ज़ुल्म के खिलाफ एहतेजाज का नाम मोहर्रम

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हज़रते मुस्तफा (स.आ.व.स) ने समाज मे फैली त्रुटियाँ को दूर करने के लिए ईश्वरी संदेशों के माध्यम सें उन्होंने इस्लाम स्थापित किया था। इस्लाम एक धर्म नही बल्कि एक कानून है जो इंसानों के लिए ईश्वर के माध्यम सें बनाया गया है,क्योंकि ईश्वर इस संसार का रचयता है उसको मालूम है कि संसार के लिए कौन सा कानून सही है और कौन सा नहीं। पैगम्बर मोहम्मद(स.व.आ.स.) ने जब सारे सन्देश इस्लाम के दे दिए और एक अच्छे समाज की रचना कर दी तभी ईश्वरी सन्देश के माध्यम से क़ुरान की सूरे मय्यदा(अय्यत नम्बर63) में जिसका वर्णन मौजूद है कि ये मोहम्मद वो पैग़म पहुँचा दो जिसके बारे में मैंने तुम्हें पहले ही बता दिया था अगर तुमने वो पैग़म नही पहुचाए तो समझो तुमने कराए रिसालत(पैगम्बर की उपाधि) का कोई काम ही अंजाम नही दिया। ऐसा ईश्वर ने क्यों कहा, क्योंकि रिसालत खत्म होने वाली थी और इमामत शुरू होने वाली थी और ईश्वर अपने नाये नुमाईन्दे का परिचय करवाना चाहते थे ताकि इंसान और विशेष तौर पर इस्लाम के अनुवाई कही और ना भटके। इसी उपलक्ष में पैगम्बर मोहम्मद(आ.व.स) ने अपने असल उत्तराधिकारी हज़रते अली(आ.स) को ग़दीर के मैदान में ईश्वरी सन्देश के माध्यम से अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। इस ईश्वरी घोषणा से बहुत से ऐसे बहरूपिये मुसलमानों के दिलो पर सांप सूंघ गया, क्योंकि वो सब अपने ख्वाब सजाए हुए थे और उनके सारे ख्वाब टूट गए। इस्लाम ईश्वरी संदेशों पर आधारित धर्म है और पैगम्बर मोहम्मद कोई काम अपनी मर्ज़ी से नही करते थे जो ईश्वरी सन्देश आते उसपर अमल करते थे और हज़रते अली को उत्तराधिकारी बनाने का संदेश ईश्वर की तरफ से आया था और दुनिया के खत्म होने तक का ईश्वर ने आपने इस्लाम के उत्तराधिकारियों के नाम पैगम्बर मोहम्मद की ज़बान से ग़दीर में कहलवाया था। अफसोस पैगम्बर मोहम्मद की मृत्यो के बाद बहरूपिये मुसलमानों ने खेल शुरू कर दिया और पैगम्बर का उत्तराधिकारी एक फर्जी चुनाव करा के चुन लिया। अब दो सोच यहां से विभाजित हो गयी। एक वो जो ईश्वरी सन्देश और पैगम्बर के संदेशों पर हज़रते अली को पैगम्बर का उत्तराधिकारी स्वीकार करती रही और दूसरी वो सोच जो चुनाव के माध्यम से अपना उत्तराधिकारी चुनती रही। इसी चुनाव की प्रक्रिया से इस्लाम राज्यतन्त्र में परिवर्तित हो गया और पैगम्बर मोहम्मद एवं इस्लाम की शिक्षाओं का रूप बदलता रहा और जो शिक्षाएं पैगम्बर ने दी थी जिससे एक अच्छा समाज बन सके वो खत्म हो रही थी। इस व्यवस्था के खिलाफ हज़रते अली ने पूरी ज़िंदगी आंदोलन किया और कुर्तियों के खिलाफ आवाज़ें उठाई। इसके बाद उनके बड़े बेटे हज़रते हसन(आ.