26 वर्षों से नही बना कोई भी पिछड़ी जाती का सांसद

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1952 से 2019 तक तीन बार ही जीत सका है पिछड़ी जाती का प्रत्याशी।

संसदीय क्षेत्र में सब से अधिक हैं बैकवर्ड मतदाता फिरभी सब से कम बार मिली है जीत।

ब्रह्मण व क्षत्रीय समाज के उम्मीदवारों का ही रहा है दबदबा।

हिफजुर्रहमान।

हमीरपुर : हमीरपुर – महोबा – तिन्दवारी लोक सभा सीट जहाँ पांच विधानसभाएं हैं। हमीरपुर सदर, राठ, चरखारी, महोबा तथा तिन्दवारी इन में से राठ और चरखारी विधान सभाऐं ऐसी हैं जो लोधी बाहुल्य हैं और समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी अजेंद्र सिंह राजपूत भी इसी बिरादरी से आते हैं। यदि हम विधान सभावार मतदाताओं की संख्या की बात करें तो वह इस प्रकार है। हमीरपुर विधानसभा क्षेत्र में 408078 मतदाता हैं, राठ में 424672, महोबा में 324472, चरखारी में 354675 और तिंदवारी विधानसभा क्षेत्र में 322577 मतदाता हैं। 1952 से 2019 तक केवल तीन बार ऐसा हुआ है जब किसी बैकवर्ड प्रत्याशी नें जीत हासिल की है वह भी राजपूत बिरादरी के गंगा चरन राजपूत नें जिन्होंने 1989 में नौवीं लोक सभा के चुनाव में जनता दल के उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस के उम्मीदवार को हराकर कामयाबी हासिल की थी यह वह दौर था जब पूरे देश में कांग्रेस का बोलबाला था जिस तरह आज भारतीय जनता पार्टी का है लेकिन उस समय हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के राजपूतों नें अपनी आन बान और शान को बचाने के लिये कांग्रेस के विजय अभियान को न सिर्फ रोका बल्कि अपनें सजातीय उम्मीद वार को शानदार जीत दिलाने में सफल हुए थे। आज 2024 में भी लगभग1989 जैसी स्थिति नजर आ रही है लोगों के मष्तिक में प्रशन उठ रहा है कि क्या राजपूत 1989 की तरह इसबार भारतीय जनता पार्टी के विजय अभियान को रोक पानें मे सफल होगें या नही लोगों के इस पश्न का जवाब तो 4 जून को ही मिलसकेगा। गंगा चरन राजपूत नें 1996 तथा 1998 में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के रूप में सफलता प्राप्त की थी लेकिन तब से अभी तक कोई और बैकवर्ड प्रत्याशी सासंद नही बन सका है। इस लोकसभा में सफल हुए सभी उम्मीदवारों की जाती पर नजर डालें तो 6 बार ब्राह्मण प्रत्याशी तथा 8 बार क्षत्रीय समाज के प्रत्याशिय तथा मात्र तीन बार बैकवर्ड प्रत्याशी नें सफलता प्राप्त की है इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति नही होगी कि हमीरपुर लोकसभा सीट पर स्वर्ण जाती का ही दबदबा रहा है जबकि जातीआकणों की बात करें तो सब से अधिक मतदाता तो पिछड़ी जाती के हैं लेकिन सब से कम बार विजयी बैकवर्ड हुए हैं। अब जब 2024 का चुनाव चल रहा है जिसमें पालीटिकल पंडित नये नये समीकरणों और सम्भावनाओं की बात कर रहे है ऐसी स्थिति में 4 जून का इन्तज़ार करना ही बुद्धिमानी है। यह सच है कि हमीरपुर लोकसभा का चुनाव इतना सन्नाटे में पहले कभी नही हुआ है जितना इसबार हो रहा है मतदाताओं में वह जोश नही दिख रहा है जो पहले देखनें को मिलता था। खामोश मतदाताओं को पढना और परखना बहुत आसान कार्य नही। मतदान का समय बिलकुल करीब है मात्र दो दिन ही बचे हैं मतदान की तारीख के नजदीक आते ही समर्थकों व प्रत्याशियों के दिलों की धड़कनें भी तेज होनें लगीं हैं।

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