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फिल्म ‘आनन्द’ का हिट डायलाग ‘आनंद मरते नहीं-वक़्ता
आज भी समाज के बीच जिन्दा है। कुछ यही अंदाज स्व. आनंद नारायण मिश्र का रहा। जिन्होंने अपने जीवन के सात दशक समाज और देश की सेवा में लगा दिए। छात्र जीवन से राजनीति में पर्दापण करने वाले आनन्द नारायण मिश्र बैंक की नौकरी में रहते हुए भी उन्होंने खुद को राजनीति और सामाजिक सेवा से दूर नहीं रखा। यही नहीं बैंक से सेवानिवृत के बाद भी लगातार जरूरतमंदों की मदद और सामाजिक कार्यों में हिस्सेदारी कभी कम नहीं हुई। जिसका यह परिणाम हुआ कि हम सभी के बीच आनन्द आज भी जिन्दा है।
राजधानी लखनऊ के प्रेस क्लब में गांधी जयन्ती समारोह ट्रस्ट एवं हिन्द मजदूर किसान पंचायत उप्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित स्व. आनन्द नारायण मिश्र के श्रद्धांजलि सभा में वक्ताओं ने रखे।इस दौरान गांधीवादी, अधिवक्ता, पत्रकार एवं श्रमिक नेता स्व. आनन्द नारायण मिश्र के चित्र पर माल्र्यापण कर उपस्थित अतिथियों ने भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
सभा की अध्यक्षता कर रहे मजदूर नेता गिरीश पाण्डेय ने कहा कि स्व. आनन्द नारायण मिश्र का व्यक्तित्व बहुत ही सरल और मिलनसार था। वह बैंक अधिकारी रहते हुए भी स्व. मिश्र ने अपनी सियासी अभिरूचि को कभी खत्म नहीं होने दिया। स्व. मिश्र ने ट्रेड यूनियन के माध्यम से कर्मचारियों की आवाज को बुलंद करने का काम किया। योवृद्ध समाजवादी चिन्तक सगीर अहमद ने कहा कि स्व. मिश्र से मेरी मुलाकात बहुगुणा जी के घर पर हुई। जिसके बाद मेरी स्व. आनंद मिश्र से नजदीकी बढी। स्व. आनन्द मिश्र के व्यक्तित्व में जो विशेषता थी वह आमजन से दूर होती जा रही है।
सभा को सम्बोधित करते हुए सदस्य विधान परिषद अशोक वाजपेयी ने कहा कि स्व. मिश्र से मेरा साथ लखनऊ विश्वविद्यालय से रहा। वह मेरे सहपाठी, सहयोगी और साथी थे। मैंने उन्हें हमेशा लोगों के सुख दुख में शामिल होते देखा।
वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अमीर हैदर ने कहा कि स्व. मिश्र ने लखनऊ विश्वविद्यालय से कांग्रेस की छात्र राजनीति में पर्दापण किया। इसके बाद वह युवक कांग्रेस के पदाधिकारी बनाए गए। स्व. मिश्र के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा से आत्मीय रिश्ते रहे। लेकिन उन्होंने कभी भी अपने राजनैतिक रिश्तों को अपने व्यक्तिगत लाभ का माध्यम नहीं बनाया।
पूर्व मंत्री सत्यदेव त्रिपाठी ने कहा कि स्व. मिश्र निर्भीक, निडर और साहसी व्यक्ति थे। कैंसर जैसी गम्भीर बीमारी से पीड़ित होने के बाद भी सामाजिक कार्यों में उनकी रूचि इस बाद को प्रमाणित करती थी। स्व. मिश्र का निधन समाज, देश, राजनीति और श्रमिक आन्दोलन के लिए अपूर्णनीय क्षति है।
टेªड यूनियन नेता के.के शुक्ल ने कहा कि स्व. आनन्द छात्र जीवन से ही जागरूक और संघर्षशील व्यक्ति थे। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय में पढाई के दौरान ही ‘विश्वविद्यालय संदेश’ नामक अखबार का प्रकाशन किया। जिसके वह सम्पादक हुए। जो कई वर्षों तक प्रकाशित होता रहा। कुछ समय बाद बैंक में नौकरी के दौरान ‘श्रमिक जन’ नामक पत्रिका प्रकाशित की। जिसके माध्यम से श्रमिकों और कर्मचारियों के आन्दोलन को खड़ा किया।
सतीश संगम की रिपोर्ट———————————-
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