स.) ने आवाज़ें उठाई और इस फर्जी चुनावी प्रक्रिया के मध्यम से राज्यतन्त्र व्यवस्था के खिलाफ रहे और इस्लाम की असल तस्वीर पेश करते रहे और बताते रहे कि ये इस्लाम नही है ये हुकूमत तो हो सकती पर इस्लाम नही। आगे चलकर इन व्यवस्था का सबसे क्रूर समय आया जहां इस्लाम के विपरीत काम होने लगा। शराब,जुआ,बलात्कार जैसे समाजिक कलंकित त्रुटियॉ आम हो चुकी थी और ये सब वही फर्जी चुनाव के माध्यम से चुनी हुई व्यवस्था कर रही थी। इस व्यवस्था को यज़ीद नामक क्रूर राजा कर रहा था जो इस्लाम का लिबास पहनकर इस्लामी उत्तराधिकारी बनकर कर रहा था और यज़ीद चाहता था कि पैग़म्बर के प्रिय छोटे नाती हज़रते इमामें हुसैन उसकी हुकूमत को मान्यता दे दे। पर इमामें हुसैन ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। यज़ीद जानता था कि जबतक इमामें हुसैन मान्यता नही देंगे तबतक उसकी बहरूपिये इस्लामिक हुकूमत कमज़ोर बनी रहेगी। वही इमामें हुसैन इस्लाम की असल शिक्षाओं का प्रचार करने लगे। वही यज़ीद के ज़ुल्म से इराक़ के मुसलमान इमामें हुसैन से इल्तिजा करने लगे कि आप इराक़ के शहर कूफ़ा आजाए ताकि हम सब को इस ज़ालिम हुकूमत से निजात मिल जाए। इमामें हुसैन ने अपने नाना के शहर मदीने को छोड़ा और इराक पहुँच गए। जब यज़ीद के गवर्नर इब्ने ज़ियाद को पता चला उसने कूफ़े से बाहर कर्बला नामक शहर में सेना भेजकर इमामें हुसैन को रोक दिया। इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से 2 मुहर्रम को इमाम कर्बला पहुँचे थे और यज़ीदी सेना ने इमामें हुसैन को उसके बाद रोक दिया और वही दूसरी तरफ कूफ़े में इमामें हुसैन के चाहने वालो को इब्ने ज़ियाद ने कैद कर लिया। 7 मुहर्रम से यज़ीदी सेना ने इमामें हुसैन के काफिले पर पानी बंद कर दिया और फरात नदी पर यजीदी सेना ने कब्जा करके ये इस काम को अंजाम दिया। इमामें हुसैन के काफिले में सिर्फ 72 लोग थे। यज़ीदी क्रूर सेना ने 10 मुहर्रम को पैग़म्बरे मोहम्मद के चाहिते नाती इमामें हुसैन को उनके बेटों को,उनके भाईयों को,भँजो को,भतीजो को और उनके साथियों को शहीद कर दिया। क्रूर सेना का ज़ुल्म इतना बढ़ गया था कि अरब के दस्तूर और इस्लाम के दस्तूर के विपरीत सारे ज़ुल्म किए गए। इमामें हुसैन ने इस लिए शहादत पेश की ज़ुल्म के आगे झुकना नही है भले सर कट जाए। और वो चाहते थे कि जो यज़ीदी हुकूमत इस्लाम के नाम पर समाज मे ज़ुल्म कर रही है उसका चेहरा सामने आजाए की जब पैगम्बर मोहम्मद के घर वालो का ये ज़ालिम यज़ीद नही है और उनके चाहिते नाती जिनका ज़िक्र क़ुरान और हदीसों(पैगम्बर मोहम्मद के कथन) में है उनको कर्बला में कत्ल कर दिया तो ये इस्लामिक उत्तराधिकारी नही हो सकता ये तस्वीर लोगो के सामने खुल चुकी थी। जिसकी वजह से लोगो मे विद्रोह आगया और यज़ीद की हुकूमत कुछ सालों में ही गिर गयी और वो मर गया। इसीलिए बुद्धजीवी कहते है कि इमामें हुसैन ने उस वक़्त इंसानों को एक ज़ालिम व्यवस्था से बचाने के लिए अपनी शहादत पेश की। इसी को याद करने के लिए वाहिद एक ऐसा महीना है जिसको हर धर्म के लोग इमामें हुसैन के बलिदान को याद करने के लिए मनाते है । लोगो के लिए मुहर्रम ज़ुल्म के खिलाफ एक इतेजाज बुलंद करने का महीना है।

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