मनोज तिवारी(अवधनामा संवाददाता)
मुझे अवधनामा प्रयागराज की जिम्मेदारी देते हुए वकार साहब के शब्द थे कि मनोज हम आप से निश्चिन्त रहते हैं और कभी उन्होंने मुझे किसी काम के लिए नहीं टोका और मैं बिंदास खबरें इस भरोसे के साथ लिखता रहा कि मेरा एक संरक्षक लखनऊ में है जो एक पिता , गुरु और एक बड़े भाई की तरह मानता है . मैंने हर पल उनके भरोसे को बनाये रखने का प्रयास किया .
प्रत्येक दिन उनकी सम्पादकीय चाहे उर्दू अखबार में हो या हिंदी में बिना पढ़े दिन में चैन नहीं मिलता था , वकार सर की पकड़ हिंदी के शब्दों पर इतनी गूढ़ थी कि कभी कभी हम सोचते थे कि आज तक यह शब्द हमारे सामने क्यों नहीं आये , उर्दू जबान पर उनकी पकड़ लाजवाब थी और किस जगह कौन सा नुक्ता रहेगा कौन सा जेर, जबर ,पेश होगा उसको लगाना नहीं भूलते थे. समसामयिक विषयों पर चाहे वह देशी हो या विदेशी गूढ़ जानकारी रखते थे . सबसे बड़ी विशेषता वकार साहब की यह थी कि किसी मुद्दे पर तुरंत रेस्पॉन्स देते थे और तार्किक तरीके से बात ऐसी रखते थे कि हर किसी के समझ में आ जाती थी . और अपने विरोधियों को भी अपने शब्दों के जादू से प्रभावित कर देते थे .
एक बार एक कंपनी के लोगों ने मुझसे कुछ छपवाने के लिए संपर्क किया हमने अवधनामा अखबार में उनके कंटेंट कुछ शर्तों पर छाप दिए . दुबारा कंपनी वाले लखनऊ वकार सर से संपर्क किया और उसी तरह के कंटेंट छपने के लिए कहा तो उनको याद था , वकार साहब ने कहा कि हमारे प्रयागराज के संवाददाता से आप की बात हो रही थी तो आप ने यहाँ क्यों संपर्क किया ? कंपनी वालों को भी लगा कि वकार साहब अपने सभी परिवार के सदस्यों पर कितना भरोसा करते थे.
वकार सर का अचानक इंतकाल ने हमें दिल से झकझोर कर रख दिया और मैं उस परिवार की पीड़ा को दिल से महसूस कर सकता हूँ जिसके वबे सदस्य थे , इस दुःख की घडी में मैं परिवार को दुःख सहन करने की शक्ति की प्रार्थना भगवन से करते हुए उनको अपने चरों में स्थान देने की दुआ करता हूँ .
वकार साहब की अब स्मृति शेष हम लोगों के जेहन में बची हुई है और हम उनके बचे हुए कार्य को अवधनामा परिवार का एक अटूट हिस्सा समझते हुए पूरा करेंगे , इसी संकल्प के साथ आज प्रयागराज अवधनामा में कार्यरत अन्य कर्मचारियों के साथ मौन रखकर मृत आत्मा के शांति की दुआ की गयी .