मै और मेरा धर्म

0
60
डॉ रामेश्वर मिश्र 
वर्तमान समय में आज हमारे ज्यादातर निर्णय धार्मिक स्वरूपों के अनुसार बटे होते हैं और हम अपने धर्म को ढाल स्वरुप अपनाकर कई नैतिक उत्तरदायित्वों से मुख मोड़ लेते हैं। ईश्वर के किसी भी स्वरुप में एकता को तोड़ने की बात नही है लेकिन आज समाज को तोड़ने का माध्यम ही धर्म हो गया हैआज यह विषय इसलिए भी अधिक प्रासंगिक है क्योंकि बंगाल चुनाव में हम जिस प्रकार धार्मिक नारों को लेकर आम जनमानस बटा हुआ है उसको देखते हुये तो यह नही लगता कि धर्म ने कहीं हमको एक जुटता में बाँधने का प्रयास किया है। क्या समाज को अलग करने का माध्यम ही श्रेष्ठ धार्मिक होने की पहचान है पहले हम सम्प्रदायों के आधार पर बटें और हमारे समाज में हिन्दूमुस्लिमसिक्खईसाईजैन और बौद्ध आदि का बटवारा हुआ और फिर उसमे भी हम विचारों के रूप में विभक्त हुये। मुस्लिम समाज सुन्नीशियासूफी और अहमदिया में विभक्त हुआईसाई समाज कैथोलिकप्रोटेस्टेंट और ऑर्थोडॉक्स में बटाबौद्ध समाज हीनयानमहायानथेरवादब्रजयान और नवयान में विभक्त हुआजैन समाज श्वेताम्बर और दिगम्बर में बटा तथा हिन्दू निराकार और साकार ब्रह्म की उपासना में विभक्त हो गये। इसी प्रकार धर्म के व्याख्याकारों ने हमारे धर्म का क्षेत्र के आधार पर भी बटवारा कर दिया जैसे बंगाल में दुर्गा की पूजामहाराष्ट्र में गणपति की पूजा और दक्षिण में मुरूगन(विष्णु) की पूजापश्चिमी उत्तर प्रदेश में कृष्ण की पूजा। इसी प्रकार देश के विभिन्न हिस्सों में धर्म विशेष की पूजा की जाती है। हमारे समाज में जन्म लेने के बाद कुछ लोगों ने समाज में व्याप्त धार्मिक संकीर्णता को देखते हुये धर्म के मूल स्वरुप की प्रशंसा की जिसका मूल लक्ष्य मानव जीवन की रक्षा करना था और वे लोग समाज में पूजनीय हुये और आज उनके अनुयायियों द्वारा उनकी ईश्वर के समकक्ष पूजा की जाती है।

कबीर ने हमेशा से धर्म के बाहरी आडम्बर का विरोध कियाजातिगत विभेद की आलोचना की। कबीर के धर्म का मूल प्रेम था। कबीर दास जी ने लिखा है कि पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआपंडित भया न कोयढाई आखर प्रेम कापढ़े सो पंडित होय। कबीर की मृत्यु के उपरान्त समाज में एक नये वर्ग का उदय हुआ जो कबीर पंथी कहलाये। इसी प्रकार रविदास जी ने कहा कि मन चंगातो कठौती में गंगा अर्थात मन को पवित्र होना ही श्रेष्ठ धार्मिक होने का सबसे अच्छा उदाहरण है उसके लिये कठिन तप की कोई आवश्यकता नही हैरविदास जी की मृत्यु के पश्चात नये समाज रविदासिया का उदय हुआ। गौतम बुद्ध ने व्यक्ति के निर्माण के लिये आष्टांगिक मार्ग अपनाने को कहा जो कि बौद्ध धर्म का मूल है। इसी प्रकार जैन धर्म में सत्यअहिंसाअपरिग्रह (आवश्यकता से अधिक दान न लेना)अस्तेय (चोरी न करना) और ब्रह्मचर्य  का विधान है, जिसका मूल मनुष्य की श्रेष्ठता का निर्माण करना है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है कि परहित सरिस धर्म नहिं भाईपर पीड़ा सम नहिं अघमाई’ अर्थात परोपकार ही हमे सच्चे अर्थों में मनुष्य बनता हैदूसरों के दुःखों को देखकर द्रवित होना ही सच्ची मनुष्यता है। प्रकृति के प्रत्येक कण-कण में परोपकार की भावना हैसूर्यचंद्रवायुनदी बिना स्वार्थ के ही सेवा में लगें हैं। महाभारत के उद्योग पर्व में अध्याय 33 से 40 तक विदुर जी के सन्देश हैं जिसमे विदुर जी अधर्मी व्यक्ति की पहचान करते हुये लिखते हैं कि जो व्यक्ति अच्छे कर्मों में विश्वास नही करतागुरुजनों के स्वभाव से सशंकित रहता हैकिसी का विश्वास नही करतामित्रों का परित्याग करता है वह निश्चय ही अधर्मी होता है।  इसके विपरीत जो अच्छे कर्मों को करता हैईश्वर में विश्वास रखता है वही धार्मिक व्यक्ति होता है। विदुर ने धर्म का मूल अच्छे कर्मों में संलग्न होना ही माना है। वर्तमान समय धर्म के मूल स्वरूप में करुणाअहिंसाप्रेमअनुराग जैसे भावों का अंत हो गया है। अच्छे कर्मों  का स्थान भेदभाव  ने लिया हैमन की पवित्रता का स्थान दिखावे ने ले रखा है। अपने-अपने धर्मों की श्रेष्ठता स्थापित करने होड़ में हम कट्टर धार्मिक उन्मादों की ओर बढ़ गयेअहिंसा का स्थान कब हिंसा ने ले लिया हमें पता ही नही चलाधार्मिक होने की लालसा में ही हम अधर्म की राह पर चले गये।

