Thursday, May 2, 2024
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पवार पहेली

एस. एन. वर्मा

शरद पवार पहली पक्ति के कद्दावर नेता है। कुशल राजनीतिज्ञ, कूटनितिज्ञ है। बाल ठाकरे के बाद महाराष्ट्र के सबसे प्रभावशाली, और लोकप्रिय नेता है। वो कुछ कहते है या करते है तो उसकी गूंज दूर-दूर तक जाती है। हाल में विपक्ष के अडानी के केसे में जेपीसी मांग को निरर्थक बताते हुये कहा जब सुप्रीम कोर्ट ने जांच के लिये समिति गठित कर दी है तो वही सही कमेटी है जांच के लिये। अडानी और पवार की दोस्ती भी जगजाहिर है। बाद में पवार ने कहा अगर विपक्ष जेपीसी पर जोर देता है तो मुझे साथ रहने में कोई इतराज नहीं है।
पर उनके बयान ने पक्ष और विपक्ष दोनो में सनसनाहट पैदा कर दी है। लोग कयास लगा रहे है पवार क्या भाजपा के साथ जायेगे, या गठबन्धन में बने रहेगे। महाराष्ट्र में गठबन्धन के वे कर्णघार है उन्हीं की वजह से गठबन्धन सम्भव हुआ था। जब भी कोई अन्तरद्वन्द या मुशकिलाहट आई उन्होंने तत्परता से ओर कुशलता से उसका निवारण किया। अभी तक राहुल के सावरकार के बयान से ठाकरे बिफरे थे तो आगे बढ़कर उनको समझाया और राहुल गांधी से मिलकर महाराष्ट्र के लोगों में सावरकर को लेकर क्या भावना है उसको समझाया। राहुल ने बात मान ली और अब इस तरह के बयान से दूर रहेगे। पवार के अपने दल के कुछ लोग चाहते है भाजपा के साथ रहकर शान्तीपूवर्क रहे।
पवार का अपने परिवार से लगाव जग जाहिर है। वह कोई ऐसा कदम नहीु उठाने चाहते जिससे उनके परिवार पर आंच आये। भतीजे अजित पवार के भविष्य की उन्हें चिन्ता है। इडी ने उनके भतीजे और भतीजे के पत्नी सम्बन्धित कम्पनी के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किये है। हलाकि अभी उसमें किसी का नाम नहीं आया है। पर आगे क्या हो सकता है सभी जानते है। शिवसेना के राऊत कहते है शिन्दे रोते हुये आये थे कि हम भाजपा के साथ नहीं जायेगे तो मै गिरफ्तार हो जाऊगा, उनके साथ कई विधायक इसी डर से चले गये।
विपक्ष में सबसे कद्दावर और ग्राह्य नेता वही है। वह जानते है कांग्रेस भी उन्हें पसन्द करती है मोदी खिलाफ सब मिलकर उन्हें केन्द्र में रखकर 2024 का चुनाव लड़ना चाहेगे। पर पवार जानते है मोदी को हटा पाना असम्भव है कभी पवार भाजपा के सहयोगी भी रहे है और कृषि मंत्री की हैसियत से अपनी छाप भी छोड़ी है। भाजपा की कई मुशकिले हल की है।
इतने समर्पित नेता है कि वह एसी में बैठकर राजनीति नहीं करते है। लोगो के मानस में उनकी वह छवि बसी हुई है जब 1993 में लाटूर मे ंभूकम्प आया था तो दो घन्टे में ही वहां पहुच गये। वहा कैम्प करके देख रेख मे ंकाम करवाया। लोगो की आंखो में उनकी वह छवि भी है जब 2019 के चुनाव अभियान मे ंकोल्हापुर में बरसात में भीगते हुये रैली सम्बोधित कर रहे थे। वह अपने राज्य और वहां के लोगो से अच्छी तरह वाकिफ है।
पवार ने हाल में दिल्ली का दौरा भी किया। वहां खरगे और राहुल से भी मुलाकात की हालात का आकलन करने के लिये। विरोधी पार्टियां एक साथ बंधने के लिये किस हद तक लालयित है। क्या आप और कांग्रेस एक साथ आने को तैयार है। केजरीवाल सीबीआई का इस समय सामना कर रहे है। राष्ट्रीय दल घोषित होने के बाद पूरे उत्साह में कांग्रेंस की जगह लेने के लिये। राहुल इससे पहले नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव से मिल चुके थे। राहुल ने साफ कहा वह विपक्ष के नेतृत्व के लिये दावा नहीं करेगे सहयोग करेगे।
इन सब हालातो पर पवार नजर रख अपना निर्णय लेगे और ज़ाहिर करेगे। उनके निर्णय की आंच परिवार पर आये। उनके 55 साल के राजनितिक जीवन में इस तरह की खीचतान नहीं आई। लोग सोच रहे है क्या पवार अब अपना पुराना स्टैन्ड बदल देगे। उन्हें परिवार भी बचाना है राजनीति भी बचानी है, अपनी पुरानी छवि भी कायम रखनी है। उम्र की इस दहलीज पर जहां लोग रिटायरमेन्ट ढूढते है वहां 82 साल के पवार समस्याओं से जूझते हुये अपने लिये तथा विपक्ष के लिये भी राह निकालने में लगे है। जाहिर वह जो भी कदम उठायेगे उसकी धमक महाराष्ट्र के साथ साथ पूरे देश में सुनी जायेगी। अभी सबकी निगाहे पवार पर है। महाराष्ट्र का गठबन्धन उन्हीं दम पर है। पवार पहेली बूझने में लोग लगे है।

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