रामपुर CRPF कैंप हमले में बेकसूर साबित हुए गुलाब खान के साथ मोहम्मद कौसर भी अपने दर्द को बयान किया है। करीब 12 साल तक जेल में रहे कौसर को देखने के लिए लोग जमा हो गए | अमर उजाला पर छपी खबर के अनुसार, करीब बारह साल बाद जेल की सलाखों से बाहर निकले कौसर फारूकी अपनी आंखों में अश्क लिए सवाल करते रहे कि उनकी जिंदगी के ये दिन कौन लौटाएगा। घर पर कदम पड़ते ही मोहल्ले के लोग कौसर को देेखने के लिए जमा हो गए।
अपने अब्बू व अम्मी के अलावा बच्चों से गले मिलकर कौसर की आंखों से आंसू बहते रहे। जेल की कोठरी से निकलकर खुली हवा में सांस लेने वाले कौसर की आंखों में खुशी के आंसू छलकते रहे। वह बोले कि उनका बेहतर जिंदगी जीने का सपना चकनाचूर हो गया।
फिलहाल वह अतीत को भुलाकर अल्लाह की दी हुई जिंदगी को इंसानियत के कामों में लगाएंगे। उन्हें कोर्ट पर पूरा भरोसा था।
कुंडा कस्बे के सरयू नगर आजाद नगर मोहल्ला निवासी कौसर फारूकी पुत्र सगीरउद्दीन की गिरफ्तारी एटीएस टीम ने फरवरी 2008 में हुई थी।
उस पर आरोप था कि रामपुर में स्थित सीआरपीएफ कैंप पर हुए आतंकी हमले में आतंकियों की मदद की है। उनके पास आतंकियों की एके 47 रखने का आरोप था। गिरफ्तारी के बाद पूरे परिवार को समाज के तानों से जूझना पड़ा था। यहां तक कि कौसर की इलेक्ट्रानिक्स की दुकान को भी बंद करना पड़ा।
11 साल 10 ताह तक जेल की काली कोठरी में रहने वाला कौसर शनिवार को जेल से रिहा हुआ। बीवी सलमा व भाई के साथ वह देर रात अपने घर पहुंचा। उसके आने की भनक लगते ही मोहल्ले के लोग एकत्र हो गए थे। कार से उतरते ही अपने मकान की ओर गया। फिर भीतर अम्मी व अब्बू से मिलकर रोता रहा।
बेेटे फैसल समेत अन्य बच्चों को गले लगाया। पड़ोसी राधेकृष्ण भी उससे मिलने के लिए आ गए थे। परिवार के लोगों से खुशी के आंसुओं के साथ नई जिंदगी को इंसानियत के कामों में लगाने का संकल्प कौसर लेते दिखे।
बोले कि शुक्रवार को फैसले की घड़ी थी। गुरुवार की रात उन्हें नींद नहीं आई। हालांकि उन्हें कोर्ट और अपने अल्लाह पर पूरा भरोसा था कि उनके माथे पर लगा कलंक जरूर मिटेगा। जिस दिन फैसले की घड़ी थी। उस रात वह इबादत में ही गुजार दिए।
उन्हें भरोसा था कि एक दिन उन्हें न्याय जरूर मिलेगा। उन्होंने कहा कि आतंकवादी होने के नाम मात्र से बदन में सिहरन दौड़ पड़ती है। उन्हें जेल की पिंजरे वाली कोठरी में रखा गया था। कई जिलों में उन्हें रखा गया। बीमारी के चलते वालिद व वालिदा उनसे मिलने नहीं जा सके। लगता है नई जिंदगी मिली है और उनका दुनिया में दूसरा जन्म हुआ है।
कौसर को जब एटीएस ले गई थी। तब उसके तीनों बच्चे बहुत छोटे थे। परिवार के बच्चे भी मासूम थे। उन्हें इसका ज्ञान नहीं था। कौसर शनिवार की रात घर पहुंचे तो अपने बड़े बेटे फैसल को देखकर बोले कि अरे सब जवान हो गए हैं भाई। यह कहते हुए उनकी आंखों से अश्क बहने लगे।
प्रदेश के कई जिलों की जेलों में सालों गुजारने वाले कौसर की मानें तो परिवार के लोग जब उनसे जेल में मिलने जाते थे तो वह उन्हें देख तो सकते थे लेकिन छू नहीं सकते थे। बीवी व भाई उनसे मिलने के लिए जेलों में जाते रहे। सभी उनका हौसला बढ़ाते रहे। चूंकि आतंकी घटनाओं में शामिल आरोपियों को जेल की हाईसिक्योरिटी वाली बैरकों में रखा जाता है। इसलिए उनके साथ ही वही समस्या रही। वहां परिंदा तक नहीं पहुंच पाते थे। उस काली कोठरी से निकलने के बाद अब नई जिंदगी मिली है।
आतंकियों की मदद करने के आरोप से दोषमुक्त कौसर फारूकी जेल से शनिवार को जरूर रिहा हो गया लेकिन अभी भी परिवार के लोगों में खौफ दिख रहा है।
कोर्ट के फैसले से कौसर के माथे से कलंक भले ही धुल गया है लेकिन उसकी जिंदगी के 11 वर्ष 10 महीने जेल में ही बर्बाद हो गए। उसके रिहा होने की खुशी परिजनों को है लेकिन वह जुबान पर लाने को तैयार नहीं है। हालत यह है कि बाहरी लोगों से परिवार को बचाने का प्रयास कर रहा है।