एस.एन.वर्मा
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राष्ट्रपति चुनाव को लेकर पहले केसीआर फिर ममता बनर्जी विपक्ष को एकजुट करने में कोशिश कर चुकी है। आपेक्षित सफलता नहीं मिली है। यो तो राष्ट्रपति चुनाव से पहले चुनावी नतीजो के झटका और कुछ राज्यों में विपक्ष को मिली कुछ सफलताओं को लेेकर विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश कब से चल रही है। राष्ट्रपति चुनाव नज़दीक आने से यह हलचल तेज हो गई है। क्योकि इसके बाद 2024 की आम चुनाव आयेगा। विपक्ष अपनी दावेदारी मजबूत करने के लिये पसीना बहा रहा है। पर सफलता दूर ही दिखती है। क्योंकि हमेशा विपक्ष की एकजुटता की अगुवाई कौन करेगा इसे लेकर आपसी प्रतिद्वन्दिता एकजुट होने में सबसे बड़ी बाधा बन रही है।
अब चुकि अब राष्ट्रपति चुनाव की अधिसूचना जारी हो चुकी है तो चुनाव की औपचारिकतायें शुरू हो गई है। पहल प्रयास इस सन्दर्भ में ममता बनर्जी का रहा। पर उन्हें सभी पार्टियों का सहयोग नहीं मिला। उन्हें क्षेत्रीय दलों का सहयोग नहीं मिला। राष्ट्रपति चुनाव के बहाने नेता राष्ट्र के राजनीति में अपनी केन्द्रीय भूमिका तलाशने में लगे है और मुहिम में अपने को केन्द्रीय भूमिका में रखने का उत्सुक है और इसी को लेकर विपक्षी एकता नही बन पा रही है। ममता की बैठक में शरद पवार के नाम पर सहमति बनी। पर पवार कुशल राजनीतिज्ञ है, उनकी योग्यता में कोई शक नहीं है। उन्होंने देखा क्षेत्रीय दल अनिर्णय की स्थिति में है। एकजुट नेताओं में भी अन्दर अन्दर प्रतिद्वन्दिता है उन्होंने उम्मीदवार बनने से इनकार कर दिया। ममता ने कहा पवार को मनाने की कोशिश करेगी और एक और विपक्षी दलों की बैठक करेगी। इसी बीच कश्मीर के मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला और पूर्व राज्यपाल गोपाल गांधी का नाम भी आया। जी 23 के गुलाम नवी आज़ाद का भी नाम आया। राष्ट्रपति के चुनाव की सुगबुगाहट शुरू नहीं हुई थी तभी शरद पवार राष्ट्रपति बनने की इच्छा लेकर विपक्षी नेताओं को टटोलना शुरू किया था। पर अनुकूल प्रतिक्रिया न होने से तभी उन्होंने राष्ट्रपति बनने की इच्छा को त्याग दिया था।
25 जुलाई से पहले राष्ट्रपति का चुनाव हो जायेगा। 776 सांसद 4033 विधायक राष्ट्रपति को चुनेगे। इसमें नामित सदस्य भाग नहीं लेते है। इसके बाद 2024 का आम चुनाव होना है। इससे राष्ट्रपति चुनाव को लेकर जो समीकरण बनेगा वह 2024 की ओर भी इशारा करेगा। भाजपा के पास इतनी संख्या है कि इसे मनपसन्द राष्ट्रपति बनवाने में कोई दिक्कत नहीं आने वाली है। पर अपने साथियों को एकजुट रखने की चुनौती आ सकती है। पहली चिन्ता बिहार को लेकर होगी। नितीश की पार्टी के आरसीपीसिंह जो केन्द्र में मंत्री है उन्हें नीतीश ने राज्यसभा टिकट नहीं दिया। कहते है उनकी भाजपा से नजदीकी को लेकर नीतीश नाराज़ है। यह भी हवा उठी की वह खुद राष्ट्रपति बनना चाहते है। भाजपा को नीतीश को अपने पाले में बनाये रखने की कोशिश अनुकूल होनी चाहिये। क्योकि 2024 के चुनाव के लिहाज से यह अहम होगा। नवीन पटनायक और जगन रेड्डी को भी पाले में बनाये रखने की चुनौती भाजपा के सामने होगी। दोनों में से एक भी भाजपा के साथ होते है तो एनडीए अपने पसन्द की राष्ट्रपति बनवाने में आसानी से सफल हो जायेगी। पटनायक ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले है।
भाजपा अपने मुहिम में सफल तो रहेगी ही पर वह 2024 के सन्दर्भ में विपक्ष में सेन्घ लगाकर विपक्ष का मनोबल तोड़ना चाहेगी। विपक्ष इस मौके को 2024 के सन्दर्भ मे एक मंच पर आने के लिये उपयोग करने में लगा है पर सफलता नही दिख रही है। ममता के साथ खड़ें केजरीवाल ने भी इस मौके पर कन्नी काट लिया। और नवीन पटनायक भी ममता के निमन्त्रण से अपने को अलग रक्खा।
सोनिया गांधी बीमार चल रही है, राहुल गांधी ईडी के पेशी में व्यवस्त है। इसलिये कांग्रेस अभी मामले में खामोश है। क्षेत्रीय दल अपनी भागीदारी को लेकर खामोश है। शारद पावर के इनकार की वजह यही बात थी। ममता बनर्जी अपने यहां भाजपा के पूर्व संसद मंत्री को बनवाकर उनका नाम भी राष्ट्रपति के लिये आगे बढ़ाना चाहती है। विपक्ष का बिखराव एनडीए के लिये वरदान बनता जा रहा है। भाजपा को अपने सहयोगियों को अपने पक्ष में रखने के लिये उनके पसन्द को भी तरजीह देनी चाहिये। अगर इनमें विखराव दिखा तो विपक्ष उसका फायदा उठाने की कोशिश करेगा। वह इसके इन्तजार में भी है। पर भजपा हर तरह से सुविधाजनक स्थति में है। राष्ट्रपति चुनाव और 2024 दोनो पर भाजपा की नजर है क्योकि राष्ट्रपति चुनाव 2024 के सम्भावनाओं को भी प्रभावित करेगा। विपक्ष की हलचल बेजान होती जा रही है।
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