रिज़र्व बैंक मुद्रस्फीति की जाल में

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एस.एन.वर्मा
मो.7084669136

यह इससे ज़ाहिर होता है कि आमतौर पर रिजर्व बैंक अपनी नीतियां और बात थोडे़ और स्पष्ट शब्दों में व्यक्त करता रहा है। इस बार मौजूदा अर्थव्यवस्था को देखते हुये रिज़र्व बैंक उसके गवर्नर ने जो नीति तैयार की है उसमें शब्दों का खोखलापन है। बैंक ने जो उम्मीद पैदा करने की कोशिश की है और जो धारणा पैदा करने की कोशिश की है वह अस्पष्ट है।
निवेशकों को बताया गया है कि रिज़र्व बैक की मौद्रिक नीति समिति ने लचीलापन रखते हुये मुद्रस्फीति को लक्ष के भीतर बनाये रखने के लिये लचीलेपन की वापसी पर जोर दिया गया है। साथ ही आर्थिक वृद्धि को प्रेत्साहित करते रहेगे।
रिज़र्व बैक का अनुमान है इस बीच मुद्रा स्फीति ज्यादा बढ़ेगी। इसीलिये पूर्वानुमान को 4.5 प्रतिशत से पुनरीक्षित कर 5.7 प्रतिशत कर दिया है। पिछले पूर्वानुमान भी पुनरीक्षित कर दिया है क्योंकि उसके कायम रहने पर आशंका पैदा हो गई है। अब सकल घरेलू उत्पाद के अनुमान को जो पहले 7.8 प्रतिशत बताया गया था उसे घटा कर 7.2 प्रतिशत कर दिया गया है। रिज़र्व बैंक ने समझाने की कोशिश की है कि मुद्रास्फीत और विकास अनुमान हमेशा सही नहीं उतरता है।
इस साल बान्ड पर मुनाफा 20 बेसिस प्वाइन्ट से घटकर 7.13 फीसदी रह गया है। बैंक के गवर्नर और मौद्रिक नीति समिति को प्राथमिकताओं के क्रम को फिर से संशोघित किया है या यो कहे करना पड़ा है। बैंक का कहना है मूल्य स्थिरता, शाखत विकास और वित्तीय स्थिरता के लक्ष्य परस्पर मज़बूत शाश्वत है। हम इन्ही के पसेमन्जर में आगे बढ़ते रहेगे। पर मुद्रस्फीति अगर आगे रही तो क्या कदम उठायेगे इस पर कुछ भी नहीं कहा गया है। इस बार बैंक ने एनएसओ के आकड़ो का सहारा लेकर अपनी बाते कही है। एनएसओ के आंकड़े बातते है निजी निवेश और निजी खपत सुस्त है। घरेलू मांग को यही आगे बढ़ाते है। महामारी के पूर्व स्तरों से इनमें 1.2 और 2.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। बैंक का मत है कि बड़े पैमाने पर मुद्रस्फीति जोखिम और घरेलू विकास में नकारात्मक जोखिम बढ़ने की कई वजहे है। भू राजनैतिक तनावों को बढ़ना, वैश्विक स्तर पर जिन्सो की कीमतों का बढ़ना, आपूर्ति श्रृंखला में लम्बी रूकावट, व्यापार और पूंजी प्रवाह में अव्यस्था तरह-तरह की मौद्रिक नीति प्रतिक्रियांये वैश्विक बाजारों में भारी उतार चढ़ाव की आशंका सब मिल कर हर क्षेत्र में नकारात्मक प्रभाव डाल रहे है। सभी मुल्क इससे परेशान है। यह सिर्फ भारत की ही परेशानी नहीं है। आर्थिक वृद्धि मौद्रिकस्फिति का शिकार होती जा रही है।
एक बार अमेरिका के अमेरिकी फेडरल रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने बताया था कि अगर मुद्रास्फीति हाथ से निकल जाती है तो यह अर्थव्यवस्था के निरन्तर विकास, उत्पादकता, निवेश के माहौल, रोजगार के लिये सबसे बड़ा खतरा होगी। मुद्रास्फिति आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगो को ज्यादा सताती है। खपत, विकास और निवेश को भारी अवरोध देती है। मौद्रिक नीति की घोषणा के बाद बातचीत के दौरान में रिज़र्व बैक के डिप्टी मैनेजर ने बताया कि एक विकासशील अर्थव्यवस्था के लिये यह महत्वपूर्ण है कि वास्तविक ब्याज दरें सकारात्मक रहें। मुद्रास्फीति को फिर से ठीक करने के लिये सन्तुलन कायम करे। अन्तर और चुनौती देखने के लिये वर्तमान रेपोरेट और मुद्रास्फीति के रूझान पर गौर करना चाहिये। 5.7 फीसदी का अनुमानित औसत मानते हुये इस अन्तर को पाटने के लिये में दरो छह बार बढ़ोत्तरी करनी पड़ेगी।
फरवरी में असन्तुलन ठीक करने की कोशिश की गई थी पर फिर से असन्तुलन कायम हो गया। बचतकर्ता लम्बे समय से कम ब्याज दर का दंश झेल रहे है। छह महीने उपभोक्ता मूल्य मुद्रस्फीति छह प्रतिशत के आस-पास रही है। मुद्रास्फीति से सात प्रतिशत के करीब पहुंचने को उद्यत है। इस परिपेक्ष में मुद्रनीति समिति अनुमान सही नही उतरेगा।
विकसित अर्थव्यवस्थायें ब्याज दर बढ़ाने बैलेन्स शीट घटाने में लगी है। अनुमान है शायद जून से अमेरिकी फेडरल रिज़र्व दरों में 50 आधार अंक यानी 0.50 प्रतिशत की वृद्धि करेगा। 2022 तक अमेरिकी दरो में सात बार बढ़ोत्तरी का अनुमान है। भारत के विदेशी भन्डार का स्तर और विदेश मुद्रा के आधार पर उधार बफर के रूप में काम करेगे। बढ़ती दरे और बैलेन्सशीट सिकुडने से विकासशील अर्थव्यवस्था में प्रवाह इक्विटी और क़र्ज प्रभावित होगे। मुद्रस्फीति के लक्ष के पीछे रहने से लागत बढ़ती है। कुल मिलाकर अर्थव्यस्था भारी दबाव से निकलने के लिये छटपटा रही है। रिज़र्व बैंक मुद्रस्फीति से उलझ गया है।

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