इस्राईली प्रधान मंत्री नेतनयाहू की ईरान विरोधी रणनीति पूर्ण रूप से फ़ेल

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मध्यपूर्व के आज की ताज़ा परिस्थितियों पर नज़र डालने से साफ़ पता चलता है कि इस्राईली प्रधान मंत्री नेतनयाहू की एक दशक लम्बी नीतियों से इस्राईल दुनिया में पहले से भी अधिक अलग थलग पड़ता जा रहा है।

मार्च 2009 में नेतनयाहू ने सत्ता में वापस लौटने के बाद, इस्राईल की विदेश नीति को पूर्ण रूप से बदल दिया।

ज़ायोनी शासन ने 1948 में अवैध रूप से अस्तित्व में आने के बाद से अपने अरब पड़ोसियों से टकराने पर ध्यान केन्द्रित कर रखा था। 1990 के दशक विशेष रूप से 1996 में पहली बार नेतनयाहू के सत्ता संभालने के बाद इसने फ़िलिस्तीनियों के साथ टकराव पर अपना ध्यान केन्द्रित किया।

लेकिन पिछले एक दशक से इस्राईल, ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अपने लिए सबसे बड़ा ख़तरा बता रहा है और नेतनयाहू का कहना है कि ईरान की बढ़ती सैन्य शक्ति ज़ायोनी शासन के वजूद के लिए ही ख़तरा है।

हालांकि नेतनयाहू से पहले ज़ायोनी शासन के पूर्व नेताओं ने भविष्य में इस्राईल के अस्तित्व के लिए किसी भी ख़तरे को भांपकर फ़िलिस्तीनियों से तथाकथित शांति वार्ता का मार्ग अपनाया था और इसहाक़ राबिन ने 1990 के दशक की शुरूआत में ओसलो प्रक्रिया में शामिल होने का फ़ैसला लिया था।

2001-2009 के दौरान एयरियल शारून और एहूद ओलमर्ट ने अमरीका और कुछ अन्य देशों की ख़ुफ़िया एजेंसियों के साथ मिलकर ईरान के परमाणु कार्यक्रम के ख़िलाफ़ भीषण ख़ुफ़िया युद्ध छेड़ दिया और साइबर हमलों के अलावा ईरान के कई वरिष्ठ परमाणु वैज्ञानिकों की हत्याएं कर दीं।

हालांकि शारून और ओलमर्ट के शासनकाल में नेतनयाहू की तुलना में इस्राईल ने ईरान के ख़िलाफ़ अपने अभियान में इतनी तेज़ी नहीं दिखाई थी। नेतनयाहू ईरान के ख़िलाफ़ इस्राईल के प्रयासों को पब्लिक प्लेटफ़ार्म पर ले आए और कोई ऐसा अंतरराष्ट्रीय मंच नहीं था कि वहां उन्होंने ईरान के ख़तरे का राग नहीं अलापा हो।

केवल इतना ही नहीं 2010 से 2012 के बीच उन्होंने ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों पर तीन बार हवाई हमलों की योजना बनाई, लेकिन हर बार ज़ायोनी जनरलों और व्हाईट हाउस ने कड़ा विरोध किया और ईरान के जवाबी हमले के प्रति सचेत किया।

2013 में जब ईरान और 5+1 देशों के बीच परमाणु वार्ता में प्रगति हुई तो नेतनयाहू ने इसका कड़ा विरोध किया और वह सीधे अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा से टकरा गए, जो इस्राईल के इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना थी, क्योंकि इस्राईल का अस्तित्व हमेशा से ही अमरीकी समर्थन पर निर्भर है। यहां तक कि नेतनयाहू ने 2015 में परमाणु समझौते में रुकावटें डालने के लिए सीधे रूप से अमरीका के आतंकरिक मामलों में हस्तक्षेप किया और कांग्रेस में इसके विरुद्ध लामबंदी शुरू कर दी।

नेतनयाहू लगातार समझौते के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार करते रहे और 2018 में ट्रम्प के इस समझौते से बाहर निकलने में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके जवाब में ईरान ने भी अपने परमाणु कार्यक्रम के बंद किए गए कई चरणों को फिर से शुरू कर दिया।

11 अक्तूबर को इस्राईली अख़बार हारेट्ज़ ने अपने संपादकीय में लिखा था कि नेतनयाहू की ईरान नीति ध्वस्त हो चुकी है।

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