एक साल में नहीं हो सकी एनआईयूए निदेशक की नियुक्ति, प्रोफेसर देबोलिना कुंडू संभाल रहीं अतिरिक्त कार्यभार

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हितेश वैद्य के पिछले साल सेवानिवृत हो जाने के बाद से अब तक एक साल व्यतीत हो चुका है लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर शहरी नियोजन से संबंधित नीतियों के सबसे प्रमुख थिंक टैंक नेशनल इंस्टीट्यूट आफ अर्बन अफेयर्स में अब तक नए निदेशक की नियुक्ति नहीं हो सकी है। स्थायी नियुक्ति न होने की स्थिति में संस्थान की प्रोफेसर देबोलिना कुंडू को निदेशक का अतिरिक्त कार्यभार संभाल रही हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर शहरी नियोजन से संबंधित नीतियों के सबसे प्रमुख थिंक टैंक माने जाने वाले नेशनल इंस्टीट्यूट आफ अर्बन अफेयर्स” पिछले एक साल से निदेशक की नियुक्ति का इंतजार कर रहा है। इस संस्थान पर शहरी रूपांतरण को दिशा देने और शोध एवं नवाचार के जरिये शहरी विकास को नई दिशा देने की जिम्मेदारी है। यह देश के लगभग सभी शहरों की बुनियादी जरूरत है।

एनआईयूए को केवल शहरी मामलों में नीति और नियोजन की ही जिम्मेदारी नहीं निभानी होती है, बल्कि इस पर शहरी कार्य मंत्रालय और उससे जुड़े संगठनों की कैपेसिटी बिल्डिंग यानी उन्हें मौजूदा और भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार भी करना है। इस संस्थान के निदेशक के पद पर नियुक्ति शहरी कार्य मंत्रालय को करनी है, लेकिन भर्ती के विज्ञापन जारी होने के बाद भी इसे पूरा नहीं किया जा सका। आवेदनों को शार्टलिस्ट करने के बाद यह प्रक्रिया रुक गई। मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार उपयुक्त उम्मीदवार न मिलने के कारण नियुक्ति नहीं हो सकी है, लेकिन इससे संस्थान के कामकाज पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। स्थायी नियुक्ति न होने की स्थिति में संस्थान की प्रोफेसर देबोलिना कुंडू को निदेशक का अतिरिक्त कार्यभार दिया गया है।

हितेश वैद्य के सेवानिवृत हो जाने के बाद से नहीं हुई स्थायी नियुक्ति

आपको बता दें कि निदेशक का कार्यकाल पांच साल का होता है और हितेश वैद्य के पिछले साल सेवानिवृत हो जाने के बाद से स्थायी नियुक्ति नहीं हुई। शहरी मामलों के एक विशेषज्ञ के अनुसार सराकर के स्तर पर एनआइयूए की अनदेखी ठीक नहीं है। यह शहरीकरण की चुनौतियों से निपटने में ढीले-ढाले रवैये का दर्शाता है। शहरी विकास के कार्यक्रमों को दिशा देने में इतने बड़े “थिंक टैंक” के प्रति कामचलाऊ रुख दिखाना सही संदेश नहीं देता है। एनआईयूए शहरी कार्य मंत्रालय के लगभग सभी प्रमुख कार्यक्रमों में नॉलेज पार्टनर की भूमिका में होता है। केंद्र सरकार ने शहरी सुधार के लिए पांच समितियों का गठन किया है। उनमें समन्वय की जिम्मेदारी भी इसी संस्थान को दी गई है।

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