Sunday, May 5, 2024
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एनपीएस बेहतर योजना

एस. एन. वर्मा

चुनावी साल करीब आता जा रहा है सत्तापक्ष चुनावी साल में काफी दबाव में आ जाती है। लोगो को लुभाने के लिये कुछ योजनायें लाने का वादा करती है विपक्ष जवाब में मुफ्तकी रेवडियां का वादा करता है। सत्ता पक्ष कर्मचारियों के एनपीएस योजना की तैयारी में है। कर्मचारियों के लिये पुरानी पेन्शन के तर्ज पर होगा। एनपीएस का पूरा फार्म है नेशनल पेन्शन योजना। देश का बड़ा वर्ग गैर संगठित और निजी क्षेत्र में रह कर जीविका उपार्जन कर रहा है। सरकारी क्षेत्र में तो आकर्षक पेन्शन योजना है जो महंगाई के साथ बढ़ती रहती है। पर गैर संगठित और निजी क्षेत्रों में कार्यरत लोगो के लिये न कोई संगठन है और न कोई संघ है। इनकी हालत संगठित क्षेत्रों और सरकारी क्षेत्रों की तुलना में बहुत दयनीय है। इनके लिये न वेतन वृद्धि न पेन्शन न अन्य सुविधाओं का प्रावधान है। इनकी जायज मांगो को भी सुनने वाला कोई भी तन्त्र नहीं है। जब चाहे तब मालिक उन्हंे नौकरी से निकाल सकता हैै। इन सबके लिहाज से एनपीएस एक लाभदायक योजना है। इसके लिये कर्मचारी बाध्य नहंी है। इसका लाभ लेना उनकी इच्छा पर है। अपनी कमाई या बचत का कुछ हिस्सा इस योजना में डालकर देश का कोई भी नागरिक अपने लिये पेन्शन की व्यवस्था कर सकता है।
सरकार ने वित्त सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी। जिसे एनपीएस पर सुझाव देने को कहा गया था। सुझाव में अतिम वेतन का 40-50 प्रतिशत तक पेन्शन देने की बात कही गयी है। 2004 में एनपीएस लागू किया गया था। इसके तहत 10 प्रतिशत सरकारी कर्मचारी अपने अपने वेतन से कटवाते हैं। केन्द्र सरकार इसमें 14 प्रतिशत राशि जमा करती है। सरकार सम्मिलित राशि को शेयर बाजार में निवेश करती है। इससे जो राशि मिलती है उसे कर्मचारियों के खाते में डाल दिया जाता है। पेन्शन राशि इन्हीं निवेशों को मिलाकर निर्धारित होती है। पुरानी पेन्शन मंे आखिरी वेतन का 50 प्रतिशत सरकारी खजाने से मिलता है। पुरानी पेन्शन में वेतनभोगी का कोई अंशदान नहीं होता है। 2004 के बाद सर्विस ज्वाइन करने वाले कर्मचारियो को 2030 में रिटायर होने पर 20 से 25 हजार रूपये पेन्शन मिल सकती है। यह सच है कि दिन ब दिन पेन्शनरों की संख्या बढ़ती जा रही है जिससे सरकारी खजाने का बोझ भी बढ़ता जा रहा है जिससे सरकारी खजाने का बोझ भी बढ़ता जा रहा है। विपक्ष कर्मचारियों की लगातार पुरानी पेन्शन के बहाली की मांग देख कर चुनावी वादे किये जिसका उन्हें फायदा भी मिला। सरकार इसे देख इसके काट में लग गई है।
इधर पुराने और कार्यरत कर्मचारी निजीकरण पर रोक आठवें में कमीशन का गठन बकाया डीए, डीआर का भुक्तान पुरानी पेन्शन की बहाली को लेकर बराबर उग्र से उग्रतर प्रदर्शन करते रहते है। उनकी संख्या देख सरकार के माथे पर गहरी चिन्ता की लकीरें आ गई है। क्योंकि ये बडी संख्या में मतदाता है। चुनाव भी करीब आता जा रहा है। विपक्ष इसका फायदा देख तमाम तरह के वादे लुभाने के लिये बढ़ा चढ़ा कर करता जा रहा है। मतदाता भी समझता है विपक्ष के वादे तो चुनावी वादे है जो वादे ही रहेगा। जो कुछ मिलेगा वह सत्तापक्ष से ही मिलेगा। इसलिये मतदाता सत्तापक्ष का सहानुभूत भी बटोरना चाहता है और उस पर दबाव भी बनाना चाहता है। अगले चुनाव के नतीजे बतायेगे कि मतदाता ने किनके वादो पर विश्वास किया। किसको अपने हितैषी मान सकता है कर्मचारी सरकार के दबाव के समझता है क्योकि वह भी प्रशासन के हिस्सा होता है।

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