आज समाज में धार्मिक विचारों एवं उसमे विद्यमान धार्मिक कट्टरताओं का उल्लेख करते हुये एक पुस्तक द प्रोफेट पार्टी‘ हाल ही में Rumour Books India से प्रकाशित हुई है जो अमेजॉन पर उपलब्ध है। पुस्तक के लेखक आशीष भरद्वाज ने अनेक ऐसे तथ्यों को लेखबद्ध करने का प्रयास किया है जो हमें अव्यावहारिक रूप से सीमाओं में बाँधते हैं। इस पुस्तक के माध्यम से धर्म से जुड़े भ्रामक प्रचार पर धर्म के प्रवर्तकों के विचारों के माध्यम से विराम लगाने का प्रयास किया गया है। इस पुस्तक में धर्म से जुड़े अनेक गूढ़ विषयों को उठाया गया है एवं उनका सर्वसमावेशित उत्तर देने का प्रयास किया गया है। कई व्यक्ति जिनका जन्म इसी समाज में इन्हीं धर्मों के बीच हुआ और आज हमारे लोगों द्वारा उनकी पूजा की जा रही है जैसे कबीररविदासगुरुनानकगोरखनाथगौतम बुद्धमहावीरसाईं बाबाशेख सलीम चिस्ती आदि प्रमुख व्यक्तित्व हैं जिनकी विचारों की पवित्रता ने उनको ईश्वर के समकक्ष स्थापित किया है। इस पुस्तक में लिखा गया है कि ‘Ethical people developed morality which is doing right, no matter what you are told’  जिसका पर्याय यह है कि नैतिक लोगों ने नैतिकता का विकास करने के लिये मानव जीवन से प्रेमपरोपकारकर्म की श्रेष्ठतासत्यअहिंसाअपरिग्रहअस्तेयब्रह्मचर्य आदि ऐसे अनेक धारित करने हेतु मार्ग बनाये जो आज स्वस्थ समाज के निर्माण के लिये आवश्यक हैं। वर्तमान समय में लेखक आशीष भरद्वाज ने अपनी पुस्तक के माध्यम से धार्मिक उन्मादधार्मिक संकीर्णताधार्मिक कट्टरता पर विराम लगाने तथा श्रेष्ठ मानव जीवन की स्थापना की दिशा में एक सार्थक प्रयास किया है जिसके मूल में पूर्व प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के विचारों का योगदान है जिसके अनुसार धर्म समाज को जोड़ने का माध्यम है जिसमें धार्मिक स्वतंत्रता का भाव निहित होना चाहिये और जिससे ही स्वस्थ कल्याणकारी राष्ट्र का निर्माण किया जा सकता हैवर्तमान में यही हमारा धर्म है।

Also read

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here