मजदूर का बेटा साइबर मजदूर बनने पर मजबूर :दीपक सिन्हा

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कापसहेड़ा,नई दिल्ली। दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में शिक्षा के गिरते स्तर पर चिंता व्यक्त करते हुए ऑरवेल इंग्लिश इंस्टीट्यूट एवम इंटलेक्चुअल सोसाइटी के संस्थापक दीपक सिन्हा ने कापसहेड़ा स्थित वेस्टेंड प्लाजा में ऑरवेल इंग्लिश इंस्टीट्यूट के जूनियर विंग के उद्घाटन समारोह के दौरान कहा कि सरकार जानबूझकर इन गावों में शिक्षा के स्तर में सुधार लाना नहीं चाहती है ताकि दिल्ली एनसीआर में साइबर मजदूरों की कमी न हो।आज से बीस पच्चीस साल पहले यूपी-बिहार से जो लोग मजदूरी करने दिल्ली आए थे उनमें से अधिकांश लोगों के बच्चे आज दस बारह हजार रुपए पर कॉल सेंटर में साइबर मजदूर के रूप में काम करने पर मजबूर हैं जहां उन्हें तीस साल उम्र पूरा करते ही हटा भी दिया जाता है।यह वास्तव में प्रवासी मजदूरों के बच्चों के लिए एक गंभीर मसला है।

गुणात्मक शिक्षा और भाषाई कौशल के अभाव ने इन युवाओं को बौद्धिक रूप से इतना खोखला कर दिया है कि कॉलसेंटर के अलावे कहीं और इन्हें काम भी नहीं मिलता है।इस गंभीर समस्या का सबसे मूल कारण यह है कि उन्हें पहली से 12वीं तक अच्छे शिक्षक नहीं मिल पाते हैं जो उन्हें अच्छे से पढ़ाएं ताकि वे अपना जीवन स्तर सुधार सकें।शिक्षा के नाम पर आसपास के स्कूलों सहित अधिकांश कोचिंग-ट्यूशन संस्थानों में बच्चों को गाइड से पढ़ाया जाता है और परिक्षाएं पास करने के लिए केवल प्रश्न-उत्तर ही रटवाया जाता है, उनके बौद्धिक विकास के लिए कुछ नहीं करवाया जाता है और यही वजह है कि इनमें से अधिकतर बच्चे 12 वीं के बाद दस बारह हजार रुपए पर कॉल सेंटर में टेलीकॉलर बनकर अपना जीवन बर्बाद कर रहे हैं।उन्हें न तो अच्छे से हिंदी ही लिखना आता है और न ही अंग्रेजी।बेसिक गणित और विज्ञान की जानकारी तो बहुत ही दूर की बात है फिर भी सरकार दिल्ली में विश्वस्तरीय शिक्षा होने का दावा करती है।

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