टीवी पर कुछ चैनल मशहुर कार्यक्रम दिखाते है। जिसमें आम लोग हिस्सा पाना गौरव समझते है उनमें आकर्षक इनाम भी होते है। उनमें खासकर महिलायें अपनी निजी जिन्दगी की गोपनीय बातें, वेडरूम की बाते अपने लिवइन की बाते बड़े रोमान्टिक ढंग से सुनाती है जो दर्शक मुग्ध होकर सुनते है। क्या यह औरतो पर अत्याचार नही है। यही देखने को मिलता है कि औरतो पर अत्याचार सिर्फ पुरूष ही नही स्त्रियां भी कर रही है। फिर नई बाहू पर सास ननद देवरानी, जिठानी का शिकंजा रोगटे खड़े कर देने वाले होते है। पुरूष तो ज्यादा तर सेक्सुअल अपराध करते है पर औरते तो हर तरह का अपराध उनपर करती है। यह भी देखने मे आता है कि महिलाये महिलाओं को देह के धन्धे में, जबरन बहला फुसलाकर बेच कर लगाती है। नारी नारी पर अत्याचार की हदे पार कर रही है। पुरूष से ज्यादा क्रूर दिख रही है।
एफएम रोडियो जब से निजी हाथों में गया है वहां भी यही सब आवाज की माध्यम से दिखाया सुनाया जा रहा है। उसी तरह की आवाज और सिसकारी आवाज के रूप में निकलती है। मतलब हर तरह का मीडिया अपने औकात के अनुसार नारी का चीरहरण करने में लगा हुआ है।
विज्ञापन तो इन्ही के बल पर चलते है। योग जैसी सात्विक विद्या भी आकर्षक कम कपड़े वाली महिला के माध्यम से दिखया जा रहा है। धार्मिक प्रवचनों में अध्यात्म के गुरू भक्ति भाव जगाते जगाते सामूहिक रूप से औरतों को नचाने लगते है। नाम भगवान और भक्ति का पर छाप आप ही सोच ले। आये दिन धर्मगुरू सेक्युअल अपराध में सीखचों के पीछे जा रहे है।
इस विषय पर सरकारों, स्वयं सेवी संस्थाओं और स्वयम महिलाओं को आगे आ कर रोकना चाहिये। जो बातें ऊपर उनके बारे में बतायी गयी है वे उनकी इज्जत को बढाती नही कलंकित करती है। वे जागरूक होगी तभी नारी सशक्तिकरण का चीरहरण रूकेगा। कुछ लोग अजन्ता एलोरा और बड़े बड़े कलाकारो द्वारा उनके द्वारा बनाये गये न्यूड पोट्रेट का उदाहरण देते है। पर उनके पोटेªट कला के क्षेत्र में अमर हैं अगर आप मनोवैज्ञानिक रूप से बीमार नही है तो वे सात्विकता जगाते है अश्लीलता नही। सरकारें अपनी ओर से पूरी कोशिश कर रहीं है खासकर भाजपा सरकार।
मेरी पीढ़ी को एक चिराग बनके जलना है
जिसका मज़हब है अन्धेरो से बगावत करना
नारी को उसकी पूज्य जगह दिलाना मकसद होना चाहिये।
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