एस. एन. वर्मा
मोदी ने पांच विधानसभा और आसन्न लोकसभा का चुनाव देख चुनाव के रण में विजय पाने के लिये अपना अन्नभेदी बाण छोड़ दिया है। विपक्ष के समझ में नहीं आ रहा है इसका काट कैसे निकले। सरकार ने मुफ्त अनाज योजना पांच साल के लिये और बढ़ा दी है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत 80 करोड़ से ज्यादा लोगो को मुफ्त अनाज वितरित किया जा रहा है। यह दिसम्बर 2023 तक के लिये था। इसके अनुसार लाभार्थियों को राशन की दुकानों से प्रति माह प्रति व्यक्ति 5 किलो गेंहू या 5 कीलो चावल एक किलो दाल मुफ्त वितरित किया जाता है। करोना बिमारी के दौरान राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू किया गया था। इसके अनुसार गरीबी रेखा के नीचे वालो समान्य परिवारों को 5 किलो आनज प्रति व्यक्ति के हिसाब से दिया जाता है। यह अन्नत्योउदय के अन्तरगत उन्हें निःशुल्क दिया जाता है। इसी योजना के अन्तर्गत अन्नत्योउदय परिवारों को अनाज की यह मात्रा सात किलो है प्रति व्यक्ति के हिसाब से इस तरह प्रत्येक सामान्य परिवार को 25 किलो और अन्नत्योउदय परिवार को 35 किलो अनाज हर महीने वितरित किया जा रहा है। यह सब निःशुल्क दिया जा रहा है। 81.35 करोड़ लोगो को रियायती दर पर अनाज मुहैया कराया जा रहा है। सरकारी गोदामो में अनाज पर्याप्त मात्रा में है इसलिये इन योजनाओं के चलाने में कोई परेशानी नहीं आ रही है। नियमानुसार प्रत्येक वर्ष पहली जनवरी को सरकार के पास 138 लाख मिटरक टन गेंहू और 76 लाख मीट्रिक टन चावल का होना अनिवार्य है। ये सब सरकारी गोदामो में संरक्षित रक्खा जाता है। सरकार के अनाज वितरण योजना के तहत इन अनाजों की उपलब्धता आवश्यकता से बहुत अधिक ज्यादा है। केन्द्रीय भन्डार गृहों में 15 दिसम्बर 22 तक लगभग 180 लाख मीट्रिक टन गेंहू और 111 मीट्रिक टन चावल उपलब्ध था।
चूकि सरकार के पास अन्न वितरण योजनाओं के लिये पर्याप्त भन्डार है इसलिये उसने बेहिचक अन्नभेदी बाण चलाकर चुनाव की फसल काटने को तैयार है। विपक्ष अभी अपनी टकराहट को निपटाने के व्यस्त है। मुफ्त अनाज वितरण योजनाओं को लेकर एक सवाल उठता है कि जब सरकारी आंकड़ो के अनुसार 13 करोड़ लोग गरीबी की निर्धारित रेखा से ऊपर चले गये है पानी अपने बल पर खाने पीने में सक्षम हो गये है तो इन्हें मुफ्त अनाज वितरण योजना से बाहर क्यों नहीं किया जा रहा है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून पूरे देश में चल रही है। गरीबो और भूखों को इस योजना से मिल रहे लाभ को सरकार के कल्याणकारी योजनाओं का सिरमौर माना जा रहा है और है भी भूखो की योजना सबसे बड़ी और लाभकारी योजना के अन्तरगत है जिसकी सभी सराहना करते हैं। पर इसके साथ ही यह भी सवाल उठता है कि इतने साल आजादी के बाद कई योजनाऐें नागरिकों की सुरक्षा और बेहतरी के लिये उठाये जाने के बाद भी इतने लोगों को क्यों भोजन के लिये मुफ्त और रियायती अन्न वितरण योजनाओं पर निर्भर रहना पड़ता है।
जबकि यह साल आजादी का अमृत महोत्सव माना जा रहा है। इसका सीधा अर्थ है विकास की अब तक की योजनायें वांछित फल नही दे पा रही है। इस पर ध्यान देना अति जरूरी हो गया है। देश तो आर्थिक रूप से तरक्की करता जा रहा पांचवी अर्थ व्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है पर सम्पन्नता लगता है कुछ लोगो के मुट्टियांे में बन्द होती जा रही है। इस तरह की आबादी को भूख मिटाने के लिये मुफ्त अनाज देने की योजना कब तक चलती रहेगी। इससे लोगो में काहिली आयेगी, मुफ्तखोरी की आदत बढ़ती जायेगी। राष्ट्र के निर्माण में इनकी भूमिका निरंक होगी उल्टे बोझ बनते जायेे। इस तरह से कोई राष्ट्र वान्छित उन्नति नहीं कर पायेगा। संसाधनों की उपलब्धि समान रन से सभी के बीच पहुंचे तभी राष्ट्र की सही उन्नति माना जायेगी। आम आदमी की दैनिक आवश्यकतायें और रोजगार आसानी से उपलब्ध हो तभी ऐसी स्थिति बनेगी। खाद्य सुरक्षा के तहत तकरीबन 67 फीसदी आबादी यानी 80 करोड़ लोगो को रियायती दर पर अनाज दिया जा रहा है। इसमें शहरी आबादी 50 प्रतिशत और देहातों में रहने वालो की 75 फीसदी आबादी बनती है। केन्द्र सरकार कई फलदाई अच्छी नीतियां चला और बना रहा है। उम्मीद है मुफ्त अनाज वितरण योजना से मुक्त होने के लिये ऐसी योजनाओं को लायेगा जिससे संसाधानों का फायदा आखिरी गरीबों तक पहंुचे। तभी आजादी का अमृत महोत्सव सार्थक माना जायेगा।